चित्र जोधपुर के घंटाघर क्षेत्र का है....
अतिक्रमण हटाने के आदेश पर अव्यवस्थित खड़े ठेलों पर कारवाई हुई तो शांतिधूर्तों ने घेर लिया और पुलिस कॉन्स्टेबल के साथ ये व्यवहार हुआ।
पुलिसकर्मी ट्रैफिक हवलदार है, नाम शोभाराम ।
डरने के लिए इतना ही पर्याप्त है कि जो तेवर दिखा रहा है उसका नाम शोभाराम जैसा नहीं है।
न आसपास घेर कर खड़े लोगों में से किसी का है।
गरीब कॉन्स्टेबल को इस अपमानजनक स्थिति में वो सारे कांड याद आ गए होंगे जो पिछले कुछ वर्षों में मीडिया व सैक्युलर गिरोह के प्राणप्रिय समुदाय विशेष ने पुलिस के साथ किये हैं।
ये हिम्मत कहाँ से आ रही है???
इसकी धार्मिक मान्यता से????
या इसके मजबूत सामाजिक कवच से???
इसे पता है कि ये कॉन्स्टेबल मारा भी गया तो ये व्यवस्था इसका कोई खास बिगाड़ नहीं सकती है।
और कॉन्स्टेबल को भी पता है कि वो इस जैसों के आगे संवैधानिक रूप से बेबस बना कर धकेला गया है।
समाज को विचार करना है कि इस तरह के तेवर के आगे बेबस नजर आ रही व्यवस्था क्या सुरक्षा की गारंटी है???
विचार नीति निर्माताओं को भी करना है कि वो इस तेवर को अपने गिरेबान तक आते देखना चाहते हैं या नहीं।
पुलिस तक तो आ चुके हैं ये तेवर।