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तप स्कंधर की उमामहेश्वर मूर्ति

जाम आर्य वीर

तप स्कंधर: यह स्थान काबुल के उत्तरी भाग में स्थित है। वर्ष 1970 में जापान के क्योटो विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य मिशन ने इस स्थान पर उत्खनन किया था। यहां दो ठहरने वाले स्थान मिले, जिसमें एक किला और कई लघु पुण्य स्थान हैं, जिनमें से एक में अग्नि वेदी है। यहाँ प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण खोज एक संगमरमर की उमामहेश्वर की हिंदू मूर्ति है, जिसके आधार पर संस्कृत का एक शिलालेख उत्कीर्ण है। सातवीं से नौवीं शताब्दी ईस्वी की अवधि के मध्य यह अफगानिस्तान के हिंदू हिंदू शासकों का एक महत्वपूर्ण परिसर था। इस परिसर में धार्मिक और नागरिकों के उपयोग वाले भवन एक साथ बने हुए थे।

उमामहेश्वर अनु की इस संगमरमर की मूर्ति का वर्ष 1970 में पुरातात्विक उत्कृष्टता के दौरान पता चला। यह अब तक संगमरमर की मूर्तियों को सबसे अधिक संरक्षित मूर्ति है। यह सफेद संगमरमर के एक शिलाखंड से उकेरी गया है, जिसमें चार भुजाओं और तीन नेत्रों वाले भगवान शिव नंदी पर विराजमान हैं। उनकी साथ पत्नी पार्वती और अपनी देवी मां के बाएं ओर खड़े स्कंद भी हैं। इस मूर्ति के निचले हिस्से में ब्राह्मी लिपि / शारदा लिपि के वर्ण और संस्कृत भाषा में तीन-पंक्ति वाला शिलालेख भाषा है। इस पढ़ने लायक शिलालेख के कारण इस मूर्ति का महत्व और बहुत अधिक हो गया है। यह उत्कीर्णन इंगित करता है कि शिव को महेश्वर का नाम दिया गया है और इसी कारण उनकी अर्धागिनी का नाम उमा है।

अफगानिस्तान के इतिहास में हिन्दूशाही वंश का विशेष महत्व है। चार सौ साल तक इन हिन्दू राजाओं ने अफगानिस्तान से लेकर पूरे पंजाब तक शासन किया। इस राजवंश के 22 शासकों का उललेख मिलता है। कुछ दशक पूर्व जब व्योवृद्ध पत्रकार मनमोहन शर्मा अफगानिस्तान गए थे तो उन्हें काबुल के संग्रहालय में दर्जनों हिंदू हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां नजर आई थीं। उनके लिए हैरानी की बात यह थी कि ये हिंदू हिंदू मूर्तियों को संग्रहालय की सूची में बौद्ध मूर्तियों के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इस दिशा में जापानी देवताओंवेत्ताओं के वर्ष 1970 किए गए पुरातात्विक उत्खनन के परिणामस्वरुप अफ़ग़ानिस्तान में हिन्दुओं के अब तक छिपे सुनहरे इतिहास का नया पक्ष उजागर हुआ है।