केन्द्रीय रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री अपनी धर्म पत्नी ललिता जी के साथ रेल से दिल्ली से मुम्बई जा रहे थे। मई का महीना था। भीषण गर्मी पड़ रही थी। रेल के डिब्बे में सवार होने के बाद शास्त्री जी ने अपने निजी सचिव कैलाश बाबू से कहा, ‘बाहर तो भीषण गर्मी थी। डिब्बे में ठंडक कैसे है?’ उन्हें जवाब मिला, डिब्बे में कूलर लगवा दिया था।’ यह सुनते ही शास्त्री जी बोले, ‘इस गाड़ी में जो और यात्री हैं क्या उन्हें गर्मी नहीं लगती है? तुमने मुझसे पूछे बिना कूलर क्यों लगवा दिया था?’ उन्होंने निजी सचिव को आदेश दिया, ‘गाड़ी जहाँ कहीं भी रूके कूलर हटवा दीजिए।’ रेल मथुरा स्टेशन पर रुकी। डिब्बे से कूलर हटवाया गया। शास्त्री जी ने निजी सचिव से कहा, ‘भइया! यह ठीक है कि मंत्री होने के नाते हम साधारण डिब्बे में यात्रा नहीं कर सकते। परंतु सरकारी धन का अपनी सुख-सुविधा के लिए उपयोग करना उचित नहीं है।’ रेल में उनके साथ यात्रा कर रहे अधिकारी शास्त्री जी के ये वाक्य सुनकर विस्मित रह गए।