बहुत पहले एक कहानी पढ़ी थी उसमे एक वाक्य था कि रोम जल रहा था और नीरो बाँसुरी बजा रहा था...
हालांकि मुझे इस बात पर अचरज हुआ की कोई इस प्रकार कैसे कर सकता है लेकिन मेरा ये अचरज दो दिन पहले तब यकीं में बदल गया जब न्यूज चैनल और फेसबुक की गलियों में खबरे देखी की जब उत्तराखण्ड डूब रहा था तो तत्कालीन सरकार के कारिंदे अपने अपने फायदे की बाँसुरी बजा रहे थे..
बाढ़ के पानी में कितनी लाशों का खून बह गया उसका हिसाब न लगा कर लोग डीजल पेट्रोल के बोगज और बड़े चढ़े बिल का हिसाब लगा रहे थे...
एक तरफ जहाँ लोगों को एक एक बूँद पानी मयस्सर नही हो रहा था वही बचाव कार्य के नाम पर लोग सैकड़ो रूपये लीटर का दूध पी चुके थे..
इंसानी शरीरों को चील कौवे जहाँ नोच रहे थे वही ये कथित समाजसेवी पार्टी के कर्मठ कार्यकर्ता उन चील कौवे से भी आगे निकल कर बकरी मुर्गो का गोश्त नोच रहे थे...
जो वास्तविक बाड़ पीड़ित थे वो तो दर बदर भटकते ही रह गए और जो सरकार के सिफारसी फर्जी लोग थे दो दो बार मुवावजा लेकर ऐश करने में लगे थे...
पीड़ित परिवार खुले आसमान के नीचे बेघर मजबूर असहाय होकर पड़े थे और इनके नेतागण AC होटल्स के डिलिक्स रूम में अय्यासी करते हुए इन परिवारों की कागजो पर झूठी मदद कर रहे थे..
खैर आपदा का आना तो भयावाह था ही उससे कही ज्यादा शर्मनाक ये हरकते रही लोग कहते है कि इंसान को उनके कर्मो का फल स्वर्ग नर्क में जाकर मिलता हैं मेरा मानना है सब कर्म फल यही मिलते है कही आना जाना नही पड़ता...उन खामोश सड़ गयी लाशों की बद्दुआ ही रही और एक साल पहले तक सत्ता शिरोमणि बन कर बैठने वाली पार्टी अब अपने अस्तित्व को बचाने को लेकर ही असफल प्रयत्न करने में लगी हुईं हैं जो कि अब कभी सफल होना ही नही...
दिल्ली के गलियारों में सत्ता की सौंफ चबा कर थूक देने वाले मौज करने वाले लोग आज अमेठी रायबरेली की टूटी फूटी सड़को पर चप्पल घिस रहे है...
खैर अभी तो ये शुरवात है ट्रेलर है असल सनीमा तो अब चालू हो रहा है और जिस दिन दिल्ली की सड़को पर प्रधान मंत्री बनने का सपना पाले हुए पप्पू जी अपने पुरखों का फोटो दिखा दिखा कर वोट मांगते फिरेंगे और लोग कहेगें चल आगे बढ़ उस दिन ये नीरो(विशाल) भी बाँसुरी बजायेगा और सामने एक स्वघोसित सर्वेसरवा और फर्जी देशभक्त पार्टी का ढोंग रचने वाली पार्टी की चिता की लपटें आकाश चूमने को व्याकुल दिख रही होंगी....
सब्र कर बन्दे वो दिन भी आयेगा.