अमेरिकन दंगे .. भारत पर असर .. पूरा अनालिसिस :
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अमेरिका में महात्मा गांधी की मूर्ति पर हुआ हमला गांधीजी पर नही अपितु भारत पर था। हम इस्लामिक आतंकवाद के आगे कम्युनिस्ट आतंकवाद को सीरियस नही ले रहे |
कम्युनिस्ट और इस्लाम ये दो वे विचारधाराएं जो अराजकता और हिंसा से ही फैलाई जाती है। दोनो का इतिहास एक समान है दोनो जब किसी देश पर हमला करते है तो वहाँ के गरीबो को सबसे पहले शासन के विरुद्ध भड़काते है।
अधिकांश गरीब यही मानते है कि वे तो बहुत ही सामर्थ्यवान है तथा अमीरों और सरकारों ने उनका शोषण किया है, इसी का फायदा विदेशी उठाने का प्रयास करते है। अमेरिका में इस समय एक दक्षिणपंथी सरकार है जिसे गिराने के लिए यह सब हो रहा है, विरोधी अपने प्रदर्शन में चीन से सहायता मांग रहे है क्या इसमें किसी षड्यंत्र की गंध नही आती???
अमेरिका में हो रहे यह दंगे पूरी तरह कम्युनिस्टों की साजिश है दंगे करने वालो में मुसलमानो की तादाद है, तीन माह पूर्व जो सब दिल्ली में हुआ वही वाशिंगटन की सड़कों पर हो रहा है।
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अमेरिका के इस संकट का तूफान भारत तक अवश्य पहुँचेगा यदि हम सतर्क नही हुए तो। सबसे पहले यह जान लीजिये की रूस दूध का धुला देश नही है इसलिए बार बार रूस हमारा परममित्र है कहना जल्दबाजी होगी।
सुपरपॉवर बनने की महत्वाकांक्षा रूस में अमेरिका से कही ज्यादा रही है। इसी श्रंखला में उसने 1970 के समय अफगानिस्तान और ईरान में सेंध लगाई यहाँ तक की सऊदी में भी रूस ने कम्युनिस्ट सत्ता लाने की तैयारी कर ली थी।
तब अमेरिका ने युक्ति से काम लिया और सऊदी तथा इराक से मधुर संबंध बनाए ताकि रूस की कम्युनिस्ट हवा की भेंट अन्य देश ना चढ़े। अमेरिका की विश्वसत्ता रूस की कम्युनिस्ट सत्ता से कई गुना अधिक श्रेयस्कर है, अमेरिका सदैव आजादी की बात करता है जबकि रूस और चीन वर्चस्व की।
1991 में रूस का सोवियत संघ टूट गया और अमेरिका महासत्ता बन गया, उस समय नए अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने साफ साफ कहा था कि कम्युनिस्टों को हल्के में ना ले वे अब पहले से अधिक खूंखार होंगे।
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2016 में इन्ही कम्युनिस्टों ने भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे लगाए, भारत तथा पश्चिमी देश मुसलमानो के भी दुश्मन है तथा कम्युनिस्टों के भी, दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है बस यही इन दोनों के जुड़ने का कारण है।
पहले ये मिलकर हमसे लड़ेंगे और बाद में अपने अपने वर्चस्व के लिये एक दूसरे से। इनके षड्यंत्र और आतंकवाद में भारत का क्या सैंडविच बनेगा यह हम समझ ही सकते है।
आप कभी मुस्लिम पेजो पर जाकर देखिये वे चीन या रूस का कभी विरोध करते नही मिलेंगे। आप कम्युनिस्टों के पेज देखिये आपको कही भी पाकिस्तान या ISIS का विरोध नही मिलेगा। क्यो??? कारण की दोनो का लक्ष्य एक है।
उन्हें पता है भारत मे हिन्दू सबसे शक्तिशाली है इसलिए पहले दलितों को भड़काया गया। अंबेडकर के नाम पर महिलाओ को तोड़ा गया।
कुछ यही इन्होंने अमेरिका में किया, अमेरिका में ईसाई शक्तिशाली है इसलिए पहले उन्हें ब्लैक और व्हाइट में तोड़ा उसके बाद अब उन्हें अफ्रीकी, यूरोपीयन और एशियन रेस के नाम पर तोड़ रहे है।
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इन सबके बीच डोनाल्ड ट्रंप ने अच्छा निर्णय लिया कि वे "कम्युनिस्ट संगठन एंटीफा" को "आंतकवादी संगठन" घोषित करेंगे, मगर क्या यह कार्रवाई हमे भारत मे भी करनी चाहिए??? क्या "कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया” (CPI) को "आतंकवादी संगठन" घोषित किया जा सकता है?
क्या "कांग्रेस" को "आतंकवादी संगठन" घोषित किया जा सकता है? क्योकि कांग्रेस "इस्लामिक आतंकवाद" के साथ है !
यह इंदिरा गांधी की कांग्रेस नही है जो 1967 में चीन के छक्के छुड़ा दे और जो कम्युनिस्ट पार्टी को गैरकानूनी घोषित कर दे। यह सोनिया गांधी की कांग्रेस है जो सत्ता के लिये पूरे भारत को 2 रुपये स्क़वेर फ़ीट के भाव मे बेच देगी।
50 साल कम्युनिस्टों से लड़ने वाली कांग्रेस आज उनके ही साथ खड़ी है क्योकि उसे सिर्फ सत्ता चाहिए , बाद में देश कितने हिस्सो में बंट चुका होगा उसे इससे मतलब नही।
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अगला प्रश्न यह है कि हम गैर कम्युनिस्ट क्या करे?
फिलहाल एकमात्र उपाय तो यही है कि .. किसी तरह रूस को चीन से तोड़ना होगा, दो कम्युनिस्ट शक्तियां एक साथ होगी तो हमारे लिये खतरा ही है।
डोनाल्ड ट्रंप ने G-7 देशो के समूह का विस्तार करने का प्रस्ताव रखा है जिसमे उन्होंने रूस को भी जोड़ने की बात कही। मगर यूरोपीय देश इसके विरोध करने लग गए, यही युरोपियन्स की सबसे बड़ी मूर्खता है। यदि रूस इस गुट का हिस्सा बनता है तो हमारे लिए काफी आसान होगा की वह चीन से अलग अपना रास्ता बनाये।
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हालांकि चीन की मौत भी ज्यादा दूर नही है, जब जापान ने पर्ल हार्बर पर बम गिराया गया था तब दुनिया को यही लगा था कि जापान अगली सुपरपॉवर बनेगा मगर अमेरिका ने उसके सपने हवा हवाई कर दिए। कुछ ऐसा ही अंत चीन का भी होगा यही प्रार्थना भी है और पूरी आशा भी।