पिछले वर्ष लोगों ने इन तस्वीरों पर बड़े ठहाके लगाए थे पर अंतिम परिणीति किसी ने नहीं बताई और न उनकी सहायता की।
पिछले वर्ष ( 2019 ) बिहार के ठाकुरगंज में
ईद पर शांतिदूतों ने वनवासियों के गाँव धूलाबाडी
में मस्जिद के लिए अवैध कब्ज़ा कर रहे थे , आदिवासियों ने समझाया लेकिन शांतिप्रिय लोग नहीं माने तो आदिवासियों ने शांतिदूतों को आगे पीछे से नुकीले तीरों से छेद कर दिये !
उसके बाद वनवासियों के साथ जो हुआ उसे कहते हुए अपनी व्यवस्था पर क्रोध और अपनी विवशता पर लज्जा आती है।
आदिवासी अपने अस्तित्व, अपनी संस्कृति-सभ्यता की रक्षा के लिए वीरता से लड़े पर जेहादियों को अरब से लेकर दिल्ली और पटना तक का खुला/मौन समर्थन था ।
वनवासियों की झोपड़ियों को जला दिया गया , उन्हें वहाँ से पलायन को मजबूर किया , उनपर मुक़दम्मे लगाए गए।
प्रशासन ने शांति व्यवस्था के लिए केवल आदिवासियों को हमेशा के लिए वहाँ से हटा दिया था। ( क्योंकि धरती पर वनवासी ही शांति व्यवस्था में सबसे बड़ी बाधा हैं ? )
तत्कालीन एसपी आशीष ने कहा था कि
"पुलिस ने शांति बनाए रखने के लिए कम से कम 70 आदिवासियों को जमीन से हटा दिया गया। उनकी झोपड़ियों को ले लिया गया और आदिवासियों को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया।"
आज वहाँ जेहादी आबाद और वनवासी बर्बाद हैं।
#कभी_भी_युद्ध_अधूरा_न_छोड़े
जहाँ जहाँ हिन्दु जेहादियों से लड़ रहे हैं हमें उनकी सुध लेनी होगी-उन्हें अपना सहयोग देना होगा क्योंकि वे हमारी अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं-यदि हमने उन्हें अकेला छोड़ा तो एक एककर किले ढहते जायेगें और तब हम भी अकेले ही मारे जायेगें
इन वनवासियों की तरह........
एक दूसरे के सहयोग से संगठन बनता है,
केवल नारों से नहीं...........
विवेकानन्द विनय