आज पूरे विश्व की तमाम अखबारों और तमाम साइंस मैगजीन यहां तक कि नेचर से लेकर साइंस सब में एक खबर प्रमुखता से छपी है कोबिड 19 के इलाज में गाय का एंटीबॉडीज कारगर साबित हो रहा है और अमेरिका की बायोटेक कंपनी जो सबसे पहले इसका टीका ला रही है उसका कहना है कि उसने गाय के एंटीबॉडीज में से ही कोबिड वायरस के एंटी डोज का खोज किया है और यह कारगर है
17वीं और 18वीं सदी में पूरे विश्व में चेचक से सबसे ज्यादा लोग मरे थे। कई देशों की लगभग 80% आबादी चेचक से खत्म हो गई थी
चेचक का प्रसार किसी संक्रमित व्यक्ति के फोड़ों या श्वसन के छींटों के संपर्क में आने से होता था। संदूषित बिस्तर या कपड़े से भी रोग फैल सकता था। रोगी की त्वचा से अंतिम पपड़ी के अलग होने तक वह संक्रामक बना रहता था।
चेचक में भी कई तरह के वायरस होते थे यानी वायरस में अलग-अलग स्ट्रेन होते थे और उसमें सबसे खतरनाक होता था वेरीओला मेजर नामक वायरस
इस वायरस से जिसको चेचक होता था या तो वह व्यक्ति मर जाता था लेकिन यदि वह व्यक्ति बच जाता था तब उसके पूरे चेहरे पर और शरीर पर परमानेंट निशान बन जाते थे यानी जहां जहां दाने होते थे वहां बड़े-बड़े गड्ढे बन जाते थे
उस जमाने मे चेचक में काफी बड़े बड़े दाने शरीर पर होते थे और वह व्यक्ति कुछ समय बाद मर जाता था इस तरह से लगभग विश्व की आधी जनसंख्या चेचक से मर जाती थी
वैज्ञानिकों ने सिर्फ 20 वीं सदी में चेचक से मरने वाले लोगों का रिकॉर्ड रखा है और बीसवीं सदी में चेचक से 300 मिलियन लोग मरे थे
फिर ब्रिटेन के वैज्ञानिक एडवर्ड जेनर ने अपने एक अंग्रेज मित्र से एक खबर सुनी कि बंगाल के कुछ इलाकों में बहुत भयंकर चेचक फैला लेकिन उसी इलाके में कुछ गाय पालने वाले लोगों को चेचक नहीं हुआ
यह खबर एडवर्ड जेनर को अनोखी लगी और वह भारत आए और उन्होंने स्टडी किया तब पता चला की गाय के थन के आसपास एक फोड़ा जैसा हुआ था जिसे काऊ पॉक्स कहते हैं और उस फोड़े से निकलने वाला द्रव जिस किसी इंसान को लगता है फिर उस इंसान को चेचक नहीं होता है
उसके बाद एडवर्ड जेनर को चेचक के टीके बनाने की प्रेरणा मिली और उन्होंने उसी गाय के काऊ पॉक्स के सीरम से चेचक का टीका बनाया और इस तरह उन्होंने मानवता को बचा लिया वरना आज शायद पूरी इंसान की सृष्टि चेचक नामक महामारी से खत्म हो जाती
यूं ही नहीं हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में गाय को मां का दर्जा मिला हुआ है गाय को एक देवी का दर्जा मिला हुआ है