सोचने को विवश हूं कि स्वयं को दलितों का हितैषी बताकर उन्हें हिंदुओं के विरुद्ध दिन-रात भड़काने वाले और प्रतिदिन हिंदू संस्कृति, हिंदू आस्था और हिंदू देवी देवताओं पर अमर्यादित टिप्पणियां करने वाले वे तथाकथित दलित चिंतक विचारक जो शांतिदूतों को दलितों का सदैव सच्चा हितैषी बताकर शांतिदूतों के एजेंडे की पूर्ति हेतु दलितों को भेड़ बकरियों की तरह इस्तेमाल करते हैं तथा जय भीम जय भीम के नारे लगाते नहीं अघाते हैं,
वे लगभग प्रतिदिन होने वाली ऐसी घटनाओं पर कभी मुंह खोल कर दलितों का पक्ष क्यों नहीं लेते जब शांतिदूतों द्वारा दलितों के घरों पर, उनकी दुकानों पर, उनके बच्चों पर, उनकी महिलाओं पर जानलेवा हमले के लिए जाते हैं और दलितों के घर, दुकान और उनके जानवर जिंदा जला दिये जाते हैं ?
समय आ गया है यह प्रश्न अब दलित पहले स्वयं से और फिर अपने इन तथाकथित नेताओं से करें, अन्यथा यह तथाकथित दलित नेता, दलित चिंतक व् विचारक सदैव ही दलितों को भेड़ बकरियों की तरह शांतिदूतों के उद्देश्य की सिद्धि हेतु इस्तेमाल करते रहेंगे और शांतिदूतों से इसकी कीमत वसूल कर अपने आलीशान बंगले और बड़े व विलासिता पूर्ण बनाते जाएंगे और दलित ऐसे ही इस्तेमाल होते रहेंगे और भाईचारे के नाम पर शांतिदूतों का चारा बनते रहेंगे.....