Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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क्या आप जानते हैं कि अंधेरा क्या है???

अंधेरा मतलब डार्कनेस या अंधकार नहीं होता है...
बल्कि,अंधेरा मतलब ये होता है कि...प्रकाश उस तक नहीं पहुँच रहा है.

ठीक यही चीज बीमारी के बारे में भी कही जा सकती है कि...दुनिया में कोई भी बीमारी ला-इलाज नहीं होती है..

बल्कि,ला-इलाज का मतलब ये हुआ कि अभी हम उस बीमारी का इलाज नहीं जानते हैं..
अर्थात,हमें उस बीमारी का इलाज नहीं ज्ञात है.

किसी समय में प्लेग,हैजा,और टीबी वगैरह भी जानलेवा और ला-इलाज बीमारियों की श्रेणी में आते थे.

हैजा का मतलब ही हुआ करता था कि....अगर "है"..तो,"जा".

उस जमाने में जब किसी को हैजा होता था तो घर और समाज के लोग उस बीमार व्यक्ति को बोरिया-बिस्तर समेत घर और समाज से दूर किस खेत वगैरह में छोड़ आते थे ताकि बाकी लोगों तक हैजा नहीं फैले..!

क्योंकि, जब हैजा जब फैलता था जो गांव के गांव साफ हो जाया करते थे.

फिर, हैजा का इलाज ज्ञात हो गया और हैजा जानलेवा बीमारी नहीं रह गई.

अब गांव या मुहल्ले तो छोड़ो...खुद बीमार व्यक्ति की जान बच जाया करती है.

असल में हमारी प्रकृति कमाल की है...!

प्रकृति में कुछ भी फालतू नहीं है और न ही कुछ अजेय है.

हाँ...ये जरूर है कि हम मनुष्यों के लिए कुछ चीजें,कुछ वनस्पति अथवा कुछ जीवाणु घातक हैं.

लेकिन.... चूंकि वे प्रकृति के ही एक भाग है,इसीलिए,प्रकृति में उसका निदान भी मौजूद है.

क्योंकि,मानव शरीर भी आखिर प्रकृति का ही एक भाग है जो पंचतत्वों से मिलकर बना बताया गया है.

इस लिहाज से... मुझे पतंजलि के "कोरोनिल दवाई" और उसके बारे में किए गए दावे पर पूरा भरोसा है कि....ये 100% इफेक्टिव है.

क्योंकि...वायरस भी प्राकृतिक और उसकी काट भी...तो,ये बिल्कुल संभव है.

लेकिन...इस पूरे घटनाक्रम में एक छोटा सा झोल है...!

झोल को समझने के लिए...एक उदाहरण से समझें...!

कोई आदमी किसी जज के सामने भी हत्या कर दे तो उसे पकड़ के तुरंत फांसी पर नहीं चढ़ाया जा सकता है.

पहले मृतक के शरीर के पोस्टमार्टम होगा...ये देखने के लिए कि वो गोली से ही मरा है या उसपर कोई ट्रक चढ़ गया है (भले ही खुद जज उसे गोली से मरते हुए क्यों न देखा रहे).

पोस्टमार्टम में सबसे बड़ी बात यह है कि...पोस्टमार्टम सरकारी डॉक्टर और सरकारी अस्पताल का ही मान्य होता है...!

कितना भी बड़ा और हाईटेक प्राइवेट हॉस्पिटल क्यों न हो...उसकी रिपोर्ट मान्य नहीं होती है..भले ही खुद जज साहब भी उसी प्राइवेट अस्पताल में अपना इलाज क्यों न करवाते हों.

खैर..

पोस्टमार्टम के बाद...उस हत्यारे पर पुलिस FIR करेगी...फिर,जांच होगी.

उसके बाद उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जाएगी,फॉरेंसिक रिपोर्ट बनेगी.

फिर,कोर्ट में जाकर सारे रिपोर्ट जमा होंगे,गवाही होगी.. हत्या का कारण स्पष्ट करना होगा.

तब जाकर हत्यारे को फांसी अथवा सजा होगी.

ये एक प्रक्रिया है...!

और हाँ...जबतक उस हत्यारे को गुनाहगार साबित कर सजा नहीं हो जाती.... आप उसे हत्यारा भी नहीं बोल सकते (भले ही खुद ने उसे गोली मारते क्यों न देखा हो)...क्योंकि,कानून की नजर में सजा मिलने से पहले तक वो बेगुनाह ही है.

यही झोल है पतंजलि के "कोरोनिल" में...

आपने सब बना लिया और उसका बहुत अच्छे से परीक्षण भी कर लिया..

लेकिन, आपका कोई भी परीक्षण मान्य नहीं है जब तक कि सरकारी एजेंसियाँ उसे अप्रूव ना कर दे.

अब ऐलोपैथिक दवाइयाँ...IP, BP और USP (पहला अक्षर देश और दूसरा अक्षर फार्माकोपया को इंगित करते हैं...जैसे कि Indian Pharmacopoeia) पर आधारित होती है इसीलिए उनकी अप्रूवल और रिकॉग्निशन भी आसानी से जल्दी हो जाती है.

लेकिन,आयुर्वेद या होमियोपैथ में ऐसा नहीं हो पाता क्योंकि आयुर्वेद हमारे धर्मग्रंथों से निकला हुआ चिकित्सा विज्ञान है.

यहाँ एक बात ध्यान दिला दूँ कि...आयुर्वेद की दवाई को बनाने के लिए ड्रग कंट्रोलर के किसी अप्रूवल की जरूरत नहीं होती है...

और...ना ही आयुर्वेदिक दवा को बेचने के लिए किसी ड्रग लाइसेंस की जरूरत होती है.

इसीलिए...जब आप आयुर्वेद की दवा से किसी बीमारी को ठीक करने का दावा करोगे तो सरकार उसका प्रूफ मांगेगी कि...
पहले हमको बताओ कि...दवाई में क्या-क्या मिलाया है और आप इस दवाई से फलानी बीमारी को कैसे ठीक कर दोगे???

और हाँ....जबतक आप अपना दावा सरकारी एजेंसी के सामने प्रूफ नहीं दो...तबतक आप दवाई तो बेच सकते हो नियम के तहत.

लेकिन...दवाई को इस दावे के साथ नहीं बेच सकते कि हम अपने इस दवाई से तुम्हारी फलानी बीमारी ठीक कर देंगे.

ये दावा तभी मान्य होगा जब सरकारी एजेंसियां भी आपके दिए तकनीकी रिपोर्ट और ट्रायल रिपोर्ट को मान कर उसकी पुष्टि न कर दे.

ये बहुत हद तक ऐसा ही है कि...आप कितने भी ज्ञानी और विद्वान क्यों न रहें....
आप तबतक ग्रेजुएट नहीं हो जबतक कि...आपके हाथ में किसी सरकारी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से प्राप्त "ग्रेजुएशन की डिग्री" नहीं हो.

इसीलिए...मेरे हिसाब से आयुष मंत्रालय या भारत सरकार की बात पर पॉपकॉर्न की तरह उछलते हुए ग़ालियाँ देने लगना और इसे ""इल्लुमिनाति-फिल्लुमिनाती" से जोड़ने लगना...महज अज्ञानता और शीघ्रपतन की निशानी है.

ये सब महज तकनीकी और टेम्पोररी समस्या है जिसे जल्द ही दूर कर ली जाएगी...!

इन सबके बीच हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि...जो दुनिया में कोई नहीं कर पाया उसे स्वामी रामदेव और उनकी टीम ने कर दिखाया.

जो भी भोंसडीवाले ज्ञानचंद स्वामी रामदेव के बारे में गलत सही बोल रहे हैं और उन्हें बनिया घोषित कर रहे हैं...उनके गान पर जमा के चार लात मारने की जरूरत है.

क्योंकि...."कोरोनिल" पतंजलि से ज्यादा हिंदुस्तान की उपलब्धि है.

बोफोर्स,राफेल,S400,डसॉल्ट एविएशन (राफेल वाला) आदि कंपनियों का नाम हम भले न जानें लेकिन उसका देश हम जरूर जानते हैं...क्योंकि, अच्छे और यूनिक प्रोडक्ट देश की प्रतिष्ठा बढ़ाते हैं.

और...पतंजलि एवं स्वामी रामदेव का ये "कोरोनिल" भी उसी कैटेगरी की दवा है...

क्योंकि,ये सफल है तो कल को दुनिया में यही कहा जायेगा कि ... जब पूरी दुनिया कोरोना नामक महामारी से मर रही थी तो उस समय भारत और भारत के आयुर्वेद ने दुनिया की जान बचाई थी.

ये ना सिर्फ .... हमारे देश की प्रतिष्ठा बढ़ाएगा बल्कि हमारे धर्मग्रंथ और आयुर्वेद को भी पुनर्स्थापित कर हमें विश्वगुरु बनाएगा.

इसीलिए... इस उपलब्धि के लिए हमें स्वामी रामदेव, उनकी टीम और पतंजलि पर गर्व करते हुए उनका आभार व्यक्त करना चाहिए.

जय महाकाल...!!!

नोट : मैं ANI का ट्वीट पोस्ट कर रहा हूँ ताकि आप लोग समझ सकें कि सरकार ने प्रोडक्ट पर बैन नहीं लगाया है बल्कि सिर्फ रिपोर्ट मांगी है.