Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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आखिर सत्ता का ऐसा रक्त-रंजित इतिहास कंही ओर देखने को नही मिलेगा...!!!
भाग : २

लगभग ढाई सदियों बाद हिंदुस्तान पर दूसरा इस्लामिक हमला हुआ। नौ बीवियों और सैंकड़ों गुलामों वाला महमूद गजनवी इस्लामी गाजियों में सोमनाथ तोड़ने वाला गाजी के नाम से मशहूर हुआ। जब इसके बाप ने इसे गद्दी ना देकर इसके भाई को दे दी, तो इसका गाजी दिल ऐसा आहत हुआ कि अपने ही भाई को गद्दी से उतार कर जेल में सड़ा कर मार डाला। महमूद गाजी जैसे ही अल्लाह को प्यारा हुआ, उसके बेटे मसूद और मुहम्मद में अगला गाजी बनने के लिए जंग छिड़ गयी। मसूद लड़ाई में अव्वल निकला। इस गाजी ने अपने भाई मुहम्मद की आँख निकाल ली, पर मुहम्मद ने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली थीं। इसने साजिश करके मुहम्मद के खिलाफ बगावत कर दी और उसे पकड़ लिया। कहानी यहीं खत्म नहीं हुई थी, मुहम्मद ने भाई मसूद को एक दिन मौका मिलते ही जन्नत की सैर पर भेज दिया और सुल्तान की गद्दी पर जा बैठा। लेकिन वक्त को कुछ और ही मंज़ूर था। मसूद का बेटा मदूद एक दिन बदला लेने आ पहुँचा। देखते ही देखते मदूद ने गाजी मुहम्मद सुल्तान को बंदी बना लिया और कत्ल कर दिया। भाई-भाई, बाप-बेटे, चाचा-भतीजे का यह लाजवाब प्यार आखिर किसके पत्थर दिल को मोम की तरह नही पिघला देगा..??

सुल्तान महमूद गजनवी के हमलों के १५० साल बाद तक हिंदुस्तान पर गाजियों का हमला नहीं हुआ। पहले गुर्जर नरेश भीमदेव व बाद में जाटों ने सिंध तक पहुँचते पहुँचते महमूद गजनवी को इतना पीटा कि इसने फिर कभी हिंदुस्तान की सरजमीं पर पैर न रखने की कसम खाई। सुल्तान के भतीजे की फौज को हिंदू लड़ाकों ने पैरों तले रौंद डाला। हिंदुस्तान पर अगला हमला गाजी सुल्तान मुहम्मद गौरी ने किया। लोमड़ी की तरह चालाक, ऊदबिलाव की तरह भद्दे और छिपकली के समान भौंडी चपलता का मालिक ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती इसका गुरु था। इसी के कहने पर गौरी हिंदुस्तान पर हमलावर हुआ और बलात्कारों और लाशों के नए कीर्तिमान बनाए गए। लाखों से पटी धरती और औरतों की कभी ना खत्म होने वाली चींखें इस मोईनुद्दीन चिश्ती का चमत्कार समझी गयीं, जिसके चलते लाखों काफ़िर अल्लाह के दीन में समा गए। हज़ारों काफिर औरतों को उठा लाने की मर्दानगी दिखाने वाला सुल्तान गौरी अपनी बीवियों को कभी एक वारिस तक नहीं दे पाया। इसके चलते आख़िरकार उसने अपने हरम के लौंडों कुतुबुद्दीन ऐबक, बख़्तियार ख़िलजी और कुछ और कमसिन लड़कों को अपना वारिस चुना, पर अल्लाह को कुछ और ही मंजूर था।

सुल्तान गौरी के ही रिश्तेदार अली मर्दान ने बख़्तियार खिलजी की बोटी-बोटी नुचवा डाली। उसका बेटा आराम शाह कुतुबुद्दीन ऐबक के बाद गद्दी पर बैठा ही था कि ऐबक के हरम के एक गुलाम लौंडे इल्तुत्मिश, जोकि इत्तेफाक से सुल्तान का दामाद भी था, ने उसका कत्ल कर दिया। हर बार की तरह इस बार भी सुल्तान का करीबी हरमी लौंडा सुल्तान को बिस्तर में दगा देकर खुद सुल्तान बन चुका था। इल्तुत्मिश ने अपनी बेटी रजिया सुल्तान को मुस्लिम सल्तनत सौंपी, मगर तभी उसके बेटे रुकूनुद्दीन ने धावा बोला और रजिया से गद्दी छीन ली। रजिया ने गुस्से में अपने भाई और उसकी माँ का कत्ल करवा दिया। इसी रजिया ने बाद में एक गुलाम लौंडे के साथ जिस्मानी संबंध कायम करके मुस्लिम सल्तनत की इज़्ज़त को चार चाँद लगाए। बाद में यही लौंडा रजिया का मुख्य सलाहकार बनाया गया। पर हाय री किस्मत, ना जाने अल्लाह ने मुस्लिम सुल्तानों की जिंदगियों में इतने इम्तेहान क्यों लिखे थे..??

पंजाब के गवर्नर अल्तूनिया ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। रजिया सुल्तान और उसके लौंडे आशिक को बंदी बना लिया गया। आशिक का बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया और रजिया सुल्तान को नए सुल्तान के बिस्तर पर इंतजार करने का फरमान मिला। इसी बीच रजिया के एक और भाई बहरम शाह ने दिल्ली का तख्त हथिया लिया। अल्तूनिया और रजिया ने विरोध किया मगर वो काट डाले गए। वक्त बीता मगर मुस्लिम सुल्तानों की शांति और भाईचारे की फितरत नहीं। बहरम शाह कत्ल कर दिया गया और मसूद शाह नया सुल्तान बन गया। मगर कुछ ही दिनों में यह सुल्तान भी अपने भाई नसीरूद्दीन और उसके दामाद बल्बन, अपने वक्त का मशहूर बलात्कारी और सुल्तान इल्तुत्मिश का मर्द महबूब के हाथों जलील होकर गद्दी से एक खटमल की तरह उतार कर मसल दिया गया। मुस्लिम सुल्तानों का इस्लामी भाईचारा यहीं नही थमा। दामाद बल्बन ने ससुर नसीरूद्दीन को जहर देकर जन्नत पहुँचा दिया और दिल्ली के तख्त पर कब्जा कर लिया। इसके बाद इसने अपने भाई शेरखान सीकर को भी १२८० में मार डाला।

१२८७ में इसने खुसरो को अपना वारिस घोषित किया जिसके मरने के बाद बल्बन का पोता कैकाबाद सुल्तान के तख्त पर बैठा, पर इस्लामी गाजी सेनापति जलालुद्दीन खिलजी ने सुल्तान और उसके तीन साल के बच्चे को जमीन में दफन कर दिया। और इस तरह मुस्लिम सुल्तानों के एक सुनहरे दौर "गुलाम-वंश" का खात्मा हुआ। वक्त, भाईचारे के एक और नए अध्याय "खिलजी-वंश" की तरफ़ बढ़ गया। अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान जलालुद्दीन का भतीजा था। अल्लाह के फजल से वह सुल्तान का दामाद भी बना। छिपकली के जैसी तेजी और तिलचट्टे जैसी एकाग्रता का मालिक अलाउद्दीन बहुत वक्त तक अपनी गैर इंसानी फ़ितरतो पर लगाम नही लगा सका। १२९६ में इसने अपने चाचा और ससुर अलाउद्दीन का सर धड़ से जुदा कर दिया। कटे सर को भाले की नोक पर उठाकर यह दिल्ली शहर में दाखिल हुआ। अल्ला-हु-अकबर के नारों के बीच एक मुस्लिम सुल्तान का सर दूसरे मुस्लिम सुल्तान के भाले पर लटकता हुआ मानों, इस्लामी भाईचारे और इंसानियत की नयी कहानी कह रहा था।
क्रमशः

#सल्तनत_काल

Sachin Tyagi