Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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25 जून 1975 स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला दिन था आज ही के दिन फासीवादी इंदिरा ने आपातकाल लागु कर भारत के लोकतंत्र का गला घोंट दिया था,

⭕ इंदिरा द्वारा आपातकाल लगाने का प्रमुख कारण था इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा इंदिरा को उसके लोकसभा चुनाव में धांधली का दोषी पाया जाना, कोर्ट में ये सिद्ध हो गया था कि इंदिरा रायबरेली सीट से फर्जीवाड़े द्वारा चुनाव जीत के आयी है, जिसके परिणामस्वरूप इलाहाबाद हाईकोर्ट ने
इंदिरा गांधी के रायबरेली सीट से चुनाव को न केवल खारिज किया बल्कि अगले 6 वर्षों के लिए इंदिरा को किसी चुनाव सम्मिलित होने से भी प्रतिबंधीत कर दिया, इंदिरा के सांसद होने के सभी विशेषाधिकार वापस ले लिए गए, यहाँ तक कि इंदिरा का चुनावी धांधली का अपराध इतना संगीन था कि इंदिरा से कोर्ट ने उसका वोट देने का अधिकार भी छीन लिया था,

⭕ इसके पूर्व स्थिति ये थी की कांग्रेस इंदिरा के नेतृत्व में निरंतर कमज़ोर होती जा रही थी, 8 राज्यों की सत्ता खो चुकी थी, क्षेत्रीय पार्टियां और जनसंघ से सीधा सामना इंदिरा व् कांग्रेस को भारी पड़ रहा था, और कांग्रेस व् इंदिरा इनके सामने धीरे धीरे अपनी चमक, लोकप्रियता, पहुँच व् शक्ति खोती जा रही थी, और ऐसे में इलाहबाद हाईकोर्ट का निर्णय कांग्रस व् इंदिरा के राजनितिक भविष्य का डब्बा गोल करने के लिए पर्याप्त था, अतः इंदिरा ने आधी रात को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से कहकर आपातकाल लागु करने को कहा जिसे फखरुद्दीन ने बिना कोई प्रश्न पूछे कोई विरोध किये तुरन्त स्वीकार लिया, और आपातकाल लागु कर दिया,

⭕ अब भारत के हर नागरिक के मौलिक अधिकार, नागरिक स्वतंत्रता, बोलने व् अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लग चुकी थी, इंदिरा ने देश के सामने नौटँकी करते हुए कहा कि “देश में आपातकाल इसलिए लागु किया गया है क्योंकि देश के विरुद्ध षड्यंत्र रचे जा रहे थे और विभाजनकारी व् सांप्रदायिक शक्तियों से इण्डिया की एकता को खतरा है” जबकि वास्तव में ऐसा कुछ था ही नहीं खतरे में इंडिया कि एकता नहीं बल्कि इंदिरा कि सत्ता थी,
देश बचाने के जुमले के नाम पर इंदिरा ने देश के प्राण, उसकी आत्मा व् उसकी पहचान यानी लोकतंत्र की ही हत्या कर दी, अब भारत में नागरिक स्वतंत्रता,मौलिक अधिकार, बोलने व् अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता समाप्त की जा चुकी थी, आपातकाल को परिभाषित करें तो वो एक राजनितिक आतंकवादी इंदिरा द्वारा अवैध रूप से देश की सत्ता पर काबिज रहने का तानशाही प्रयास था, जिसके अंतर्गत प्रत्येक असहमति के स्वर का दमन कर दिया गया, आपातकाल द्वारा भारत का वातावरण ही परिवर्तित कर दिया गया था, जनसंघ व् सभी विपक्ष के नेताओं, छात्र नेताओं और व्यापार संघ के नेताओं को चुन-चुनकर उठाया गया और जेलों में ठूंस दिया गया,

⭕ परिवारवादी तानाशाही ने जनता के जनतंत्र पर कब्जा कर लिया था, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, आईबी व् सीबीआई अब देश की सुरक्षा नहीं इंदिरा व् संजय गांधी कि अवैध सत्ता कि सुरक्षा व् सेवा में लगे थे, लोगों को टैक्स नोटिस द्वारा काबू में किया जाता था, आधी रात को घर से उठाकर प्रताडित व् टॉर्चर किया जाता था, वो भी इस स्तर तक की वो स्वयं ही आपातकाल के जेल काल को आलिंगनबद्ध करे और खुद को CIA का एजेंट स्वीकार ले, ऐसा इसलिए क्योंकि तब कम से कम इन बंदियों के संग हिरासत में मारपीट तो नहीं होगी बस जेल होगी,

⭕ इंदिरा की औलाद संजय गांधी के पहनावे की नकल करते हुए छुटभैय्ये कांग्रेसी नेता धन उगाही व् हफ्ता वसूली के रैकेट चलाने लगे थे, और कहीं शिकायत नहीं कि जा सकती थी कहीं कोई सुनवाई नहीं होती थी क्योंकि जनता के पास से बराबरी का अधिकार(आर्टिकल 14), प्राण व् सम्पत्ति की सुरक्षा का अधिकार(आर्टिकल 21), कारावास काल में सुरक्षा(आर्टिकल 22) कांग्रेस द्वारा छीने जा चुके थे, मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हो रहा था, दमनकारी कानून बनाये जा रहे थे,
प्रत्येक विरोध को पैरा मिलिटरी ऑपरेशन द्वारा कुचला जा रहा था, हजारों लोगो को तुगलकी MISA(मेंटेनेंस ऑफ़ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) कानून के अंतर्गत बन्दी बनाया जा रहा था,

⭕ किन्तु ये भी पर्याप्त न लगा तो संविधान में ही संशोधन कर अनाप शनाप क्लॉज़ डलवाये जिनके अनुरूप कोई भी कोर्ट प्रधानमंत्री के निर्वाचन को चुनौती नही दे सकता, न्यायपालिका आपातकाल का रिव्यू नही कर सकती, संविधान संशोधन द्वारा भारत को सोवरेन सोशलिस्ट सेक्युलर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक बना दिया गया जिसका दंश भारत देश व् इसके नागरिक आज भी झेल रहे हैं, भारत में सोवियत स्टाइल का आक्रामक प्रोपगैंडा चलाया गया जिसमें नेतृत्व के प्रति असंतुष्टि, अविश्वास व् असहमति को अपराध की श्रेणी में स्थान दिया गया, सुप्रीम कोर्ट को इंदिरा ने अपने चाटुकारों से भर दिया जो उसके अवैध शासन को सहयोग प्रदान कर रहे थे व् इलाहाबाद हाईकोर्ट के इंदिरा के विरुद्ध आये निर्णय को पलटने में लगे थे यहाँ तक की बन्दी प्रत्यक्षीकरण भी छीन लिया गया था,

⭕ प्रेस की स्थिति भी दयनीय थी प्रिंट, टेलीविजन व् रेडियो मिडिया इन सबके ही गले में फंदा डालने में कोई कोर कसर बाकि नहीं छोड़ी थी कांग्रेस व् इंदिरा ने, स्थिति ये थी की समाचार पत्रों को इमरजेंसी लागू होने की जानकारी न छापने देने के लिए दिल्ली स्थित समाचार पत्रों की बिल्डिंगों की बिजली सप्पलाई तक काट दी गयी थी, केवल स्टेट्समैन व् हिंदुस्तान टाइम्स ही अगले दिन समाचारपत्र प्रकाशित कर पाए थे, सम्पादकों को अपनी अपनी मंशा व् अपनी खबरें कांग्रेस व् इंदिरा के सामने घोषित करने को बाध्य किया गया था, न्यूज़ किस प्रकार की होगी इसका निर्णय इंदिरा व् कांग्रेस करते थे, मिडिया पर दबाव बनाकर इंदिरा के पक्ष में प्रोपगैंडा चलाया जाने लगा था और प्रेस काउंसिल एक महत्वहीन व् निरर्थक संस्था हो चुकी थी, इंदिरा को केवल चाटुकारों की भीड़ चाहिए थी और वही उसको घेरे रहते थे जो असहमति दर्शाता वो सीधे जेल जाता था,

⭕ 1,00,000 से अधिक लोगों को इस काल खण्ड में इंदिरा व् कांग्रेज़ ने जेल में डाला था जिसमे से 2000 पत्रकार थे, लोगों में भय व्याप्त था, इंडीयन एक्सप्रेस और स्टेट्समैन ही थे जो विरोध कर रहे थे अपना सम्पादकीय पृष्ठ प्रतिकार के रूप में खाली रखकर, कई पत्रिकाएं मैग्ज़ीन प्रतिबन्धित कर दी गईं थी, वाशिंगटन पोस्ट, लॉस एंजिलिस टाइम्स, टेलीग्राफ के संवाददाताओं को देश से निष्कासित कर दिया गया था, बीबीसी ने स्वयं अपने संवाददाता मार्क टुली को वापस बुला लिया था, व् इकोनॉमिस्ट व् गार्डियन के संवाददाता स्वयं भय के कारण देश छोड़कर चले गए थे, इमरजेंसी विरोधी साहित्य प्रकाशित करने व् बाँटने के विरुद्ध में संघ के करीब 7000 लोग बंदी बना लिए गए थे,

⭕ उस समय RSS ने अपना बड़ा नेटवर्क इंदिरा व् आपातकाल के विरुद्ध एक अंडर ग्राउंड मूवमेंट चलाने हेतु लगाया था, और इंदिरा ने इसी वजह से आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया था, किन्तु वो प्रतिबन्ध भी स्वयंसेवकों को अपने पथ से न डिगा सका उस समय इकोनॉमिस्ट ने संघ को “ओनली नॉन-लेफ्ट रिविल्युशनरी फ़ोर्स इन वर्ल्ड” की संज्ञा दी थी, संघ का उस समय एकमात्र उद्देश्य था भारत में लोकतंत्र वापस लाना, इसके अलावा अकाली थे जो आपातकाल का विरोध करते दिख रहे थे,

⭕ कांग्रस ने गायक किशोर कुमार को संजय व् इंदिरा के निमंत्रण पर आकर पार्टी में गाना न गाने के अपराध में आल इंडिया रेडियो पर उनके गाने प्रतिबंधित कर दिए थे, आपातकाल का विरोध कर रहे रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की इंदिरा ने बर्बरता से पिटाई करवाई थी, जयपुर की महारानी तक को बंदी बना लिया था इंदिरा ने,

⭕ किसान की जमीन सरकार बिना किसी मुआवज़े के अधिग्रहित कर सकती है जैसा अन्यायपूर्ण कानून इंदिरा ने उसी काल में बनाया था,

⭕ सबसे बड़ी चोट देश के संविधान को मारी गयी थी जब भारत के लोकतंत्र और संविधान की हत्या करने वाली राजनीतिक आतंकवादी आतातायी इंदिरा गांधी उर्फ़ "एजेंट वानो" ने अपने परिवार को मिले सोवियत धन का कर्ज चुकाने के लिए, तानाशाही करते हुए देश पर आपातकाल थोपकर, बिना कैबिनेट की मंजूरी लिए, बिना संसद में कोई चर्चा और वोटिंग करवाये रात के 2:00 बजे देश के संविधान में अवैध रूप से 42वां संशोधन करके जबरदस्ती, गैरकानूनी व् असंवैधानिक तरीके से "सेक्युलर" और "सोशलिस्ट" शब्द घुसेड़ दिया, और देश के सिस्टम का ताना बाना ही विकृत कर दिया, जबकि संविधान की मूल प्रति जिसे बी.एन राव, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, वि.टी कृष्णमोचरी, हरेंद्र कुमार मुखर्जी, नेहरु और अंबेडकर ने स्वीकृत क्या था, उसमे इस"सेक्युलर" और "सोशलिस्ट" शब्द का कहीं कोई अस्तित्व ही नहीं था,

⭕ देश की अर्थव्यवस्था और विकास का पहिया चलाने वाले और जनता को सर्वाधिक रोजगार देने वाले कोर्पोरेट्स, उद्योगजगत व् व्यवसायियों पर 97.5% का टैक्स थोप कर उनको लूटने की नीति भी इंदिरा और कांग्रेस ने बनायी थी, इसी कारण टैक्स टेररिज़्म जैसा शब्द प्रचलित हुआ और लोगों ने टैक्स चोरी शुरू की,

⭕ स्नेहलता रेड्डी जैसे कई निर्दोषों को इंदिरा व् कांग्रेस ने जेल में हिरासत में ही मरवा दिया था

⭕ लाखों लोगों की जबदस्ती नसबंदी करवाई थी इंदिरा ने जिसमे 16 वर्ष के लड़के तक शामिल थे, इसी समय बर्बरतापूर्ण तुर्कमान गेट पर नरसंहार भी करवाया गया था कांग्रेस ने,

⭕ इंदिरा के चाटुकार और संजय गांधी के करीबी लोग देश में जो चाहे कर सकते थे इनमें रुखसाना सुल्ताना, कमलनाथ, जगदीश टाइटलर, जैसे लोग थे,
वही दूसरी ओर रामनाथ गोयनका जैसे थे जिन्होंने झुकना नहीं स्वीकारा तो उनको दंड मिला व् भारी कीमत चुकानी पड़ी, जबकि चाटुकार इंडस्ट्रियलिस्ट राजनितिक आतंकवादी व् टैक्स आतंकवादी इंदिरा की कृपा से मज़े मारते रहे, इंदिरा भारत के लोगों का न केवल दमन करती रही बल्कि 97.5 प्रतिशत टैक्स लगाकर जनता को लूटती भी रही, इसिके कारण देश में टैक्स चोरी की स्थिति इतनी भयावह बनी,

⭕ इंदिरा को न राजनीती की समझ थी न कूटनीति की, जब सेना पाकिस्तान के दो टुकड़े कर आई थी तो इंदिरा को सेना के अधिक शक्तिशाली होने का भय सताने लगा और उसने OROP वन रैंक वन पेंशन बन्द कर सेना की पीठ में छुरा भोंक कर उसे अपनी वीरता का पुरूस्कार दिया था,
शिमला समझौते में इंदिरा के हाथ में 94,000 पाकिस्तानी सैनिक बंदी होने के बावजूद इंदिरा बिना कश्मीर वापस लिए पाकिस्तानियों को उनकी आधी सेना वापस कर चली आई,

⭕ ईस्ट पाकिस्तान पर विजय प्राप्त करने के बाद उसे बंगाल में विलय कर भारत का हिस्सा बनाने के बदले इंदिरा द्वारा इसे एक अलग इस्लामिक देश बना दिया गया ,

⭕ 1974 में इंदिरा पाकिस्तान को परमाणु हथियार बनाने की तकनीक देने वाली थी किन्तु सुरक्षा एजेंसियों ने किसी प्रकार रोक लिया

⭕ आपातकाल से पूर्व 7 नवम्बर 1966 को गोपाष्टमी की तिथि पर इसी इंदिरा व् कांग्रेस ने करपात्री महाराज के नेतृत्व में दिल्ली में संसद भवन के बाहर गौहत्या प्रतिबंधित करने के कानून की मांग कर रहे 5000 गौरक्षक साधु-संतों महिलाओं व बच्चों के नरसंहार को भी अंजाम दिया था जिसे मीडिया में अपनी पकड़ के कारण इंदिरा ने दबा दिया और आजतक उस बर्बर नरसंहार के सत्य से देश का एक बड़ा वर्ग अनभिज्ञ ही है।

⭕ इंदिरा का निजी जीवन भी विवादग्रस्त रहा और बहुत सी आपत्तिजनक बातों से भरा था जो सभ्य समाज में अस्वीकार्य हैं किंतु यहाँ मैं उसके चरित्र पर कोई टिप्पड़ी नहीं करना चाहूंगा,

⭕ 1977 में जब इंदिरा ने चुनाव करवाये तो मुंह की खानी पड़ी और पराजय का स्वाद चखने को मिला जनता ने अन्याय का उत्तर दे दिया था,
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