#आधुनिकता_बनी_अश्लीलता...
हो रहीं बर्बाद कितनी, बेटियाँ टिक-टॉक से,
दे रही हैं शॉक निज, माँ-बाप को इस शौक़ से।
पश्चिमी इस सभ्यता की, ऐसी है दीवानगी,
लड़कियों में बढ़ रही है, देखिये आवारगी।
नग्न होकर घूमना, फ़ैशन यहाँ पर बन रहा,
संस्कारों से भयंकर, युद्ध देखो ठन रहा।
आधुनिकता लग रही, है बन्धनों को तोड़ दो,
नग्न होकर घूम लो, लज्जा, शरम सब छोड़ दो।
आधुनिकता है कि कपड़े, जितने होंगे तंग जी,
सभ्य कहलाओगे जब, ज्यादा दिखेंगे अंग जी।
दारू और सिगरेट पीना, आधुनिकता हो गया,
संस्कारों का वो पावन, युग कहाँ पर खो गया।
पब में मस्ती ख़ूब करना, रात-दिन बस घूमना,
वासना के वेग में, अधरों को खुलकर चूमना।
आधुनिकता हो गया है, "काम" में ही रत रहो,
जिस तरह तुमको मिले, बस नाम में ही रत रहो।
अपने फ़ोटो वीडियो अश्लील, फैलाओ यहाँ,
अपनी इज्ज़त को गँवाकर, नाम को पाओ यहाँ।
जी रहे अभिमान से माँ-बाप, जो हैं आपके,
मारती हो तुम तमाचा, इस तरह माँ-बाप के।
तानकर मूछें यहाँ जो, घूमते अभिमान से,
बाप और भाई का चेहरा, देख लो तुम ध्यान से।
आधुनिक चीज़ों को भोगो, शुद्ध अपना मन करो,
इसकी ख़ातिर तुम कभी, नँगा न अपना तन करो।
ख़ूब इंटरनेट का, उपयोग कर लो तुम सभी,
किन्तु अपने जिस्म की, करना नुमाइश ना कभी।
अपने पैरों पर चलो तुम, सारी दुनियाँ घूम लो,
ख़ूब उड़ जाओ गगन में, हर शिखर को चूम लो।
ख़ूब मोबाइल चलाओ, ख़ूब ले लो गाड़ियाँ,
किन्तु तन ढककर रहो, छोड़ो न अपनी साड़ियाँ।
वासना के वेग में इतना अधिक, तुम ना बहो,
शक़्ल अपनी तुम दिखाने, के भी लायक ना रहो।
ज़िन्दगी फ़िल्मी नहीं है, वास्तविकता और है,
सावधानी तुम रखो, बेहद पतन का दौर है।
प्रेम हरदम सच न होता, है क़भी यह वासना,
है कभी जेहाद केवल, लक्ष्य जिसका फांसना।
प्रेम करना या न करना, व्यक्तिगत है जिंदगी,
किन्तु उसके नाम पर, तुम बन न जाओ गंदगी।
सिंह को जन लो मग़र, तुम श्वान को जनना नहीं,
वीरांगना बन जाओ पर, वारांगना बनना नहीं।
हर एक बहन होती सुनो, भाई की अपने शान है,
बेटी यहाँ होती सदा, माँ-बाप का अभिमान है।
मॉडर्न का नारा लिये, तुम नग्नता धारो नहीं,
जीते जी माता-पिता को, इस तरह मारो नहीं।
है ये झूठी आधुनिकता, इससे ख़ुद को मोड़ दो,
भारत की प्यारी बेटियो!, इस नग्नता को छोड़ दो।।
कृपया ज्यादा से ज्यादा कॉपी या #शेयर_करें और अपने सनातन संस्कृति को बचाए,
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