पूर्वोत्तर के एक राज्य त्रिपुरा में पुरातात्विक सामग्रियों की भरमार है. . .
उनमें से उत्तरी त्रिपुरा के उनकोटि जिले के कैलाशहर महकमे के सदर मुख्यालय से नौ कि.मी.की दूरी पर जंगलों से घिरे हुए एक पहाड़ी क्षेत्र में स्थित शैव भूमि विशेष रूप से उल्लेखनीय है.इसे उनकोटी मंदिर ही कहा जाता है.
इस क्षेत्र के चारों ओर प्राकृतिक सुंदरता बिखरे पड़े हैं.पास ही में एक बारहों महीने बहनेवाली जलधारा है.यहाँ पहाड़ों में काटकर विशाल शिवजी की मूर्ति बनी हुई है साथ ही छोटी-मोटी अनेक मूर्तियाँ और अनेक प्रकार की कलाकृतियाँ हैं.आज-कल तो सिमट गया है,पर विद्वानों का मानना है कि यह इलाका दस कि.मी.तक फैला हुआ था.इसे सातवीं या आठवीं शती का माना जाता है.
नौवीं से बारहवीं शती तक कामरूप में पालवंशी राजाओं का शासन था.माना जाता है कि तब यहाँ पूर्ण जनसमागम होता था.
यहाँ मूर्तियाँ दो तरह की हैं-पाषाण मूर्तियाँ और चट्टानों पर काटकर बनानेवाली मूर्तियाँ.पूरे इलाके में कहीं आधी टूटी हुई,कहीं ज़मीन पर गिरी हुई,तो कहीं आधी ज़मीन पर गाढ़ी हुई अनेक मूर्तियाँ बिखरी पड़ी हैं.
उनमें से नंदी,नारायण,ब्रह्मा,विष्णु,महेश्वर,नरसिंह,रावण,हनुमान,सूर्य कहे जानेवाले एक त्रिनेत्र मूर्ति,चतुर्मुख शिवलिंग आदि के साथ साथ अनेक अपरिचित मूर्तियाँ हैं जो जलधार के आस-पास यहाँ-वहाँ विश्रृंखल अवस्था में हैं.
यहाँ शिवजी का विशाल मुखमंडल बना हुआ है जो सबसे ज्यादा आकर्षक है.पास ही माता दुर्गा और अन्य एक सिंह पर सवार देवी मूर्ति है.
विद्वान कहते हैं यहाँ की मूर्तियों में तांत्रिक हठयोग,शक्ति साधना आदि का भी प्रभाव है.नए खोजों से आज-कल इसमें बौद्ध प्रभाव की भी बात कही जा रही है.
जो भी हो यह भक्तों के लिए एक उल्लेखनीय तीर्थस्थल है.कोई धार्मिक दृष्टि से न भी जायें तो ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से भी यह स्थान उल्लेखनीय है. . .