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भारत में ईसाई संगठन और मुस्लिम संगठन साथ मिलकर हिंदुओं के खिलाफ जहर उगलते हैं

लेकिन भारत के ईसाई संगठन और मुस्लिम संगठन इस्तांबुल के डेढ़ हजार साल पुराने सोफिया हयात चर्च को तुर्की सरकार द्वारा मस्जिद में बदलने के फैसले पर एकदम चुप्पी साध रखी है

किसी जमाने में तुर्की सहित पूरा मिडिल ईस्ट रोमन साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था

सम्राट जस्टिनियन ने सन 532 में एक भव्य चर्च के निर्माण का आदेश दिया था, उन दिनों इस्तांबूल को कॉन्सटेनटिनोपोल या कस्तुनतुनिया के नाम से जाना जाता था, यह बाइज़ैन्टाइन साम्राज्य की राजधानी था जिसे पूरब का रोमन साम्राज्य भी कहा जाता था.

इस शानदार इमारत को बनाने के लिए दूर-दूर से निर्माण सामग्री और इंजीनियर लगाए गए थे. यह तुर्की के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है.

यह चर्च पाँच साल में बनकर 537 में पूरा हुआ, यह ऑर्थोडॉक्स इसाइयत को मानने वालों का अहम केंद्र तो बन ही गया, बाइज़ैन्टाइन साम्राज्य की ताक़त का भी प्रतीक बन गया, राज्यभिषेक जैसे अहम समारोह इसी चर्च में होते रहे.

हागिया सोफ़िया जिसका मतलब है 'पवित्र विवेक', यह इमारत क़रीब 900 साल तक ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च का मुख्यालय रही.

1453 में इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य के सुल्तान मेहमद द्वितीय ने कस्तुनतुनिया पर कब्ज़ा कर लिया, उसका नाम बदलकर इस्तांबूल कर दिया और इस तरह बाइज़ैन्टाइन साम्राज्य का खात्मा हमेशा के लिए हो गया.

सुल्तान मेहमद ने आदेश दिया कि हागिया सोफ़िया की मरम्मत की जाए और उसे एक मस्जिद में तब्दली कर दिया जाए. इसमें पहले जुमे की नमाज़ में सुल्तान ख़ुद शामिल हुए. ऑटोमन साम्राज्य को सल्तनत-ए-उस्मानिया भी कहा जाता है.

इस्लामी वास्तुकारों ने ईसायत की ज़्यादातर निशानियों को तोड़ दिया या फिर उनके ऊपर प्लास्टर की परत चढ़ा दी. पहले यह सिर्फ़ एक गुंबद वाली इमारत थी लेकिन इस्लामी शैली की छह मीनारें भी इसके बाहर खड़ी कर दी गईं.

17वीं सदी में बनी तुर्की की मशहूर नीली मस्जिद सहित दुनिया की कई मशहूर इमारतों के डिज़ाइन की प्रेरणा हागिया सोफ़िया को ही बताया जाता है.

पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा, साम्राज्य को विजेताओं ने कई टुकड़ों में बाँट दिया. मौजूदा तुर्की उसी ध्वस्त ऑटोमन साम्राज्य की नींव पर खड़ा है.

आधुनिक तुर्की के निर्माता कहे जाने वाले मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया और इसी सिलसिले में हागिया सोफिया को मस्जिद से म्यूज़ियम में बदल दिया. 1935 में इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया तब से यह दुनिया के प्रमुख पर्यटन स्थलों में एक रहा है.

करीब डेढ़ हज़ार साल के इतिहास की वजह से तुर्की ही नहीं, उसके बाहर के लोगों के लिए भी बहुत अहमियत रखता है, खास तौर पर ग्रीस के ईसाइयों और दुनिया भर के मुसलमानो के लिए.

तुर्की में 1934 में बने कानून के खिलाफ़ लगातार प्रदर्शन होते रहे हैं जिसके तहत हागिया सोफिया में नमाज़ पढ़ने या किसी अन्य धार्मिक आयोजन पर पाबंदी है.

राष्ट्रपति एर्दोआन ने इन इस्लामी भावनाओं का समर्थन किया है और हागिया सोफ़िया को म्यूज़ियम बनाने के फैसले को ऐतिहासिक गलती बताते रहे हैं, वे लगातार कोशिशें करते रहे हैं कि इसे दोबारा मस्जिद बना दिया जाए.

वर्तमान तुर्की के राष्ट्रपति कट्टर मुस्लिम एर्डोगन तैयब ने अपने चुनाव प्रचार के मुख्य मुद्दे में एक मुद्दा यह भी बनाया था कि यदि वह तुर्की के राष्ट्रपति बने तब सोफिया हयात चर्च को वापस मस्जिद में बदल देंगे और यहां मुसलमानों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी जाएगी

सोचिए हर देशों में मुस्लिम महा कट्टर से बढ़कर अति कट्टर होते जा रहे हैं अब उन्हें दूसरे धर्मों के निशानिया बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं हो रही है ...पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में बनने वाले कृष्ण मंदिर को ढहा दिया गया वहां नीव के ऊपर खड़े होकर अजान अदा की गई इतना ही नहीं पाकिस्तान के तबलीगी जमात के एक मौलवी ने ऐलान किया है कि वह आने वाले बकरीद पर वहां गाय की कुर्बानी देकर उस जगह को फिर से पवित्र करेगा

और इधर भारत में न्यायपालिका से लेकर तमाम नेता वोट बैंक के लिए कट्टरपंथी मुस्लिमों को तो बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन जब बात हिंदुओं की आती है तो एकदम चुप हो जाते हैं

मुझे याद है कुछ साल पहले अपने चैनल पर एनडीटीवी पर जब संघ के विचारक राकेश सिन्हा थे और उन्होंने भारत में मुस्लिमों की बढ़ती आबादी का डाटा दिया तब रवीश कुमार ने उसे सवाल किया था कि सिन्हा जी आखिर क्या हो जाएगा जब भारत में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे

रवीश कुमार को अपने इस सवाल का जवाब न जाने कितनी बार मिला है लेकिन पता नहीं क्यों सेकुलर सूअर नामक प्रजाति सिर्फ हिंदुओं में ही पाई जाती है

जितेंद्र प्रताप सिंह