TRAFFIC India, जो भारत में इललीगल वाइल्डलाइफ ट्रेड पर नियंत्रण रखने सम्बंधित संस्था है, के हेड डॉ नीरज शेखर, IFS ने हमें वाइल्डलाइफ फोरेंसिक से सम्बंधित ट्रेनिंग दिलवाने के लिए एक्सपर्ट ट्रेनर के रूप में आमंत्रित किया था। वहीं हमारी मुलाकात हुई डॉ मनोज कुमार सरकार से जो IFS हैं, और उस समय 2014 में तमिलनाडु वन विभाग में सीनियर पद पर आसीन थे।
वैसे तो बहुत अधिकारी पदाधिकारी मिलते रहते हैं। किंतु डॉ सरकार की बात ही अलग थी। पंच सितारा होटल के उस कमरे के बगल में जिसमे हमें ठहराया गया था, डॉ सरकार का कमरा था जहाँ उन्होंने अपने पलंग के बाजू में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की प्रतिमा की स्थापना कर दी थी और उनके समक्ष सुंगधित धूप दीप जला दिया था। उनके कमरे से उठती महक ने ही हमे उस ओर बरबस खींच लिया था। और तब हुई थी डॉ सरकार से पहली मुलाकात।
उसी मुलाकात में पता चला कि डॉ सरकार वास्तव में एक संत ही थे। उनकी बायोडायवर्सिटी गवर्नेंस नामक किताब का विमोचन 2012 में CBD के अंतरराष्ट्रीय मंच पर हो चुका था।
हमने उस किताब को देखा। वह तो मेडिसिनल प्लांट्स का पूरा ग्रथ था!! यही वह समय था जब डॉ सरकार के साथ मिलकर हमने BioGov नामक संस्था की स्थापना का सपना देखा और उसकी नींव डाली। खैर BioGov की बात फिर कभी। इस संस्था से तो जल्दी ही पूरे देश को जुड़ने की अपील मैं स्वयं करूँगा। शीघ्र करूँगा।
आज बताते हैं वो बात जिसको बताने के लिए यह पोस्ट लिख रहे हैं।
वर्ष 2014 में डॉ सरकार के साथ मिलकर हमने उनके मेडिसिनल प्लांट्स के कार्य को आधुनिकतम रूप में आगे बढाने का निर्णय लिया। विचार था कि हमारी 2003 की खोज यूनिवर्सल प्राइमर टेक्नोलॉजी की तरह एक सर्विस मॉड्यूल को डेवेलोप किया जाए जहां हमारे विलक्षण औषधीय पौधों का लीगल फ्रेमवर्क तैयार हो। ताकि भारत हमारी प्राचीनतम वनस्पतियों विलक्षण जड़ी बूटियों को अपना कह सके और चीन जैसे अवसरवादी देश हमारी वानस्पतिक सम्पदा पर अपनी मोहर लगा कर गैरकानूनी रूप से हड़प न पाये। खैर यह बात भी फिर कभी क्योंकि अब यह भारत सरकार का बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है जिसको पिछले दो वर्षों से मैं अन्य वैज्ञानिकों के साथ लीड कर रहा हूँ और उसकी आधिकारिक घोषणा विस्तार के साथ समय आने पर सरकार एवं मेरी मातृ संस्था ही करेगी।
आते है आज की पोस्ट पर।
मेडिसिनल प्लांट्स पर काम करते करते हमने पाया कि इस क्षेत्र में सबसे बड़ी जो दुविधा थी वह था जड़ी बूटियों के सुगंधित पौधों, उनके चूर्ण और अन्य सूखे हुए भागों से DNA निकालना! वैसे तो DNA निकालना आज 2020 में कोई राकेट साइंस नही है किंतु वानस्पतिक पौधों से DNA निकालना है, क्योंकि जब इन जड़ी बूटियों के पौधों से DNA निकाला जाता है तो उसके साथ लाल पीले नीले हरे न जाने क्या क्या रंग के अन्य केमिकल कंपाउंड भी निकल आते हैं जो DNA से बुरी तरह चिपक जाते हैं। और काले पीले रंग का वह DNA तब किसी काम का नही रहता।
समस्या यह थी कि अब इस DNA को शुद्ध कैसे करें?
इसके लिए हमने जितने तरीके हमें ज्ञात थे सब टेस्ट कर डाले। अलग अलग विधियों से DNA निकाला किन्तु कुछ लाभ न हुआ! बिना DNA तो बात आगे नही बढ़नी थी।
तभी हमको ईश्वर ने न जाने कहाँ से संज्ञान दिया। कि यदि गौं वंश के वसा निकले हुए दूध से वनस्पतियों को ट्रीट किया जाए तो शायद DNA की सारी अशुद्धियां दूध के कणों में अवशोषित हो जाये और शुद्ध DNA निकल आये!
आयुर्वेद में गऊँ के दुग्ध से कुंजल क्रिया भी तो इसीलिए की जाती है ताकि आंत औजड़ियों की गंदगी गौं दुग्ध अपने अंदर खींच कर बाहर निकाल दे।
बस इसी विचार के साथ हमने गौ दुग्ध मंगवाया और उससे औषधीय पौधों को उपचारित करना शुरू कर दिया।
इस दुग्ध स्नान के बाद जब उन वनस्पतियों से DNA निकाला गया तो हमारे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा।
बिल्कुल उजला, निर्मल DNA निकल कर आया था !!
कम से कम 2 वर्षो तक लगातार असफल होने के बाद हमें सूत्र मिल गया था। अंत में गौं वंश ने ही हमारी सबसे बड़ी दुविधा हल की थी।
इसके बाद हमने इस प्रक्रिया के वैज्ञानिक कारणों को खोजा कि आखिर ऐसा होता कैसे है।
यह खोजने के बाद हमने दर्जनों मेडिसिनल जड़ी बूटियों पर इस प्रयोग को लगाया। प्रयोग बिल्कुल सफल था।
इसके बाद लगभग दो वर्षो तक मेरे सभी विद्यार्थी इसी विधि को प्रयोग करके मेडिसिनल प्लांट्स का DNA निकालते रहे। मजे की बात यह रही कि उनमे से किसी को यह नही पता था कि जो सफेद सफेद तरल जो मैं उनको reagent बोतल में भर कर देता हूँ वह है क्या! मैंने उनको बताया था कि यह "reagent A" है। उनके सपने में भी नही आया होगा कि चमत्कारी रूप से DNA को शुद्ध कर देने वाला यह "reagent A" और कुछ नही गौं वंश का वसा निकला हुआ दूध है !!
खैर, आज हमारी यह खोज नेचर ग्रुप के जर्नल साइंटिफिक रिपोर्टस में छपी है। इसी पेपर में हमने वनस्पतियों के DNA का अध्ययन कर यह संकेत भी दिए हैं कि किस प्रकार फर्जी जड़ी बूटियों को दूसरे नाम से बाजार में उतारा जा चुका है और महंगी जड़ी बूटी कह कर बेचा जा रहा है। हमारे इस पेपर को पूरे एक वर्ष तक विश्व के आठ दस वैज्ञानिको ने पाँच बार रिव्यु किया था तब इसको स्वीकार किया।
यह तो एक शुरुवात है। छह वर्ष पहले शुरू हुई यात्रा पहले पड़ाव तक पहुंची है। आगे इस दिशा में भारत को आत्म निर्भर बनाने के लिए बहुत कुछ करना है।
मेरे सभी विद्यार्थियों और सहयोगियों को बहुत बहुत शुभकामनाये । मेरी मातृ संस्था और गुरुजनों का हृदय तल से आभार। भारत माता की जय। गौं वंश की जय। भारतीय जड़ी बूटियों विलक्षण औषधियों की जय। भारतीय पुरातन ज्ञान विज्ञान की जय।