आखिर कौन थी इस्लामिक आँधी को रोकने वाली प्रथम भारतीय वीरांगना...!!!
११७३ ई. में अलाउद्दीन के भतीजे गयासुद्दीन और शहाबुद्दीन शासक बने। पूर्वी प्रान्त का शासक शहाबुद्दीन पहला गौर शासक बना। यही वो मोहम्मद गोरी है जिसने गजनी के मोहम्मद के जैसे भारत पर लगातार तीस वर्ष तक हमले किये।
१०२६ ई. से ११७४ ई. तक की डेढ़ शताब्दी में शेष भारत पर कोई आक्रमण नहीं हुआ। लेकिन संक्रमण के राजनीतिक प्रभाव से स्थिति इतनी दुरूह हो गयी कि संपूर्ण भौगोलिक क्षमता को आधार बनाकर कोई केन्द्रीय सत्ता स्थापित न हो सकी। भारत देश की धरती के टुकड़ों पर कई रजवाड़े और सरदार उभर आए। उत्तर भारत में तोमर (दिल्ली), चौहान (अजमेर), राठौर (कन्नौज), चंदेल (बुंदेलखण्ड), पाल (बिहार), सेन (बंगाल), चालुक्य (गुजरात), सिसोदिया (मेवाड़) आदि की राजपूत रियासतें थीं। दक्षिण में चोल, चेरे, पल्लव और पाण्डेय कबीलों की छोटी-छोटी हुकूमतें थीं। उत्तर और दक्षिण के ये रजवाड़े आपस में ही लड़ते रहने के आदी हो गये थे।
मोहम्मद गोरी के प्रथम आक्रमण को विफल करने का गौरव एक भारतीय वीरांगना को प्राप्त हुआ। वह थी अन्हिलवाड़ा पट्टन की चालुक्य साम्राज्ञी राजमाता नायिका देवी। चालुक्य नरेश अजयपाल की पत्नी रानी नायिका देवी कदंब नरेश परमार्दि देव की कन्या थीं। मोहम्मद गोरी के समय अन्हिलवाड़ा पर अल्पव्यस्क मूलराज नामक शासक का शासन था। मूलराज की माता रानी नायिका देवी अपने अल्पवयस्क पुत्र की संरक्षिका के रूप में यहां शासन कर रही थी। रानी नायिका बहुत ही कुशल नीतिनिपुण और कूटनीतिज्ञा थीं। उन्हें नारी समझकर ही गोरी ने अन्हिलवाड़ा पर ११७५ ई. में आक्रमण कर दिया।
रानी के समक्ष अपने स्वर्गीय राजा के पश्चात परीक्षा की विकट घड़ी आ उपस्थित हुई। वह अपने पति, अपनी प्रजा और अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य भाव से भर उठी। रानी विदेशी आततायी आक्रांता को धूल चटाने की योजना बनाने लगी। उस समय गुजरात का प्रमुख सोलंकी भीमदेव था। उसने रानी नायिका की सहायता के लिए अपनी सेवाएं दीं और स्वयं ही नहीं अपितु कई राजाओं को लेकर वह विदेशी शासक के विरूद्घ युद्घ के मैदान में आ डटा। इतना ही नही रानी नायिका ने भी अपनी एक अनोखी योजना पर कार्य किया। वह अपनी पीठ पर अपने अल्पवयस्क राजकुमार को बांधकर लायी और युद्घ के मैदान में चण्डी बनकर कूद पड़ी।
गोरी की सेना उसी मार्ग से आ रही थी, जिस मार्ग गजनी के मोहम्मद ने सोमनाथ मंदिर को लूटा था। अगर यह आक्रमण रोका न जाता तो गोरी अन्हिलवाड़ा को ध्वस्त करके सीधा सोमनाथ पहुँच जाता। पूरे दक्षिण राजस्थान और गुजरात पर मुस्लिम सत्ता स्थापित हो जाती। नायिका देवी ने आबू की पहाड़ी की तलहटी में कयरुद्र नामक गॉंव के पास विशाल मैदान पर शत्रु से टक्कर लेने का निर्णय लिया। यह रणक्षेत्र व्यूह रचना के लिए अनुकूल था। रानी ने वहां बड़ी शूरता के साथ सामना किया। वह अपने लाड़ले नन्हे राजा को हिंदू सेना के सामने ले आयी और इन शब्दों में उन सबका आह्वान किया कि "यह बाल राजा आप लोगों की गोद में डाल रही हूं। प्राणपण से इसकी रक्षा कीजिए।" तत्काल आग भड़क उठी और वह सारी हिंदू सेना और आस-पास के सहायक हिंदू नरेश भी मोहम्मद के साथ इतने आवेश से लड़े कि मार से मात खाकर मोहम्मद की सारी सेना जान बचा का भाग निकली। तीर लगने के कारण बड़े कष्ट से मोहम्मद गोरी प्राण बचाकर जो भागा तो अपने अधीन सीमा प्रदेश में ही जाकर रुका। अगले पंद्रह वर्ष उसने गुजरात की ओर आँख उठा कर नही देखा।
वास्तव में भारत माता के प्रति समर्पण की यह उत्कृष्ट भावना हमें सदियों से एकता के सूत्र में बांधे रही है। हमने इस पावन भूमि को कभी भी एक भूमि का टुकड़ा नही माना, अपितु इसे माता समझा और स्वयं को इसका पुत्र माना। इसलिए अभी तक के इतिहास में (अर्थात ११७५ ई. तक) एकाध अपवाद को छोड़कर अधिकांश अवसरों पर देशी राजाओं ने अपने साथी राजा का सहयोग किया और विदेशी आततायी को मार भगाने में सफलता प्राप्त की। हां, अब से आगे ऐसी परिस्थितियां अवश्य बनी कि जब देशी राजाओं में से किसी ने विदेशी आक्रांताओं को अपने देशी शासक के विरूद्घ भड़काया या उस पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। उनकी यह कार्यशैली निश्चय ही निंदनीय रही और यह निंदनीय कार्यशैली ही भारत जैसे देश के कुछ भूभाग को पराधीन करा गई।
वामपंथी और इस्लामी इतिहासकारों द्वारा गजनवी के पश्चात मोहम्मद गोरी का गुणगान करना वर्तमान भारतीय इतिहास का एक बहुत बड़ा छल है। उस छल को देखकर तो ऐसा लगता है कि जैसे बीच के काल में भारत मर ही गया था। गोरी जैसे क्रूर शासकों के क्रूर कृत्यों का वंदन इस प्रकार किया गया है कि जैसे वह बहुत बड़ा महात्मा हो। गोरी को देश के लोगों ने और पृथ्वीराज चौहान सहित कई नरेशों ने पर्याप्त चुनौती दी, और देश में देशभक्ति का वातावरण भी बना रहा, परंतु इस सबके उपरांत भी हमारे पारस्परिक मतभेदों के कारण देश में गुलाम वंश की स्थापना भी हो गयी। गुलामवंश सन १२०६ में स्थापित हुआ। इसके पश्चात दिल्ली सल्तनत काल रहा जो १५२६ ई. तक चला।
संदर्भ श्रोत : भारतीय इतिहास के छः स्वर्णिम पृष्ठ
(वीर सावरकर)
: भारत में मुस्लिम सुल्तान
(पी एन ओंक)