Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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शांतिदूतों के कुकर्मों को छिपाने के लिए देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद ने इतिहास के साथ जबरदस्त छेड़छाड़ किया।

उनकी इच्छानुसार पाठ्य पुस्तकों में उल्लेख मिलता है कि संत कबीर मरने के बाद फूल बन गये और हिन्दू और मुस्लिमो ने उन्हें बराबर बांट लिया,,,

जबकि हकीकत यह है कि सिकंदर लोदी ने उन्हें हाथी के पैरो से कुचलवाकर मरवा दिया था, क्योंकि वे सामाजिक कुरीतियों का खंडन करते थे। और उन्होंने मुल्ला बनने से मना कर दिया था।

जब कबीर दास जी ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया,तो सिकंदर लोदी के आदेश से जंजीरो में जकड़कर कबीर को मगहर लाया गया। वहां लाते ही जब शहंशाह के हुक्म के अनुसार कबीर को मदिरा पिये हुए मस्त हाथी के पैरों तले रौंदे जाने का आदेश हो गया।

इतना सुनते ही कबीर की पत्नी लोई पछाड़ खाकर पति के पैरों पर गिर पड़ी। पुत्र कमाल भी पिता से लिपटकर रोने लगा। लेकिन कबीर तनिक भी विचलित नहीं हुए।आंखों में वही चमक बनी रही।

चेहरे पर भय का कोई चिन्ह नहीं उभरा। एकदम शान्त-गम्भीर वाणी में शहंशाह को सम्बोधित हो कहने लगे-

मुझे तो मरना ही था;आज नहीं मरता तो कल मरता। लेकिन सुलतान कब-तक इस गफलत में भरमाए पड़े रह सकेंगे,कब तक फूले-फूले फिरेंगे कि वह नहीं मरेंगे?

कबीर को जिस समय हाथी के पैरों तले कुचलवाया जा रहा था,उस समय कबीर का एक शिष्य भी वहां मौजूद था। कबीर को हाथी के पैरों तले रौंदवाने के बाद भी सुलतान का गुस्सा शांत नहीं हुआ।

उसने कबीर की पत्नी लोई का जबरन निकाह अपने एक निम्न श्रेणी के मुस्लिम दरबारी से कराया और कबीर के पुत्र कमाल को एक काजी की सेवा में लगा दिया।

शांतिदूतों के काले अतीत को छिपाकर उसे सेकुलरिज्म का जामा पहनाने का काम पहले नेहरू और मौलाना आजाद ने किया बाद में उनके इसी काम को रोमिला थापर और इरफ़ान हबीब जैसे टुच्चे इतिहासकारों ने आगे बढ़ाया।

Rajesh Kumar Srivastava ji