Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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------------------ #पद्मनाभस्वामी -------------------
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भारतीय वैदिक साहित्य में नागों का विशेष उल्लेख है । जितने भी वैदिक साहित्य हैं, उनमे कहीं न कहीं नागों का उल्लेख अवश्य मिलेगा ।नवनाग श्लोक में 9 प्रमुख नागों का उल्लेख किया गया है -
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं
शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं कालियं ।

इसमें प्रथम नाम है -अनंत , और इन्ही अनंत पर मेरे आराध्य प्रभु विष्णु शयन करतें हैं। तिरुवनंतपुरम का नाम इन्ही अनंत नाग के नाम पर पड़ा है , और पद्मनाभ स्वामी के गर्भगृह में शयन करते विष्णु ;इसे साक्षात विष्णुलोक बना देते हैं ।

कहा जाता है ,कि श्री पद्मनाभ मंदिर को 6वीं शताब्दी में त्रावणकोर के राजाओं ने बनवाया था। लेकिन इसका उल्लेख प्राचीन वैदिक साहित्य में भी मिलता है, जो बताता है कि पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है। महाभारत में एक उल्लेख आता है कि बलराम इस मंदिर में आए थे और यहां पूजा की थी। जनश्रुति है कि इसका निर्माण कलयुग के प्रथम दिन किया गया था , परंपरागत जनश्रुति के अनुसार यह मंदिर अतिप्राचीन है। इस मंदिर से संबंधित कई किंवदन्‍तियां हैं। उनमें से एक के अनुसार, जिसकी पुष्‍टि मंदिर में सुरक्षित ताड़-पत्रों पर किये गये अभिलेखों से भी होती है, कि इस मंदिर की मूर्ति-प्रतिष्‍ठा का श्रेय दिवाकर मुनि नामक तुलु ब्राह्मण को जाता है। उस समय के मौजूदा शासक को जब दिवाकर मुनि ने पद्मनाभ महात्म्य बताया ,तो उन्होंने खुद को ईश्वर को समर्पित कर दिया और वो #पद्मनाभ_दास कहलाए , आज भी इस वंश के लोगों को पद्मनाभ दास ही कहा जाता है ।।

चेरा वंश के गौरवशाली राजा #अनीयम_तिरुनाल मार्तान्ड वर्मा ने 1750 में खुद को भगवान का सेवक यानी ‘पद्मनाभ दास’ बताते हुए अपना जीवन और संपत्ति उन्हें सौंप दी। उन्होंने भगवान को ही राजा घोषित कर दिया और पद्मनाभस्वामी के मंदिर को पुनर्जीवित किया उसका पुनर्निर्माण करवाया ।

चूंकि जितनी पद्मनाभस्वामी के लिए त्रावणकोर रॉयल फैमिली पूर्णतया समर्पित है, उतनी ही हिंदुत्व के लिए भी। इसलिए हिंदुत्व के प्रचार प्रसार के लिए हर कदम उठाती आयी है। और यही कारण है कि ये हमेशा विधर्मियों के निशाने पर रहती है ।त्रावणकोर के राजपरिवार के विषय में प्रसिद्ध है की पद्मनाभ मंदिर में पूजा पाठ के बाद बाहर निकलते समय अपने कपड़े और हाथ पैर पूरी तरह से झाड़ते थे,ताकि मिट्टी का एक कण भी मंदिर से बाहर न जाए ।उनके अनुसार मंदिर का एक-एक कण भगवान पद्मनाभ का है।ऐसे राजपरिवार पर मंदिर की संपत्ति के दुरुपयोग का लांछन लगाया गया याचिकाएं डाली गई ।

भारत एकीकरण के दौरान त्रावणकोर कोचिन के शाही परिवार और भारत सरकार के बीच 1949 में एक अनुबंध पत्र साइन किया गया था । इसके तहत इस बात पर सहमति बनाई गई थी कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रशासन 'त्रावणकोर के शासक' के पास रहेगा।इसमें त्रावणकोर कोचिन #हिंदू_रिलीजियस_इंस्टिट्यूशंस_एक्ट के सेक्शन 18(2) के तहत मंदिर का प्रबंधन त्रावणकोर के शासक के नेतृत्व वाले ट्रस्ट के हाथ में रहा जो त्रावणकोर के अंतिम शासक के निधन 20 जुलाई 1991 तक चला, तदुपरांत ईस्ट इंडिया कंपनी के नक्शे कदम पर चलते हुए जैसे उसने वारिस न होने पर अधिग्रहण का नियम बनाकर भारत के राज्यों को अधिग्रहित किया था ;वही पद्मनाभस्वामी मंदिर के साथ ही हुआ । 1991 में त्रावणकोर के अंतिम महाराजा बलराम वर्मा की मौत हो गई। 2007 में एक पूर्व आईपीएस अधिकारी सुंदरराजन ने एक याचिका कोर्ट में दाखिल कर राज परिवार के अधिकार को चुनौती दी। उसके बाद राजा की मृत्यु के बाद मौके की तलाश में बैठे ईसाई मिशनरियों ने सिविल कोर्ट मे याचिकाओं का अंबार लगा दिया की त्रावणकोर के शाही परिवार को मंदिर की संपत्ति का बेजां इस्तेमाल की अनुमति न दी जाए ।

राजा के वारिश के तौर पर उत्राटम तिरुनाल मार्तण्ड वर्मा यानी कि रिश्ते में सगे भाई ने अपना पक्ष रखा कि राजपरिवार के सदस्य के तौर पर वो पद्मनाभस्वामी की सेवा के लिए प्रस्तुत हैं, और वो इस मामले में हाईकोर्ट गए और वहां इससे जुड़ी सभी याचिकाओँ पर एक साथ सुनवाई हुई। तब हाईकोर्ट के सामने प्रश्न था कि क्या त्रावणकोर के आखिरी शासक के छोटे भाई के तौर पर वर्मा को 1950 के त्रावणकोर-कोचिन हिंदू रिलीजियस इंस्टिट्यूशंस एक्ट के सेक्शन 18(2) के तहत श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर पर मालिकाना हक, नियंत्रण और प्रबंधन का अधिकार है या नहीं?????
इस प्रश्न का जवाब देते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि "शासक' ऐसा दर्जा नहीं है जिसे उत्तराधिकारी के तौर पर हासिल किया जा सके। इस वजह से 1991 में अंतिम शासक की मौत के बाद पूर्व स्टेट ऑफ त्रावणकोर का कोई शासक जीवित नहीं है ,अतः उन्हें राजवंश के उत्तराधिकारी मानने से ही इनकार कर दिया और कहा गया कि उत्राटम तिरुनाल मार्तण्ड वर्मा त्रावणकोर के पूर्व शासक के तौर पर मंदिर के प्रशासन पर दावा नहीं कर सकते। हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि मंदिर के तहखानों में रखे खजाने को सार्वजनिक किया जाए। उसे एक म्युजियम में प्रदर्शित किया जाए और उससे व चढ़ावे में मिलने वाले पैसे से मंदिर का रखरखाव किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में 8 साल से अधिक समय तक मामले की सुनवाई हुई।
केरल हाईकोर्ट ने 2011 के फैसले में राज्य सरकार को पद्मनाभस्वामी मंदिर की तमाम संपत्तियों और मैनेजमेंट पर नियंत्रण लेने का आदेश दिया था। इस आदेश को त्रावणकोर शाही परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिसपर सुप्रीम कोर्ट में 8 साल से ज्यादा समय तक सुनवाई हुई। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच ने पिछले साल अप्रैल में इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। और कल सोमवार को इसका फैसला आया इस फैसले में कहा कि त्रावणकोर शाही परिवार के आखिरी राजा का निधन होने का मतलब ये नहीं है ,कि मंदिर का मैनेजमेंट सरकार के हाथ में चला जाएगा ।

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केरल के तिरुअनंतपुरम स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर (Padmanabhaswamy Temple) के प्रबंधन में त्रावणकोर के राजपरिवार के अधिकार को मान्यता दे दी है। तिरुअनंतपुरम के जिला जज की अध्यक्षता वाली कमेटी फिलहाल मंदिर की व्यवस्था देखेगी, कोर्ट ने राजपरिवार के सेवादार के हक को तो बरकरार रखा है ,लेकिन देवता की पूजा के तरीके से लेकर, मंदिर की सम्पत्तियों के रखरखाव, श्रद्धालुओं को सुविधाएं उपलब्ध कराने जैसे तमाम काम का अधिकार कोर्ट ने 5 सदस्यीय प्रशासनिक कमेटी और 3 सदस्य एडवाइजरी कमेटी को सौंप दिया है ।

#विशेष - प्राचीन दक्षिण भारत में आयोजित तीन संगम थे, जिन्हें लोकप्रिय रूप से Muchchangam कहा जाता था। इन संगमों का विकास मदुराई के पांड्या राजाओं के शाही संरक्षण के तहत हुआ। संगम युग के दौरान प्रमुख तीन राजवंशों ने शासन किया, जिनमें चेर, चोल और पाण्ड्य राजवंश थे। इन राज्यों के साक्ष्य के मुख्य स्रोतों को संगम अवधि के साहित्यों में उल्लेख मिलता है। पद्मनाभस्वामी मंदिर का निर्माण इन्हीं में से एक चेर शासकों ने किया । चेर राजवंश का आधुनिक केरल के प्रमुख भागों पर शासन रहा। उस समय चेर की राजधानी वंची थी और चेर राजवंश का प्रतीक 'धनुष और तीर' है। इस अवधि में तोंडी और मुसीरी महत्वपूर्ण बंदरगाह थे ,जिनसे होकर भारतीय मसालों ने एक कीर्तिमान स्थापित किया । चेर वंश का #महाकाव्य #शिलप्पदिकारम में विस्तृत उल्लेख मिलता है । चेर राजवंश के शासकों ने हिमालय के लिए एक अभियान किया , जिसके दौरान उन्होंने कई उत्तरी भारतीय शासकों को हराया था। दक्षिण भारत से चीन में तक राजदूत भेजने वाले पहले भारतीय शासक यही रहे ।।

जय स्वामी पद्मानाभ