Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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देवताओं के चित्र की नहीं बल्कि चरित्र की पूजा करिये,..

दुर्गा जी शक्ति स्वरूपा है,.. आठ हाथों वाली,.. आपको किसी पंडित ने नहीं बताया होगा की ये आठों हाथ चार वर्णों के प्रतीक है,...

दो हाथ ब्राह्मण के, दो क्षत्रिय के, दो वैश्य के, दो शूद्र के,...

शक्तिस्वरूपा,.. यानि जब चारों वर्ण एक हो जाएंगे तो शक्ति का एक महा पुंज बनेगा,.. ऐसा पुंज जो शत्रु को पलक झपकते भस्म कर दे,..

और वर्ण व्यवस्था जन्मना नहीं थी,.. कर्मणा थी,.

चतुर्वेदी जन्म से ही नहीं पैदा होते थे,.. जिसको भी चारों वेदों का ज्ञान हो वो चतुर्वेदी हो जाता था,...

प्राचीन काल में पांच साल के ऊपर का बच्चा राज्य की सम्पत्ति होता था,.. यदि उसके पिता उसको गुरुकुल नहीं भेजते थे तो पिता पर अर्थदंड लगाया जाता था,.. एक ही एजुकेशन सिस्टम था,..

अमीर गरीब सबके लिए,.. सुदामा और कृष्ण एक ही गुरुकुल में पढ़े थे,.. हालाँकि द्रोणाचार्य का केवल राजा के कुल को शिक्षा देना उस काल की त्रासदी बनी और इसके लिए द्रोणाचार्य दुत्कारे भी गए और युद्ध में उनकी
हत्या भी हुई,..

लेकिन द्रोणाचार्य के कुकर्म कोई अचार संहिता नहीं बने,.. किसी ने उनके कृत्य को भविष्य का उदाहरण नहीं बनाया,..

गुरुकुल की व्यवस्था भी बड़ी गजब थी,.. जिस गाँव के बगल में गुरुकुल बनाना होता था,.. वहां राजा गायों को दान करता था,..

हमे आज भी बताया जाता है की Milk is a Complete food, .. इसीलिए गाय की पूजा होती थी,.. राजा गायों की पूजा करते थे,. और सैकड़ों गायें आश्रमों में पाली जाती थी,..

गुरुकुलों में छात्रों का मुख्य भोजन गायों का दूध होता था,.. गाय के दूध में सभी अमीनो एसिड्स पाए जाते हैं,..

यदि आश्रम /गुरुकुल में 400 बच्चे हैं, .. तो आसपास के गाँव में प्रत्येक घर को आश्रम के लिए रोटी का टिक्कड़ बनाने की जम्मेदारी दी जाती थी,..
और आश्रम के आसपास सैकड़ों एकड़ में जंगल लगाए जाते थे जिसमे की भरपूर मात्रा में फलदार वृक्ष होते थे,..

ये वृक्ष अक्सर राजा की तरफ से लगवाए जाते थे,.. हम लोग समझते की वो जंगल स्वतः उग जाते थे,. लेकिन ऐसा नहीं था,.. ये बहुत बड़ा सिस्टम था, ..

ख़राब पेड़ों को काटकर ,. अच्छे फलदार वृक्ष,.. औषधि आदि के लिए जड़ी बूटियां,.. जलाने की लकड़ी,.. गायों के लिए चारा, .. ये सारी व्यवस्था हमारे एजुकेशन सिस्टम का हिस्सा थी,..

जब गुरुकुल के ऋषि मुनि राजा के दरबार में जाते थे,... तो राजा उनसे पूछते की बताईये आपके आश्रम में गायों की क्या स्थिति है ?? गायें दूध दे रही है ??
गायों की कमी तो नहीं, .. गायें स्वस्थ तो है न !!

वृक्ष पर फल लगते हैं या नहीं,.. और वृक्ष लगवाने की आवश्यकता तो नहीं,..

और जो गुरुकुल के छात्र होते थे वो गायों की देखभाल और दूध दूहने का कार्य करते थे,.. जंगल से फल और लकड़ी एकत्र करते थे, .. और आश्रम के आसपास के गावों से भिक्षा में रोटी के टिक्कड़ लेकर आते थे, .. अनाज में केवल रोटी ही खायी जाती थी,.. बाकी फल और दूध से काम चलता था, ..
महाभारत में नंद और महानंद की चर्चा होती है, ... "महानंद" यानी जिसके पास एक लाख गायें हो,..

गुरुकुल में यदि कोई शस्त्र विद्या में पारंगत नहीं हुआ (चाहे वो क्षत्रिय का ही पुत्र हो),.. उसको खेती के काम में लगाया जाता था, ... अगर किसी ब्राह्मण का पुत्र तलवारबाजी और धनुर्विद्या में पारंगत हो
गया तो वो युद्ध के मैदान में जाता था,..

कर्मणा व्यवस्था ही प्रधान थी, .. आज भी गाँव के परिवार में कोई नहीं पढ़ा लिखा तो उसको खेती का ही काम देखना होता है,.. या कोई व्यापार, ..

गावों में भी सामाजिक समरसता इतनी थी की बिना सभी वर्णों के योगदान के कोई विबाह या पूजा नहीं सम्पन्न होती थी,..

अजय अग्निवीर