Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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#ऋषियों_की_महान विरासत का उत्तरदायित्व हमारे ऊपर है !

पर पिछली सदियों और दशकों की हानि हृदय को पीड़ा देती है।

'सगर माथा' माउंट एवरेस्ट बना दिया गया , 'गो-स्थान' अक्साई चिन। 'राम कुण्ड' अब इस्लामाबाद कहलाता है । साम्राज्यवादी - चाहे वह ईसाई या इस्लामी मजहबी हो अथवा वामपंथी - दूसरों के क्षेत्रों , पूजा-स्थलों को बलात् अधिग्रहित करने हेतु सदा तत्पर रहता है ।
अभी हम पालघर में हिन्दू संन्यासियों की निर्मम हत्या से उबर भी नहीं पाए हैं कि अनस कुरैसी ने मेरठ, भारत के एक शिव मंदिर के उपाध्यक्ष कांति प्रसाद जी की हत्या कर दी क्योंकि उन्होंने भगवा गमछा गले में लटका रखा था। हमारे 'दूरदर्शी' कांग्रेसी प्रधानमंत्री नेहरू ने जन्मभूमि का विभाजन स्वीकार कर लिया था कि शांति रहेगी , जबकि जननी और जन्मभूमि संपत्ति नहीं , जिसका बँटवारा किया जाए । बहिरागत अशरफों ( कुलीन मुस्लिम ) ने भूमिपुत्रों को अपने पूर्वजों की कला , संस्कृति , परंपरा और धर्म से पृथक् करने की सुचिंतित रणनीतियाँ कार्यान्वित की । तलवार के बल पर मतांतरण के लिए बाध्य किए गए इन भाग्यहीन हिन्दुओं को 'अजलाफ' ( अकुलीन , नीच ) अथवा 'अरजाल' ( क्षुद्र , घृणित , हीन ) कहा गया। जी हाँ ! तलवार के बल पर अनन्त अत्याचार करके हिन्दुओं का मतांतरण होता रहा था : ग्यारहवीं शताब्दी में अल्-बरूनी ने हिन्दुओं के इस्लाम में स्वेच्छिक धर्मांतरण का उल्लेख नहीं किया है । तेरहवीं सदी में मार्को पोलो ने गोवी ( परैयार ) नामक हिन्दू जाति का उल्लेख किया कि किसी प्रलोभन से उन्हें मतांतरित नहीं किया जा सकता है। चौदहवीं सदी का शेख निजामुद्दीन औलिया दुख व्यक्त करता है कि मजहबी उपदेश द्वारा हिन्दुओं का हृदय परिवर्तन कर उन्हें इस्लाम में मतांतरित करना असंभव है। सत्रहवीं सदी में इतालवी यात्री मनूकी लिखता है कि भारतीय अपनी जातिगत पहचान के प्रति गर्व का भाव रखते थे और वे मतांतरण , conversion नहीं करना चाहते थे ।
पाकिस्तान में सन् 1960 ई में अस्तित्व में आए इस्लामाबाद में अभी सन् 2020 ई में बन रहे पहले श्री कृष्ण मंदिर की नींव उखाड़ दी गयी। 'रियासत-ए-मदीना' में अल्लाह के अतिरिक्त किसी अन्य देवता का मंदिर , वह भी मूर्ति पूजा से जुड़ा , सर्वथा अकल्पनीय है , जबकि इस्लामाबाद पहले राम कुण्ड कहलाता था , क्योंकि मान्यता है कि वनवास के समय भगवान वहाँ पधारे थे । भगवान राम की पावन स्मृतियों को जीवंत बनाए रखने के लिए प्रतिवर्ष वहाँ मेला लगा करता था जिसमें हजारों हजार काफिर सहर्ष भाग लेते आए थे सदियों से। इस्लाम के नाम पर दूसरों के पूजा स्थलों के बलात् अधिग्रहण की प्रक्रिया भारत तक सीमित नहीं है : आर्थोडाॅक्स ईसाइयों के सर्वाधिक महत्वपूर्ण हागिया सोफिया चर्च , इस्तांबुल को अभी-अभी टर्की के दुष्ट राष्ट्रपति एर्दोगान ने मस्जिद बना दिया है। स्पष्ट है कि वैश्विक साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धी शक्तियाँ मिलकर भूमिपुत्रों - हिन्दुओं - का शिकार कर रही हैं।
तब हमारे पुराणों और वेद की शिक्षा महत्वपूर्ण हो जाती हैं । लिंग पुराण , शिवाद्वैत कथन में आया है कि : "जो कुछ भी दिखाई देता है अथवा सुनाई पड़ता है , उसे शिवमय जानिए ; विचार करने पर स्पष्ट होता है कि इस संसार में लोगों का भेद तो प्रतिभास ( भ्रम ) - मात्र है" । चूंकि हमारी बुद्धि हमारे अस्तित्व को , हमारी पहचान को , हमारी अस्मिता को बचाए रखने के लिए सदैव तत्पर रहती है , तब तक वैश्विक शांति दिवाश्वप्न बनी रहेगी , जब तक हमारी पहचान का विस्तार पावन सृष्टि के कण-कण तक विस्तीर्ण नहीं हो जाती । "अहम् ब्रह्मास्मि" : यह वेद-वाक्य हमारे व्यक्तित्व को चराचर जगत् और उसके भी पार विस्तारित करता है - तब मेरा-तेरा का भेद मिट जाता है । हाँ , पैगम्बरी मतवादों द्वारा प्रचारित सीमित पहचान अवश्य ही वैश्विक शांति में बाधक है। वास्तविक स्वतंत्रता है सीमित पहचान थोपने वाले इन मतवादों , विचारधाराओं से मानवता की मुक्ति ।
साभार सहित

मैं भारत और सनातन के उत्थान का मार्ग गुरुकुलों से निकलता हुआ देखता हूँ।

गुरुकुल और धर्म राज्य की स्थापना की महत्वाकांक्षा हर हिन्दु के मन में जगानी होगी ....!
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।। जय श्रीराम ।।