जब साधक किसी सद्गुरु की कृपा से साधना, ध्यान अभ्यास पूर्ण कर समाधि योग्य हो जाता है, बाहरी विचारों से मुक्त होकर अंतर्मुखी हो जाता है तथा वह अपनी आत्मा में ही लीन रहता है तो समाधि घटित होती है ...!
जब साधक ध्यान में बैठता है तो कुछ समय पश्चात उसे एक मौन जैसी अवस्था प्राप्त होती है ! यहाँ उसे बेचैनी और उदासी सी अनुभव होती है ! यहाँ पर साधक को अपने विचारों पर अधिक ध्यान नही देना चाहिए ! विचार आ रहे है तो आने दो, जा रहे हैं तो जाने दो, बस दृष्टा बने रहो, एक पैनी नज़र के साथ ...!
यहाँ साधक को धैर्य बनाए रखना चाहिए ! इस मौन और उदासी के बाद ही हृदय प्रकाश से भरने लगता है ...!
ध्यान में शरीरी भाव खोने लगेगा लेकिन साधक को इससे डरना नहीं चाहिए बल्कि खुश होना चाहिए कि ....
वह परमात्मा प्राप्ति के मार्ग की और अग्रसर हो रहा है ! अब साधक को ब्रह्म भाव की अनुभूति होने लगेगी । शरीर में विद्युत ऊर्जा का संचार होने लगेगा ...! इससे कभी कभी साधक के सिर में दर्द हो सकता है और यह बहुत ज्यादा भी हो सकता है ! पीड़ा या दर्द यदि अधिक बढ़े तो चिंता नहीं करना चाहिए क्योंकि जब चक्र टूटते है तो पीड़ा होती ही है क्योंकि चक्र आदि काल से सोये पड़े हैं ...!
अत: इस पीड़ा को शुभ मानना चाहिए ...!
साधक के शरीर में या मस्तिष्क में झटते लग सकते है ! कभी कभी शरीर कांपने लगता है लेकिन साधक को इस स्थिति से डरना नहीं चाहिए ! कभी कभी शरीर में दर्द होगा और चला जाएगा ! इसको भी दृष्टा भाव से देखते रहना क्योंकि यह भी अपना काम करके चला जाएगा । ध्यान में डटे रहना ...!
यह कुंडलनी जागरण के चिह्न हैं, शरीर में विद्युत तेजी से चलती है ! फिर धीरे धीरे अलौकिक अनुभव होने लगते है ...!
शरीर तथा आत्मा आनंद से भरपूर हो जाती हैं ! यहाँ साधक को चाहिए कि अपना कर्ता भाव पूर्ण रूप से छोडकर बस देखता रहे जैसे कोई नाटक देखता है ....!
अब ऊर्जा उर्द्धगामी हो जाती है ! यदि आपका तीसरा नेत्र अर्थात शिवनेत्र नहीं खुला है तो चिंता नहीं करना क्योंकि परमात्मा प्राप्ति की यात्रा के लिए यह जरूरी भी नहीं है ! उच्चस्थिति आने पर यह स्वत: ही खुल जाता है ! समय से पूर्व शक्ति का खुल जाना भी हानिप्रद हो सकता है ! अब यह समझिए कि बीज अंकुरित हो चुका है अत: साधना में धैर्य रखते चलना ! यह धैर्य ही ध्यान समाधि के रास्ते में खाद का कार्य करता है ...!
अध्यात्म के अनुभवों का बुद्धि के आधार पर विश्लेषण न करना ! क्योंकि ध्यान में तरक्की कुछ इस ढंग से होती रहती है जैसे मिट्टी में दबा बीज अंकुरित होता रहता है लेकिन अंकुरण की तरक्की का पता जब चलता है जब वह धरती की सतह से ऊपर आ जाता है ...!
इस प्रकार धीरे धीरे साधक ( ध्याता ) ध्यान द्वारा ध्येय में पूर्णरूपेण लय हो जाता है और उसमें द्वैतभाव नहीं रहता है ऐसी अवस्था में समाधि लगती है ...!
समाधि प्राप्त साधक दिव्य ज्योति एवं अद्भुद ताकत से पूर्ण हो जाता है ...!
समाधि प्राप्त साधक सभी जीवों में प्रभु का वास देखने लगता है ...!