Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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आखिर क्यों इन इस्लामी आक्रांताओं को तुर्क, अफगान, पठान, मंगोल इत्यादि संज्ञाओं से नवाजा गया...!!!

६३२ से लेकर ७३२ तक के एक सौ वर्ष में इजिप्ट, उत्तरी अफ्रीका के कई देश, स्पेन, भूमध्य सागर के कतिपय द्वीप, फिनीशिया, सीरिया, इराक, तुर्किस्तान, और ईरान पर मुस्लिम सत्ता स्थापित हो गई। मध्य एशिया में मुस्लिम सत्ता के प्रभाव से कितनी ही जातियों, विशेषतः तुर्क और मंगोलों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। ७५० में खलीफा अली के वंशजों ने तिगरिस नदी के तट पर राजधानी बगदाद का निर्माण किया।

अरबो ने जब ईरान जीता तब खिलाफत की सत्ता भारत की सीमा पर पहुँच गई। भारतवर्ष की सम्पन्नता की ख्याति पूरे विश्व फैली हुई थी। तुर्झ (फ्रांस) का युद्ध छोड़कर सभी स्थानों पर अरबी सेनाएँ विजयी हुईं थीं। इस प्रकार अपनी सत्ता फैलाने वाले और मुस्लिम सम्प्रदाय को प्रसारित करने वाले अरब ही थे। भारत पर उनका आक्रमण सिंध प्रांत तक ही सीमित रहा। परंतु जो इस्लामी मजहब प्रसार की प्रेरणा अरबो से तुर्क, मंगोल, ईरानी, ब्लूचि, अफगानी, पठान, गोर आदि जातियों में संक्रमित हुई तो ये जातियां मूल-इस्लामियों से भी ज्यादा कट्टर और प्रभावी सिद्ध हुईं। भारत पर आठवी सदी के बाद लगातार आक्रमण करने वाले अरब नही, मुस्लिम तुर्क, मुस्लिम अफगान, मुस्लिम मंगोल और अन्य मुस्लिम आक्रान्ता थे।

ये जातियां प्रवत्ति से ही असभ्य और क्रूर थीं। मुस्लिम सम्प्रदाय की प्रेरणा ने उनकी इस मूल प्रवत्ति को अधिकतम असहिष्णु एवं हिंसाचारी बनाया। युद्ध में विजय प्राप्ति के बाद निर्दयता से शत्रु को मृत्यु के घाट उतारना, स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े सभी का कत्ल करना, आबाद नगरों को लूटने के बाद जला देना, तरुण पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को हजारों की संख्या में पकड़कर गुलामों के बाजार में बिक्री करना इन मुस्लिम आक्रांताओ का सामान्य व्यवहार था। मंदिरों को ध्वस्त करके उस पर मस्जिद बनाना, मूर्तियों को तोड़कर फेंकना और सख्ती से सभी को इस्लाम की दीक्षा देना, इसकी प्रेरणा जो इस्लाम से प्राप्त हुई वह उनके स्वभाव के प्रति अनुकूल थी। लूट का लालच तो नशा बन गया था। देव मूर्तियों को तोड़ने वाला और मूर्तिपूजक (काफिरों) को कत्ल करने वाला गाजी (धर्मवीर) कहलाता था। पूरे विश्व को उन्होंने दो हिस्सों में बांटा था। एक जो इस्लामी शासन में आ गया वह दारुल-इस्लाम और दूसरा जँहा इस्लामी शासन नही है वह था दारुल-हरब।

इस प्रकार अमानवीय प्रवत्ति से प्रेरित आक्रमकों की टोलियां एक के पीछे एक लगातार भारत की सीमा पर टकराने लगीं। ईसा की आठवीं सदी से लेकर सत्रहवीं सदी के अंत तक निरंतर इस पाशविक आक्रमण के कारण भारत ने संघर्ष किया। इस महासंघर्ष की युद्धभूमि गांधार की कुम्भा नदी से पूर्व में ब्रम्हपुत्र नदी तक और उत्तर में हिमाद्रि से लेकर दक्षिण में हिन्द महासागर तक फैली हुई थी। यह संघर्ष पचास पीढियों तक, लगभग एक सहस्त्र वर्ष तक चलता रहा। कुशल सेनानी एवं वीर योद्धाओं की अखंड मालिका लाखो की संख्या में आगे आती रही। देश में स्थान स्थान पर सैकड़ो संतो और आचार्यों ने देश के एक एक व्यक्ति में राष्ट्रभक्ति का जागरण किया और भारत की मूल आध्यात्मिक शक्ति के आधार पर पूरे समाज को एक सूत्र में बांधकर मातृभूमि के ऋण चुकाने के लिए कटिबद्ध किया।

इस आलेख को लिखने का मंतव्य है कि भारतवर्ष का इतिहास लिखने वाले चाहे वो मुस्लिम इतिहासकार रहें हों या फिर पश्चिमी, हिन्दू और वामपंथी, ने कभी भी अपने मूल धर्म को छोड़कर इस्लाम में संक्रमित होने वाली इन खूंखार, नृशंस जातियों अफगान, पठान, तुर्क, मंगोल इत्यादि को मुस्लिम तुर्क, मुस्लिम मंगोल, मुस्लिम पठान आदि आदि से क्यों नही नवाजा..?? ऐसा कौन सा विदेशी आक्रान्ता था, जो दिल में इस्लाम को पालकर एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुरान लेकर भारत में प्रविष्ट न हुआ हो..?? ऐसा कौन सा सुल्तान था जिसने निरपराध लोगो का कत्ल न किया हो, मंदिर तोड़कर मस्जिद न बनाई हो, बलात धर्मांतरण न किया हो..?? ऐसा कौन सा सुल्तान था, चाहे वो एक छोटी सी जागीर का मालिक हो या बड़े भूभाग का बलात स्वामी हो, जिसके सर चढ़कर इस्लाम का भूत न नाचा हो..?? फिर भी इतिहासकारों ने इन्हें मुगल, अफगान, पठान, चगताई और बर्लास तुर्क की संज्ञा से नवाजा, जबकि परंपरागत तौर पर ये इस्लाम में संक्रमित हो चुके थे और बाकायदा अरब खलीफाओं से परिस्कृत एवं मान्यता प्राप्त इस्लाम के प्रवर्तक ही थे।

मूल विडंबना को लेकर आपके विचार आमंत्रित हैं।

#सल्तनत_काल

Sachin Tyagi