दलित परिवार की शांतीदूतों द्वारा बर्बरतापूर्ण पिटाई कर दी गयी और पूरी मेनस्ट्रीम मीडिया व् स्वघोषित दलित हितैषी संगठनों और नेताओं ने इस घटना पर अपनी थूथन सिल ली
दलितों के तथाकथित नेता( वोटों के ठेकेदार) दलितों को भड़काकर उन्हें "जय भीम-जय मीम" का उदघोष और उसके पालन के उपदेश देकर अपना एक्टिविज़्म और नेतागिरी का करियर तो चमका लेते हैं,
किन्तु जब कड़वा यथार्थ का स्वाद दलितों को चखना पड़ता है और मीम द्वारा निरंतर भीम को अपना चारा बनाया जाता है तो तब इन दलित नेता, दलित चिंतक व् दलित विचारक में से कोई पीड़ित दलित की आवाज उठाने नहीं आता, वे सब दलितों का इस्तेमाल कर बनाये अपने अपने भव्य आलीशान बंगलों में उपलब्ध सुख सुविधाओं व् विलासिताओं को भोगने में ही व्यस्त रहते हैं,
और दलितों के लिए उनके पक्ष में आवाज उठाने वाले अंत मे केवल वही राष्ट्रवादी भगवा वाले बचते हैं जिनके विरुद्ध दलित नेताओं द्वारा दलितों का वर्षों तक ब्रेनवाश किया था...
रोहन शर्मा