Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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आजादी के बाद से एक समस्या शुरू से मुँह फाड़े खड़ी है, देश के लिए चुनौती बनी हुई है...वह लाइलाज समस्या है कि मुसलमानों का विकास नहीं हो पा रहा.....

उन्हें किसने रोका अपना विकास करने से ?

सन सैंतालीस में मुसलमानों ने अपने विकास के लिए देश के दो टुकड़े कर दिये यह सोचकर कि मुसलमानों का विकास होगा।

पर अफसोस सरहद के उस पार और इस पार फिर भी मुसलमान विकसित नहीं हो पाया।

भारत में तब से अब तक हालात बद से बद्तर बने हुए हैं।

कितनी सरकारें आयी और आकर चली गयी, सभी ने मुसलमानों के विकास पर पैसा पानी की तरह बहाया लेकिन नतीजा...... ढ़ाक के तीन पात।

बहुसंख्यक हिन्दुओं के टैक्स का पैसा भारत की एकमात्र अल्पसंख्यक कौम मुसलमानों पर विकास के लिए पानी की तरह बहाया गया।

केन्द्र हो या राज्य नयी सरकारों ने आते ही अपने प्रिय वोट बैंक के विकास के लिए वायदों के ऐलान और योजनाओं के पुलिन्दे बना-बनाकर पटके....

सरकारी खजाने लुटाये गये लेकिना नतीजा शून्य ही रहा।

मुसलमान विकसित नहीं हो पाया.....

गली-गली मदरसे खोले गये, हज यात्रा की सब्सिडियाँ दी गई, विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत करोड़ों रूपया अनुदान दिया लेकिन मुसलमान है कि विकसित नहीं होता।

मौलवियों और इमामों को खैरात बांटी गई..जहाँ चाही मस्जिद खड़ी कर दी गईं, मजारों-कब्रों के नाम पर वफ्फ बोर्ड ने जमीनें हड़पने में वाड्रा को भी मात दे दी... लेकिन दुर्भाग्य है कि मुसलमान का विकास नहीं हो पा रहा......

हिन्दुओं के मन्दिरों का पैसा सरकारों ने अपनी अण्टी में दबा लिया और दक्षिण भारत के मन्दिरों के कमरे-तहखानों को खोल-खोलकर अकूत दौलत अपने कब्जे में ले ली लेकिन मजारों का प्रबन्ध सरकारों ने मुसलमानों के हाथों में सौंप दिया ताकि इन पर हर साल चढ़ावे के रूप में आने वाली लाखों की दौलत से मुसलमानों का विकास हो सके

लेकिन हाय री किस्मत..... न जाने इतनी दौलत किस मोरी में होकर बह जाती है और मुसलमान का विकास नहीं हो पाता....

मुसलमानों के कई मामलों पर पर्सनल लॉ बनाये गये, संविधान की छाती में खूँटा ठोक के अब तक कई कानून के कानून बदल दिये गये....

मासूम मुसलमान बच्चे बम फोड़ के साफ बच निकलें इसलिए आतंकवाद निरोधक कानून समाप्त कर दिये गये, मुल्ले-मौलवी आराम से मदरसों-मस्जिदों में बम बना सके इसके लिए मदरसों-मस्जिदों से सरकारी नियन्त्रण हटा लिया गया फिर भी मुसलमान विकसित नहीं होता....

अरब देशों से बिना जांच-पड़ताल के, बिना टैक्स लिये करोड़ों रूपया देश की मस्जिदों में आता है। लेकिन कमबख्त‍ मुसलमान है कि विकसित नहीं होता.......

देश के लिए राष्ट्रीय चुनौती बन चुकी इस गम्भीर समस्या का हल यूपी के मंत्री (असली मुख्यमंत्री) "आजम खान" साहब ने सुझाया है....

बोले- सरकार को ताजमहल मुस्लिम वफ्फ बोर्ड को सौंप देना चाहिए ताकि इससे होने वाली आय से मुसलमानों का विकास किया जा सके...

हालांकि मांग अभी ताजमहल की है लेकिन अगर मुसलमान इससे भी विकसित नहीं हो पाया तो आगे निश्चित ही कुतुबमीनार, लालकिले आदि की मांग की जा सकती है ताकि अविकसित मुसलमान को विकसित किया जा सके......

अब खबरदार किसी ने मुसलमानों के अविकसित होने के पीछे उनके ट्रेडिशन्स को जिम्मेदार ठहराया तो....

अपनी धार्मिक रीतियों के अनुसार वे चार शादी-चौबीस बच्चे पैदा कर सकते हैं चाहे उनको खिलाने को दो वक्त की रोटी पैदा न हो सके....

वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें या न भेंजे लेकिन मदरसों में अलिप ले-ले... अलिप बे-बे सीखने जरूर भेज सकते हैं, चाहे मदरसों की इन लेले-बेबे की उर्दू डिग्रियों को देखकर उन्हे कोई चौकीदार की नौकरी भी न दे.....

वे सामान्य परिवार से अढ़ाई गुना बड़ा परिवार बना सकते हैं, फिर चाहे उनके बच्चों की फौज सड़क किनारे पंचर बनाये या मिस्त्री की दुकानों पर गालियाँ खायें.....

अपनी लड़कियों को उच्च शिक्षा देने के बजाय उनके प्रथम मासिक से उन्हे बालिग समझकर निकाह कर दें और बच्चियां पच्चीस साल की उम्र तक पाँच बच्चों की अम्मी बन जायें..

लेकिन उनके ट्रेडिशन्स पर उँगली न उठायें... अब तो ऊपर से 6000रु ... बीवी तो बीवी ... माँ बहनों तक को 6000रु की मेहरबानी दे देंगे।

उनके अविकसित का दोष सिर्फ हिन्दुओं पर दोष मंढ़ दें....

मुसलमानों के अविकसित होने पर अरिन्दम चौधरी की कही एक बात बिलकुल ठीक बैठती है- "यदि आप समस्या का समाधान नहीं है, तो फिर आप ही समस्या हैं!!"

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