Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता शशि थरूर ने वामपंथी बद्री रैना का लेख साझा कर उसके विचारों का समर्थन किया है कि जिन लोगों के शव भारत भूमि में दफन किये जाते हैं उनका अधिकार भारत पर अधिक है उनकी तुलना में जिनके शवों को अग्नि को समर्पित कर भस्म में परिवर्तित कर इस देश की मिट्टी और जल में मिला दिया जाता है।

यदि केवल इसी तर्क को आधार माने तो कारगिल युद्ध में सैंकड़ों पाकिस्तानी सैनिक जिनके शव पाकिस्तान ने स्वीकारने से मना किये थे उन्हें भारत भूमि में ही दफन किया गया था, तो क्या भारत पर उन पाकिस्तानी सैनिकों का अधिकार भारत के हिंदुओं से अधिक है ?

पाकिस्तान और भारत में कई जेहादी आतंकवादी जो कट्टरवाद का पाठ पढ़ जन्नत और 72 हूरों की लालच में देश के "काफ़िर" हिंदुओं की हत्याएं करते फिरते हैं उनके शव भी भारत भूमि में दफन ही होते हैं तो कहा उनका अधिकार भारत पर हिंदुओं से अधिक है ? यदि है तो फिर शशि थरूर और बद्री रैना के अनुसार 26/11 में सैंकड़ों निर्दोषों की हत्याएं करनेवाले पाकिस्तानी आतंकी कसाब और उसके साथियों का भी अधिकार भारत पर हिंदुओं से अधिक हो गया ?

वास्तव में यह तर्क न केवल गलत है अपितु हास्यास्पद होने के साथ साथ एक बहुत ही खतरनाक और कुत्सित हिन्दू विरोधी मानसिकता का भी परिचायक है,

इसीलिए चलिए आज भारत के सम्भ्रांत बुद्धिजीवी समाज के बौद्धिक आतंकवाद की बात करते हैं जो निरन्तर भारत की आत्मा संस्कृति, विरासत, जड़ों और भारत भूमि से भारत के हिंदुओं के सम्बंध नकारने और हिंदुओं को यह विश्वास दिलाने में लगे हैं की राम, कृष्ण, परशुराम के वंशज जो सहस्त्रों वर्षों से भारत भूमि पर रहे और हैं उनका अधिकार भारत भूमि पर कम है उन विदेशी आक्रमणकारी और लुटेरों की तुलना में जिन्होंने भारत में करोड़ों निर्दोष हिंदुओं के नरसंहार किये, लाखों हिन्दू मंदिर व् पूजा स्थल ध्वस्त किये और हिंदुओं पर अमानवीय अत्याचारों के वो कीर्तिमान स्थापित कर दिये जो विश्व में न तो देखे गए थे न सुने गए थे,

जजिया कर, आर्थिक शोषण, जबरन धर्म परिवर्तन, धर्मिक स्थलों पर आक्रमण लूट भंजन और उसपर मस्जिद निर्माण, करोड़ों हिंदू बच्चियों, लड़कियों और महिलाओं को अगवा कर उनका बलात्कार जबरन धर्म परिवर्तन और फिर उन्हें बेच देना या हरम में यौन दास बना कर रखना, करोड़ों निर्दोष हिंदुओं के अनगिनत नरसंहार और हिंदुओं के शीश काटकर उनकी मीनारें बनाना यह सब मात्र संक्षेप वर्णन है

परन्तु इसके बावजूद आज भारत के सम्भ्रांत, उदारवादी, बौद्धिक आतंकवादी इसी भारत भूमि पर हिंदुओं का अधिकार उन बर्बर दमनकारी आक्रमणकारियों के वंशजों की तुलना में कम बताकर हिंदुओं में हीनभावना भरने और उन्हें भारत में द्वितीय श्रेणी का नागरिक सिद्ध करने और हिन्दू आबादी के मन मस्तिष्क में धीरे धीरे यह विचार बैठाने हेतु प्रयासरत हैं, याद कीजिये 1947 में अंग्रेजों के समक्ष मांग यह रखी गयी थी कि जब अंग्रेजों ने भारत पर आधिपत्य स्थापित किया उंस समय दिल्ली पर मुगलों का शासन था इसीलिए अंग्रेजों को भारत की संपूर्ण सत्ता वापस मुस्लिमों को सौंपकर जाना चाहिए और फिर इसी मांग को आगे ले जाकर भारत भूमि का एक तिहाई भूखंड मुस्लिम राष्ट्र निर्माण हेतु हथिया लिया गया, परंतु अपने मजहब के लिए भारत का बंटवारा कर एक अलग देश लेने के बावजूद "वे" इसी हिंदुओं के पक्ष में आये भूखंड पर बने रहे और अल्पसंख्यक कार्ड खेलकर अब तक हिंदुओं की कमाई के टैक्स के धन का बड़ा हिस्सा विशेष सुविधाओं के नाम पर लेते रहे किंतु फिर भी स्वयं को पीड़ित शोषित वंचित दर्शाकर और अधिक लाभ लेने की जुगत में भी निरन्तर लगे रहे,

और उनका साथ दिया कांग्रेस जैसी सरकारों और उनके नेताओं ने याद कीजिये तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन का वह बदनाम वक्तव्य जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला अधिकार उन तथाकथित अल्पसंख्यकों का है जो वास्तव में भारत के टुकड़े करने भारत वासियों को लूटने और उनके नरसंहार करने वाले पूर्वजों की सन्तान है, इससे बड़ा सौतेला व्यवहार भला देश के हिंदुओं के संग क्या ही हो सकता था, परन्तु अब सत्ता जाने के बावजूद न तो सोंच बदली न ही अब तक अपनायी गयी गलत पक्षपाती नीतियों का बोध ही हुआ और वे आज भी भारत के वास्तविक नागरिकों को भारत में द्वितीय श्रेणी का नागरिक बताने और सिद्ध करने के कुत्सित प्रयासों में लगे हुए हैं।

अब यदि सीधे सीधे तार्किक और यथार्थपरक बात करें तो जिन लोगों ने 1947 में अपने मजहब के नाम पर देश का बंटवारा करने और अलग देश पाने हेतु 90% से अधिक कि संख्या में वोट किया था स्वतंत्रता संग्राम में दर्जनभर लोग देकर अपने योगदान का मूल्य सूद समेत अपने लिए अलग इस्लामिक मुल्क बनवा कर वसूल लिया तो उसके हिसाब से बचा हुआ भारत देश पूरी तरह से हिंदुओं का हुआ उसपर किसी अन्य धर्म और मजहब का कोई अधिकार नहीं,

और दूसरी बड़ी बात यह की कब्र बनाने और दफन करने की प्रैक्टिस भी देश की भूमि पर बड़े स्तर पर किया जा रहा गुप्त अतिक्रमण है, भारत दुनिया का 7वें नम्बर का सबसे बड़ा देश है और आबादी के हिसाब से दूसरा, भारत में आबादी का घनत्व विश्व में सर्वाधिक है उसके बावजुद भी क्या कभी किसीने हिसाब लगाया की देश में लगातार कब्रिस्तानों के नाम अतिक्रमण की जा रही भूमि कितने हजार वर्ग किलोमीटर की है ?

क्या देश के उदरवादी प्रगतीशील बुद्धिजीवी तबके ने कभी विचार किया की निरन्तर बढ़ रही आबादी और बढ़ते आबादी घनत्व के कारण कम होती जा रही भूमि एक बहुत ही बड़ी समस्या है और इसको देखते हुए अब दफन करने और नए कब्रिस्तान बनाने पर रोक लगाने और मृत देह को अग्नि को समर्पित करना शुरू कर देना ही श्रेयस्कर होगा ?
रोहन शर्मा