Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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क्या आपको जानकारी है कि ............

राहुल गांधी की दादी के डैडी जवाहर लाल नेहरु ने गुजरात में मुसलमान आततायियो के द्वारा नष्ट किये गए सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का विरोध किया था और सोमनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर नेहरू ने अपनी आपत्ति जताई. यहां तक कि मंदिर निर्माण को हिंदू रिवाइवलिज्म यानी हिंदू पुनरुत्थानवाद का प्रतीक तक कह दिया. मुंशी को भी उन्होंने आड़े हाथों लिया और कहा कि सोमनाथ मंदिर के निर्माण के लिए तत्कालीन नेहरू कैबिनेट में मंत्री रहे कन्हैयालाल माणेकलाल मुंशी जो कोशिशें कर रहे हैं, वो उन्हें पसंद नहीं है ..... नेहरु की इस बदतमीजी पर मुंशी ने नेहरु को जो पात्र लिखा था वह इस प्रकार है ...........

मुंशी ने अपनी चिट्ठी में लिखा-

आपने कैबिनेट की बैठक में खास तौर पर सोमनाथ के साथ मेरे जुड़ाव की तरफ इशारा किया. मुझे खुशी है कि आपने ऐसा किया, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मैं अपनी गतिविधियों और दृष्टिकोण के बारे में खास तौर पर आपसे कुछ छिपाकर रखूं, जिस तरह से हाल के महीनों में आपने मुझे लेकर विश्वास दिखाया है. मैंने कई संस्थाओं के निर्माण में भूमिका निभाई है, मसलन भारतीय विद्या भवन, अंधेरी में पब्लिक स्कूल, गरीब बच्चों के लिए चेंबूर हाउस और आणंद में कृषि संस्थान की स्थापना. मैं अब धर्म और संस्कृति के स्थान के तौर पर सोमनाथ, विश्वविद्यालय और फार्म के निर्माण में यथासंभव मदद कर रहा हूं, जिसके लिए मेरी सहायता मांगी गई है. तथ्य ये है कि जब मैं ये काम कर रहा हूं, मेरा वकील होना, या सार्वजनिक जीवन में होना या फिर मंत्री होना महज एक संयोग है. आपको अच्छी तरह से पता है कि मेरे ऐतिहासिक उपन्यासों ने गुजरात के प्राचीन इतिहास को सजीवता के साथ आधुनिक भारत के सामने रखा है और मेरे उपन्यास जय सोमनाथ की देश भर में चाह है. मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि भारत का सामूहिक अवचेतन भारत सरकार की तरफ से प्रायोजित सोमनाथ के पुनर्निर्माण की योजना से ज्यादा खुश है, बनिस्पत हमने जो बाकी कार्य किये हैं या कर रहे हैं.

आपने कल हिन्दू पुनरुत्थानवाद की बात कही. मैं इस विषय में आपके विचार जानता हूं और मैने उसके साथ हमेशा न्याय किया है, मैं उम्मीद करता हूं कि उसी तरह ही आप भी मेरी सोच के साथ न्याय करेंगे. ऐसी कई सारी परंपराएं हैं, जिनका मैंने बचपन से ही उल्लंघन किया है. मैंने अपनी सामर्थ्य के मुताबिक शिक्षा और समाजकार्य के ढेर सारे ऐसे कार्य किये हैं, जिससे हिन्दूत्व के कई पहलुओं को नई दिशा मिली है, जिसके बारे में मेरा दृढ विश्वास है कि आधुनिक समय में भारत को उन्नत बनाने के लिए ये आवश्यक है.

जहां तक जाम साहब के पत्र का सवाल है, पूरी दुनिया से पानी की कुछ बूंदे, मुट्ठी भर मिट्टी और सूखी टहनियां मंगाना, मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े कार्यक्रम के लिए आवश्यक है. मूल तौर पर ये दुनिया की एकता और भाईचारे का प्रतीक है. हमने सोचा नहीं था कि हमारे विदेशी दूतों से इस तरह की मांग आपको इतनी पीड़ा पहुंचाएगी. कुछ महीने पहले खुद जाम साहब ने विदेश मंत्रालय को इस बारे में पत्र से सूचित किया था और जो जवाब मिले थे, वो भी बता दिये थे. पिछले कुछ हफ्तों से अखबारों में इन सामग्रियों के आने की खबरें भी छप रही हैं. अगर हमारे किसी विदेशी प्रतिनिधि को ऐसा करने में कोई दिक्कत हुई, या फिर उसे ठीक नहीं लगा तो उसने हमें जानकारी भी दी. स्वाभाविक तौर पर श्री पणिक्कर ने आपको कुछ शिकायत भेजी है, साथ में जाम साहब को लिखा भी है कि कुछ चीजें वो भेज रहे हैं. अगर उन्होंने सिर्फ जामसाहब को असमर्थता जाहिर करते हुए एक निजी चिट्ठी लिख दी होती, तो उन पर कोई दबाव बनाता भी नहीं.

एक बात और. भूतकाल में जो मेरा विश्वास है, वही वर्तमान में मुझे काम करने की शक्ति देता है और भविष्य की तरफ देखने की दृष्टि देता है. मेरे लिए उस स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं, जो मुझसे मेरी भागवत गीता छीन ले, या फिर हमारे देश के करोड़ों लोगों को उनसे उनका विश्वास छीन ले, जिस दृष्टि से वो मंदिरों को देखते हैं, और इसकी वजह से हमारे जीवन के बुनियादी रंग छिन्न-भिन्न हो जाएं. मुझे ये सुअवसर प्राप्त हुआ है कि सोमनाथ के मंदिर के पुनर्निर्माण के सपने को साकार होते हुए देख सकूं. मुझे लगता है और इस बारे में मैं पूर्ण तौर पर आश्वस्त भी हूं कि एक बार अगर ये मंदिर हमारे लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण बिंदु के तौर पर स्थापित हो जाएगा, तो फिर ये हमारे लोगों को धर्म के सही स्वरूप और हमारी ताकत के बारे में भी जागरूक करेगा, जो आजादी के इन दिनों में और इसके व्यवहार के हिसाब से काफी आवश्यक है !
पवन अवस्थी