Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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दोस्तों अब ज्ञानवापी मस्जिद को पवित्र करने का समय है।

यह ज्ञानवापी मस्जिद है, जिसे भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक पर बनाया गया है। यह सामान्य दिनों में व्यस्त नहीं है। जैसा कि आप चित्र में हाइलाइट किए गए क्षेत्र में देख सकते हैं, आधे परिसर को स्पष्ट रूप से ध्वस्त मंदिर के खंडहर के रूप में देखा जा सकता है।

शिवलिंग ज्ञानवापी में विराजमान है और वो स्वयंभू हैं क्योंकि वो स्वयं प्रकट हुए हैं।

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग है। शंकर भगवान का काशी (वाराणसी) में स्थति जो असली ज्योतिर्लिंग मंदिर था, उसे तोड़कर एक मस्जिद बना दी (ज्ञानवापी मस्जिद) बाद में अहिल्याबाई ने उस स्थान से दूर मंदिर निर्माण कराया जिसे आज काशी विश्वनाथ मंदिर कहते हैं।

जी हां.... जो असली ज्योतिलिंग था उसमें आज मस्जिद है...
आप मस्जिद के साथ पुराने मंदिर की दीवार भी देख पाएंगे।
बस इतना ही तो किया...! कौनसा बड़ा जुर्म कर दिया !

ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।

डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब दान हारावली में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है।

उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित मासीदे आलमगिरी में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। औरंगजेब ने प्रतिदिन हजारों ब्राह्मणों को मुसलमान बनाने का आदेश भी पारित किया था। आज उत्तर प्रदेश के 90 प्रतिशत मुसलमानों के पूर्वज ब्राह्मण है। (लेकिन ये मानेंगे नहीं) परन्तु जो सत्य है वह मिटाया नहीं जा सकता है।

सन् 1809 में काशी के हिन्दुओं ने जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि यह संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मं‍डप का क्षेत्र है जिसे आजकल ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया।

वाराणसी की फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में स्वयंभू भगवान विश्वनाथ और यूपी सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के बीच मुकदमा चल रहा है। इस मामले में अंजुमन इंतेजामिया बनारस भी वक़्फ़ बोर्ड के साथ है। मुस्लिम पक्ष की माँग थी कि इस मामले में स्टे बरक़रार रहे लेकिन कोर्ट ने उनकी माँग ख़ारिज कर दी है।

हिन्दू पक्ष का ये मानना है कि इसके पुरातात्विक और ऐतिहासिक साक्ष्य अभी भी मौजूद हैं, जो सामने आएँगे। सर्वेक्षण के लिए राडार तकनीक का इस्तेमाल करने की माँग की गई है। आशा है कि खुदाई के बाद जो रिपोर्ट आएगी, उससे मंदिर पक्ष का दावा और पुख्ता हो जाएगा। जबकि मस्जिद पक्ष लगातार सुनवाई को रोकने और इसमें व्यावधान पैदा करने में लगा हुआ है।

हिन्दू पक्ष ने इस मंदिर की महत्ता को उजागर करते हुए अपनी दलील में बताया था कि 15 वीं शताब्दी में मुगल बादशाह अकबर के कार्यकाल में हिन्दू राजाओं मान सिंह और टोडरमल द्वारा इस मंदिर के पुनरोद्धार का कार्य संपन्न कराया गया था।

अखिल भारतीय संत समिति ने अयोध्या विवाद की तर्ज पर श्रीकाशी ज्ञानवापी मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया था। मथुरा में आयोजित समिति की राष्ट्रीय कार्य परिषद की बैठक में काशी और मथुरा विवाद पर हर तरह का संघर्ष करने का फैसला किया गया था। बैठक में तय किया गया था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए रामजन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति की तर्ज पर इसके लिए भी एक मुक्ति यज्ञ का गठन किया जाए। भाजपा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी को इसका अध्यक्ष बनाया गया है।
संजय द्विवेदी