Ghanshyam Prasad's Album: Wall Photos

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क्या भगवान हमारे द्वारा चढाया गया भोग खाते हैं? यदि खाते हैं तो वह वस्तु खत्म क्यों नहीं हो गई?

एक लड़के ने अपने गुरु से ऐसा प्रश्न किया। गुरु ने कुछ समाधान नहीं दिया। पाठ पढ़ाते रहे। उस दिन पाठ में एक श्लोक सिखाया।
पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
पाठ पूरा होने पर सभी को कहा कि पुस्तक देखकर श्लोक कंठस्थ करलें।
थोड़ी देर बाद प्रश्न करने वाले शिष्य के पास जाकर पूछा कि श्लोक कंठस्थ हुआ कि नहीं। तब उस शिष्य ने पूरा श्लोक सही सही सुना दिया। फिर भी गुरु ने सर नहीं में हिलाया। तो शिष्य ने कहा कि- “चाहे तो पुस्तक देख लें। श्लोक सही है।” तो गुरु ने कहा-“अरे श्लोक तो पुस्तक में ही है। तो तुम्हें कैसे आ गया?” तो शिष्य कुछ कह नहीं पाया।
गुरु ने कहा- “पुस्तक में जो श्लोक है वह स्थूल स्थिति में है। तुम ने जब पढ़ा तो वह सूक्ष्म स्थिति में अंदर प्रवेश कर गया। उसी स्थिति में तुम्हारा मन रहता है। इतना ही नहीं, तुम जब इसको पढ़कर कंठस्थ करते हो, तो पुस्तक में जो स्थूल स्थिति का श्लोक है उसमें कोई कमी नहीं आई। इसी प्रकार पूरे विश्व में व्याप्त परिपूर्ण परमात्मा हमें हमारे द्वारा चढाये गये निवेदन को सूक्ष्म स्थिति में ग्रहण करते हैं। स्थूल रूप के वस्तु में कोई ह्रास नहीं होता। उसी को हम प्रसाद के रूप में लेते हैं।
पवन अवस्थी