13 मार्च 1940 की उस शाम लंदन का कैक्सटन हॉल लोगों से खचाखच भरा हुआ था. मौका था ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक का. हॉल में बैठे कई भारतीयों में एक ऐसा भी था जिसके ओवरकोट में एक मोटी किताब थी. यह किताब एक खास मकसद के साथ यहां लाई गई थी. इसके भीतर के पन्नों को चतुराई से काटकर इसमें एक रिवॉल्वर रख दिया गया था...!!
बैठक खत्म हुई. सब लोग अपनी-अपनी जगह से उठकर जाने लगे. इसी दौरान इस भारतीय ने वह किताब खोली और रिवॉल्वर निकालकर बैठक के वक्ताओं में से एक माइकल ओ’ ड्वायर पर फायर कर दिया. ड्वॉयर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई. हाल में भगदड़ मच गई. लेकिन इस भारतीय ने भागने की कोशिश नहीं की. उसे गिरफ्तार कर लिया गया. ब्रिटेन में ही उस पर मुकदमा चला और 31 जुलाई 1940 को उसे फांसी हो गई. इस क्रांतिकारी का नाम उधम सिंह था...!!
इस गोलीकांड का बीज एक दूसरे गोलीकांड से पड़ा था. यह गोलीकांड 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुआ था. इस दिन अंग्रेज जनरल रेजिनाल्ड एडवार्ड हैरी डायर के हुक्म पर इस बाग में इकट्ठा हुए हजारों लोगों पर गोलियों की बारिश कर दी गई थी. बाद में ब्रिटिश सरकार ने जो आंकड़े जारी किए उनके मुताबिक इस घटना में 370 लोग मारे गए थे और 1200 से ज्यादा घायल हुए थे. हालांकि इस आंकड़े को गलत बताते हुए बहुत से लोग मानते हैं कि जनरल डायर की अति ने कम से कम 1000 लोगों की जान ली...! यहीं पर उधम सिंह ने जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर जनरल डायर और तत्कालीन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ’ ड्वायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली..!!
ड्वॉयर के पास तब पंजाब के गवर्नर का पद था और इस अधिकारी ने जनरल डायर की कार्रवाई का समर्थन किया था..!!
महान क्रांतिकारी उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब में संगरूर जिले के सुनाम गांव में हुआ था. बचपन में उनका नाम शेर सिंह रखा गया था. छोटी उम्र में में ही माता-पिता का साया उठ जाने से उन्हें और उनके बड़े भाई मुक्तासिंह को अमृतसर के खालसा अनाथालय में शरण लेनी पड़ी. यहीं 1919 में जब जालियांवाला बाग कांड हुआ तो उन्होंने पढ़ाई जारी रखने के साथ-साथ स्वतंत्रता आंदोलन में कूदने का फैसला कर लिया...!!
1924 में उधम सिंह गदर पार्टी से जुड़ गए. अमेरिका और कनाडा में रह रहे भारतीयों ने 1913 में इस पार्टी को भारत में क्रांति भड़काने के लिए बनाया था. क्रांति के लिए पैसा जुटाने के मकसद से उधम सिंह ने दक्षिण अफ्रीका, जिम्बाब्वे, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा भी की. भगत सिंह के कहने के बाद वे 1927 में भारत लौट आए. अपने साथ वे 25 साथी, कई रिवॉल्वर और गोला-बारूद भी लाए थे. जल्द ही अवैध हथियार और गदर पार्टी के प्रतिबंधित अखबार गदर की गूंज रखने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन पर मुकदमा चला और उन्हें पांच साल जेल की सजा हुई...!!
सरदार उधम सिंह के महा बलिदान की कहानी आंदोलनकारियों को प्रेरणा देती रही. इसके बाद अंग्रेजों को 7 साल के अंदर देश छोड़ना पड़ा और हमारा देश आजाद हो गया. उधम सिंह जीते जी भले आजाद भारत में सांस न ले सके, पर करोड़ो हिंदुस्तानियों के दिल में रहकर वो आजादी को जरूर महसूस कर रहे होंगे...!!
भारत माँ के सच्चे सपूत उधम सिंह जी को उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन वंदन पहुँचे....