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जुलाई, 1949 में संघ पर से प्रतिबंध हटने के पश्चात्

देशभर में हो रहे स्वागत समारोहों तथा विशाल जनसभाओं के दृश्यों को देखकर संघ के प्रति सहानुभूति रखने वाले ही नहीं संघ के कट्टर विरोधी भी प्रभावित हुए बिना न रहे।

संघ-प्रतिबंध के दौरान संघ के विरुद्ध रात-दिन जनता को उभाड़ने वाले बंबई के अंग्रेजी साप्ताहिक ब्लिट्ज ने भी दिल्ली की विराट सभा का वर्णन करते हुए लिखा – “प्रतिबंध हटते ही संघ प्रमुख श्री गोलवलकर की लोकप्रियता आसमान की बुलंदियों को छूने लगी है। रिहाई के बाद सरदार पटेल और डॉ. राधाकृष्णन के समान राष्ट्रीय नेता उनका सार्वजनिक रूप से अभिनंदन कर रहे हैं। खाद्य संकट के हल हेतु उनके प्रयासों में सहयोग दें, अनेक स्थानों पर विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने उनके स्वागत समारोह आयोजित किये हैं। पूना में दो लाख लोगों ने उनका हार्दिक स्वागत किया, दिल्ली में उनकी सभा में तीन लाख जनता उन्हें मंत्रमुग्ध होकर सुन रही थी, सभा में उपस्थित हजारों गणवेशधारी स्वयंसेवकों में बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारी थे। नागपुर में विश्वविद्यालय छात्रसंघ ने स्वागत समारोह आयोजित किया। जयपुर व अमृतसर में उन्हें स्वागत कर रही लाखों की जनमेदनी के बीच से सजी हुई कार में ले जाया गया।”

ब्रिटिश आकाशवाणी बीबीसी की धारणा कभी संघ के प्रति अच्छी नहीं रही, वह उसे दक्षिणपंथी हिन्दू साम्प्रदायिक संगठन ही घोषित करती रही थी, उसे भी अपने समाचार प्रसारण में कहना पड़ा कि “नेहरू और सरदार पटेल के बाद कौन? इस प्रश्न का उत्तर वामपंथियों के नेता नहीं, संघ प्रमुख गोलवलकर हैं। वे जब दिल्ली में आये तो ढाई लाख लोग उनका भाषण सुनने उपस्थित हुए। भारत में केवल नेहरू जी ही इतनी बड़ी भीड़ जुटा सकते हैं। 19 मास तक प्रतिबंधित रहने वाली संस्था के प्रमुख का इतना भव्य स्वागत व इतनी बड़ी सभा अपने आप में एक मिसाल है।” उसे यह भी कहना पड़ा कि “संघ को नाजी संगठन तथा संघ प्रमुख को तानाशाह प्रचारित किया जाता है। पर श्री गोलवलकर में तो ऐसा कुछ नहीं दिखाई पड़ा, जिससे उनकी तुलना यूरोपीय तानाशाह हिटलर मुसोलिनी से की जा सके।”

जय श्री राम