गोरी हुकूमत को देश से बाहर का रास्ता दिखा देने के इरादे से मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 को लेफ्टिनेंट बॉग़ सहित अन्य अंग्रेज अधिकारियों पर हमला कर दिया लेकिन वह पकड़ लिए गए. उनकी गिरफ्तारी की खबर देशभर की सैनिक छावनियों में जंगल में आग की तरह फैल गई और विप्लवी भारतीय सैनिकों ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया.
कोर्ट मार्शल में छह अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी देने के लिए 18 अप्रैल की तारीख तय की गई. उनकी मौत की सजा की खबर ने देश के हर आदमी को उद्वेलित कर दिया. पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ संग्राम छिड़ गया.
मंगल पांडेय द्वारा लगाई गई चिनगारी को ज्वालामुखी बनते देख अंग्रेजों को लगा कि यदि फांसी में देरी की गई तो बगावत उनके शासन को तबाह कर सकती है. इसलिये तय वक्त से 10 दिन पहले आठ अप्रैल को ही इस वीर पुरुष को फांसी दे दी गई.
भारत के इस महान सेनानी की फांसी के बाद देश में महीनों तक आजादी की लड़ाई चलती रही लेकिन अंतत: अंग्रेज इसे दबाने में कामयाब हो गए. स्वतंत्रता के लिए लड़े गए इस युद्ध को शुरू में '1857 का गदर' नाम मिला लेकिन बाद में इसे पहली जंग ए आजादी के रूप में मान्यता प्राप्त हो गई.
मंगल पांडे के प्रयास का नतीजा 90 साल बाद 1947 में भारत की आजादी के रूप में निकला और अंग्रेज अपना सब कुछ समेटकर चले गए.