कुछ लोग बोल रहे हैं यह संभव नहीं हो सकता , हमारा जबाब साफ नियत हो तो कुछ भी संभव हो सकता है यही पहले राम मंदिर पर बोलते थे यही पहले कश्मीर पर बोलते थे आज हुआ कि नहीं जिसकी सरकार होती है वो चाहे तो कुछ भी कर सकते है बड़ी चुनौती नहीं एक बड़ी आवादी सरकार के समर्थन में रहती है पूरा शिष्टम सरकार के हाथ मे रहती है सेना सहित इतनी बटालियन काहे को है । पर जब सत्ता को ही मतलब नहीं हो तो कुछ भी संभव नहीं हो सकता । नेशनल पार्टी के छत्रछाया में ही हर राज्य में छोटे छोटे दल पनप रहे होते है और वास्तव में नेशनल पार्टी के छोटे दल एजेंट होते है कि जाति जाती को तुम ग़ुमराह करते रहो वोट में हम तुम साथ होंगे कुछ सीट मंत्री के हम लेगे कुछ तुम भी लेना वास्तव में यही है वरना सेकुलर शब्द 1976 में आया , अल्पसंख्यक कितनी आवादी को ओर क्यो आवश्यक है फालतू में आरक्षण 10 वर्ष के लिए थी फिर कांग्रेस हो या बीजेपी काहे को बढ़ाते आ रही है यह सब राजनीती व्यापार है जो नेशनल दल चाहती है कि खत्म हो ही नहीं ताकि अपना अपना व्यापार चलते रहे सबको आपस मे लड़ाते रहे रोटी सेकते रहे , आत्मनिर्भर बनाने की बात कर रहे है पर आरक्षण जैसे भेदभाव देकर कैसे आत्मनिर्भर बनाने पर तुले हुए हो जी