Ajay Mishra Dhooni's Album: Wall Photos

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निरांजली...

परिपक्वता घर के चारदीवारी में रहने से नही आती।उसके लिए सर-समाज मे उठना बैठना जरूरी होता है।समाज से बाहरी दुनिया से अच्छे बुरे का ज्ञान मिलता है।घर-परिवार,रिश्ते-नाते,इष्ट-मित्र सब इसलिये तो हैं।
मैं भी बाहर निकलना चाहती थी,दुनिया घूमना चाहती थी, अपने पंखों से।मगर मेरे घरवालों ने तो मेरा पंख ही काट दिया था।दिनभर काम करो खाओ और घर मे रहो।दसवीं के बाद गांव में साधन ही नही थे कि आगे पढ़ पाती।उनदिनों मेरे चाचा मेरे सबसे करीबी थे।वो मुझसे दुगने उम्र के थे हालांकि काफी दूर की रिस्तेदारी थी।फिर भी रोज घर आते मुझे पुचकारते,इधर उधर छूते मगर मुझे अच्छे बुरे का ज्ञान नही था क्योंकि मैं मात्र चौदह की थी।घर मे दुबककर रहने वाली लड़की जिसे बाहरी दुनियादारी की कोई खबर नही।उन्हें मेरी पढ़ाई की बहुत चिंता रहती।जब वो आते थे तो मेरा भी कुछ मन बहल जाता।वो रोज मुझे बाहर ले जाकर पढ़ाने का सपना दिखाते और मैं खुशी से चहक जाती।
एकदिन हम कामयाब हो गए। हमने मौका देखकर घर छोड़ दिया ।चाचा मुझे कलकत्ते ले आये।हम एक साल तक कलकत्ते में रहे और वहाँ उन्होंने मेरे साथ वो सबकुछ किया जिसके लिए वो मुझे लेकर गए थे।अब वो मेरी अज्ञानता थी या पढ़ाई की ललक मैं भी उनको रोक न सकी।मगर मेरा विस्वास कीजिये अगर मुझे ये जरा भी महससू होता कि मेरे साथ ये सबकुछ गलत हो रहा है तो मैं ऐसा कभी न होने देती भले मर जाती।बहरहाल ,तकरीबन साल भर कलकत्ते में बिताने के बाद एकदिन पिताजी चार लठैतों के साथ वहाँ आ धमके।उन्होंने चाचा को खूब पीटा।मुझे भी पीटा और गाँव वापस लेकर आ गए।आने के दो दिन बाद सबको पता चला कि मैं पेट से हूँ।फिर मेरा गर्भ गिराया गया।मुझे फिरसे पीटा गया।उस घटना के बाद सबको लगने लगा कि मेरी शादी हो जाय तो गाँव की इज्जत बच जाएगी।मैंने सुना तो मना कर दिया कि मुझे अभी पढ़ना है।माँ ने इस बात पर खूब बुरा भला कहा।'अरे!नाश..करम.. शादी छोड़ तूने तो वो सबकुछ कर लिया जो माँग में सिंदूर पड़ने के बाद होता है'।'अगर अब कुछ बोली तो मुँह में लुआठी ठूस दूंगी वगैरह वगैरह'।सारी बातों को लुका छुपाकर मेरी शादी मुझसे नौ साल बड़े दुआह लड़के से कर दी गई।किसी को भनक तक नही लगा कि मैं घर से भागी हुई लड़की हूँ।लड़का तो यही सोच रहा होगा कि उसे नई नवेली दुल्हन मिली है।मगर सच्चाई ये थी कि मैं भी दुआह ही थी।
पाँच साल हो गए थे शादी को मगर मुझे माँ बनने का सुख नही मिला था।एकदिन गाँव से ही फोन करके किसी ने ससुराल वालों से मेरे अतीत को उजागर कर दिया।उसदिन के बाद सभी को मुझसे नफ़रत हो गयी।मेरे गर्भ गिराने वाली घटना को ही सब बच्चा न होने का कारण समझने लगे।मेरे पति मुझसे दूर शहर में रहने लगे।एकदिन मैं अपने कमरे में उदास बैठी थी।ससुर आये और मुझे बहलाने लगे।मुझसे बेपर्दा होने को कहने लगे।किसी तरह मैंने उनको कमरे से बाहर किया और भीतर से दरवाजा बंद कर लिया।मैंने गाँव में पापा के पास फोन भी किया कि आकर मुझे बचा लीजिये।मगर कोई नही आया।मुझे कुछ समझ नही आ रहा था आखिर मैं कब तक कमरे में बंद रहती।
बचपन से कैद कैद और बस कैद ही तो मिला है मुझे।पर अब नही अब मैं आज़ाद रहना चाहती हूं।मुझमे हौसला आया।मैंने सुबह दरवाजा खोला।ससुरजी ताक में थे।वो मुझे कमरे में जबरन धकेलने लगे मुझे अपने को बचाना था मैंने फ्रिज पर रखी कैंची से उनके आँखों मे फिर पेट मे वार किया वो वहीं गिर गए।मेरा हाँथ खून खून हो चुका था।मैंने थाने में फोन किया।कुछ देर बाद पुलिस आयी और बाद में मुझे 7 साल की सजा हो गयी।आज मैं परिपक्व हूँ।मुझे समझ आ गया है कि ये दुनिया औरतों के लिए है ही नही।आज भले ही मुझे आत्मरक्षा के बदले कैद मिला हो,मगर ये कैद नही आज़ादी है।आज़ादी...समाज के दकियानूसी विचारों से, भ्रष्ट रिश्तों के आडंबर से ,मेरी अपरिपक्वता से।

अजय मिश्रा 'धुनी'...