मैं अपने विवाह के बाद अपने माँ व पिताजी से मिलने घर गई I
अपने विवाह के बाद
एक गर्म उमस भरे दिन, मैं अपनी माँ के घर,
उनके साथ सोफे पर बैठी, बर्फ जैसा ठंडा जूस पी रही थी I
जब मैं अपनी माँ से, विवाह के बाद की व्यस्त जिंदगी,
जिम्मेदारियों और उम्मीदों के बारे में अपने ख़यालात का इज़हार कर रही थी, तब वह अपने गिलास में पड़े बर्फ के टुकड़ों को स्ट्रा से इधर उधर नचाते हुए, बहुत गंभीर और शालीन खामोशी से मुझे सुनती जा रही थी I
अचानक उन्होंने कहा,
"अपनी सहेलियों को कभी मत भूलना !"
उन्होंने सलाह दी,
*"तुम्हारे दोस्त उम्र के ढलने पर पर तुम्हारे लिए और भी महत्वपूर्ण और ज़रूरी हो जायेंगे I"*
"*बेशक अपने बच्चों, बच्चों के बच्चो को भरपूर प्यार देना*,
मगर
*अपने पुराने, निस्वार्थ और सदा साथ निभानेवाले दोस्तों को हरगिज़ मत भुलाना* I
*वक्त निकाल कर*,
*उनके साथ समय ज़रूर बिताना* I
उनके घर खाना खाने जाना और जब मौक़ा मिले उनको अपने घर बुलाना I
*कुछ ना हो सके तो फोन पर ही जब तब, हाल चाल पूछ लिया करना I"*
मैं नए नए विवाहित जीवन की खुमारी में थी और माँ पिताजी मुझे यारी-दोस्ती के फलसफे समझा रहे थे I
मैंने सोचा,
"क्या जूस में भी नशा होता है,
जो माँ पिताजी बिन पिए बहकी बहकी बातें करने लगे?
आखिर मैं अब बडी हो चुकी हूँ,
मेरे पति और मेरा होने वाला परिवार मेरे लिए जीवन का मकसद और सब कुछ है I
दोस्तों का क्या मैं अचार डालूँगी?
लेकिन मैंने आगे चल कर, एक सीमा तक उनकी बात माननी जारी रखी I
*मैं अपने गिने-चुनि सहेलियों के संपर्क में लगातार रही I*
संयोगवश समय बीतने के साथ उनकी संख्या भी बढ़ती ही रही I
*कुछ वक्त बाद मुझे अहसास हुआ कि उस दिन मेरे पिता जूस के नशे में नहीं उम्र के खरे तजुर्बे से मुझे समझा रहे थे*I
*उनको मालूम था कि उम्र के आख़िरी दौर तक ज़िन्दगी क्या और कैसे करवट बदलती है*
*हकीकत में ज़िन्दगी के बड़े से बड़े तूफानों में दोस्त*
*कभी मल्लाह बनकर,
कभी नाव बन कर साथ निभाते हैं और कभी पतवार बन कर* I
*कभी वह आपके साथ ही ज़िन्दगी की जंग में, कूद पड़ते हैं* I
*सच्चे दोस्तों का काम एक ही होता है- दोस्ती* I
*ज़िन्दगी के पचास साल बीत जाने के बाद मुझे पता चलने लगा कि घड़ी की सुइंयाँ पूरा चक्कर लगा कर वहीं पहुँच गयीं थी*,
*जहाँ से मैंने जिंदगी शुरू की थी* I
*विवाह होने से पहले मेरे पास बहुत सी सहेलियां थी*I
विवाह के बाद बच्चे हुए I
*बच्चे बड़े हुए*
*उनकी जिम्मेदारियां निभाते निभाते मैं बूढी हो गई*I
*बच्चों के विवाह हो गएI उनके कारोबार चालू हो गए* ।
*अलग परिवार और घर बन गए*I
*बेटियाँ अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गयीं* I
*बेटे बेटियों के बच्चे कुछ समय तक दादा-दादी और नाना-नानी के खिलौने रहे*I
*उसके बाद उनकी रुचियाँ मित्र मंडलियाँ और जिंदगी अलग पटरी पर चलने लगीं*
*अपने घर में मैं और मेरे पति ही रह गए I*
*वक्त बीतता रहा और कार्य ना करने की भी उम्र आ गई* I
*साथी-सहयोगी और प्रतिद्वंद्वी मुझे बहुत जल्दी भूल गए*I
*एक चीज़ कभी नहीं बदली, मेरे मुठ्ठी भर पुराने दोस्त* I
*मेरी दोस्तियाँ ना तो कभी बूढ़ी हुईं, ना रिटायर*
*आज भी जब मैं अपने दोस्तों के साथ होती हूँ, लगता है अभी तो मैं जवान हूँ और मुझे अभी बहुत से साल ज़िंदा रहना है I*
*सच्चे दोस्त जिन्दगी की ज़रुरत हैं*,
*कम ही सही कुछ दोस्तों का साथ हमेशा रखिये*,
*दोस्त कितने भी अटपटे,गैरजिम्मेदार,
बेहूदे और कम अक्ल क्यों ना हों*,
*ज़िन्दगी के बेहद खराब वक्त में उनसे बड़ा योद्धा और चिकित्सक मिलना नामुमकिन है* I