बात उस समय की है जब लन्दन में शहरीकरण की आंधी आई हुई थी। लोगों ने पैदल चलना छोड़ दिया था और शहर में घोड़ा गाड़ियों की बाढ़ आ गई थी। शहर में घोड़ा गाड़ियों के अलावा चलती थी हंसोम कैब...
हंसोम कैब एक किस्म की घोड़ागाड़ी ही थी। हंसोम कैब का आविष्कार हंसोम नामक इंजीनियर ने किया था। वर्ष 1890 में लन्दन की सड़कों पर 11000 हंसोम कैब्स थी।
कुल मिलाकर लन्दन की सड़कों पर कम से कम पचास हजार घोड़े दौड़ते थे। अब घोड़े दौड़ेंगे सड़कों पर तो 'लीद' करने 'इज्जतघर' तो जाएंगे नहीं।
नतीजा....
लन्दन की सड़कों पर रोजाना साढ़े सात हजार कुंतल लीद जमा होने लगी। सड़कें लीद से पट गयी। सोने में सुहागा... घोड़े का मूत्र। तो मूत्र ने लीद के साथ मिलकर ऐसा समा बांधा कि लोगों का सड़कों पर चलना दूभर हो गया। शहर में टाइफाईड जैसी बीमारियां विकराल रूप धारण करने लगीं।
स्थिति इतनी बिगड़ गई कि टाइम्स ऑफ लन्दन ने लेख छापा कि अगर स्थिति यूँ ही बनी रही तो अगले 50 वर्षों में लन्दन की सड़कों पर लीद के 9 फ़ीट ऊंचे ढेर लग जाएंगे।
और इसी को नाम दिया गया...1894 का 'ग्रेट हॉर्स मैन्योर क्राइसिस'
कम ओ बेस हालात न्यूयार्क के भी यही थे। वहां तो लन्दन से भी दूनी संख्या में घोड़े मौजूद थे सड़कों पर। परेशान न्यूयार्क वासी भी थे...
इस परेशानी का हल ढूंढने के लिए विभिन्न देशों के प्रतिनिधि न्यूयार्क में एकत्रित हुए। और यही था दुनिया का पहला 'अंतरराष्ट्रीय शहरी नियोजन सम्मेलन'।
और हाँ.... जिस समय गोरे घोड़े की लीद से निजात पाने का रास्ता तलाश रहे थे उस समय मेरे देश का किसान बेफिक्र होकर गौवंशीय गोबर से अपने घरों और रसोई की लिपाई कर गौरान्वित महसूस कर रहा था।
आज विश्व पर्यावरण दिवस है। गोबर का सदुपयोग कीजिये। पर्यावरण को स्वस्थ बनाइये।