Ashok Sanatani's Album: Wall Photos

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#भारतमाता_बलिदान_से_ही_बचेगी_अन्यथा_नहीं

ढोल ताशे बजा बजा #प्रचारित किया जा रहा है कि #वियतनाम जैसे छोटे से देश ने अमेरिका को पराजित कर दिया था लेकिन यदि सामरिक उद्देश्यो की दृष्टि से देखे तो सही भी है इस युद्ध मे अमेरिका ने लगभग अपने ५८३१५ सैनिको की आहुति दी थी और लगभग ३०३००० जख्मी हुए...दूसरी और दक्षिणी वियतनाम ने अपने ६५००० सिविलियन और चार लाख पैंतालीस हजार सैनिको की आहुति दी... उत्तरी वियतनाम ने अपने लगभग पाँच लाख सैनिक और असैनिक खोये थे... इतने बडे स्तर पर जान माल के नुकसान के बाद भी वियतनाम पीछे नही हटा... उन्नीस साल पाँच महीनो तक युद्ध चला बाद मे अमेरिका पीछे हटा मगर वियतनाम ने घुटने नही टेके...!
अब जरा सोचिये कि अगर वियतनाम की जगह भारत होता तो क्या हम इतनी बडी और इतने लम्बे समय तक कुर्बानी दे सकते थे...में कहता हूं नही... बिल्कुल भी नही...तो दोस्तो दिल थाम कर पढ़ना आज हकीकत से रूबरू करवाऊंगा और हा न तो ज्यादा झाड पर चढने की जरूरत न ही ज्यादा सूरमाई और वीरता की डींगे मारने की जरूरत...वैसे भी युद्ध के मैदान मे हम हिंदुओ का पराक्रम तो पूरे विश्व इतिहास मे जाना जाता है...पिछले एक हजार वर्षो के इतिहास मे एक भी लडाई ऐसी नही जिसमे हम नही हारे... चोर, उचक्के, डाकु, उठाईगीर, लुटेरे, गुलाम और ना जाने कौन कौन आतताई मुठ्ठी भर गधे घोड़ो पर आते रहे हमे हराते रहे और अपनी दासता के लिए मजबूर करते रहे... आज जब भी इतिहास पढते है तो अंतिम विश्लेषण के रूप मे पढाया जाता है कि हम संगठित नही थे आपस मे ईर्ष्या और द्वेष के कारण आपस मे लडते रहते थे हमारे अंदर फूट थी हम विदेशियो का प्रतिकार नही कर पाये आदि आदि आदि... लेकिन यदि देखा जाऐ तो भारतीय इतिहास मे जितने स्वार्थी, गद्दार और देशद्रोही मिलेंगें शायद पूरे विश्व मे मिलने मुश्किल है... ये कौम दस सालो तक युद्ध लडना तो दूर,कुछ ही घंटो के युद्ध मे जीभ निकाल हाँफ जायेगी...जो लोग आलू, प्याज, टमाटर के दामो मे पाँच दस रूपयो की बढोत्तरी बर्दाश्त नही कर सकते वो दस साल लंबा युद्ध झेलना तो दूर सोच भी नही सकते ?

आईये कुछ युद्धो एवं उनमे हुई कैजुल्टियो का विवरण भी देख साथ ही साथ समायवधि को भी जान लें... १९४७ मे आजादी मिलते ही हम कश्मीर मे पाकिस्तान के साथ युद्ध मैदान मे खडे थे... लगभग एक साल और एक महीने मे ही १५०० सैनिक खोकर हम समझौते पर उतर आये और मामला संयुक्त राष्ट्र संघ मे ले गये क्योकि बकौल नेहरू देश युद्ध का खर्च नही उठा पा रहा था जबकि हमसे खराब अर्थवयवस्था होने के बावजूद पाकिस्तान पीछे नही हटा और आज तक पाक अधिकृत कश्मीर पर उसका कब्जा बरकरार है...?
१९६२ मे चीन के साथ युद्ध मैदान मे थे... हमने लाखो वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र और लगभग १४०० सैनिक खोये जबकि १७०० लापता और उतने ही घायल हुए, मात्र एक महीने के युद्ध मे हम कंगाली के मुहाने पर खडे थे क्योकि कोई भी युद्ध सैनिक लडते है मगर वास्तविक अवलंब देश की आर्थिक शक्ति होती है जो देश को युद्ध मैदान मे खडा रखती है...?
सितम्बर १९६५ मे हम पाकिस्तान के साथ दूसरे युद्ध मे उतरे... मात्र सत्रह दिनो की लडाई मे ही हमे दस्त लग गये और तत्परता से सीज-फायर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया युद्ध मे हमने अपने लगभग ४००० सैनिक खोये मगर हमारे देशप्रेम की पोल दो हफ्तो मे ही खुल गई...?
सन् १९७१ मे हम एक बार फिर पाकिस्तान के साथ १३ दिनो के लिए युद्ध मे उतरे...निसंदेह हमने विजयश्री प्राप्त की और पाकिस्तान के दो टुकडे कर दिये लगभग ४००० जवान शहीद हुए मगर जल्द ही शिमला समझौते के तहत हमने खुद को छला और युद्ध के कारण बढी मँहगाई की वजह से "आपातकाल" के दुष्प्रभावो को झेला फलस्वरूप इंदिरा गाँधी को सत्ता गँवानी पडी...?
इसके बाद श्रीलंका मे अनावश्यक हस्तक्षेप करके ऑपरेशन "पवन" के तहत हमने श्रीलंका मे अपनी सेना भेजी और १२०० सैनिको की जान के साथ साथ राजीव गाँधी ने सत्ता से भी हाथ धोया...?
वर्ष १९९९ पाकिस्तान के साथ कारगिल मे लडे गये चौथे युद्ध मे हमने ६०० जवान खोये जिसके बाद कई देशो द्वारा इंबार्गो लगने के बाद हमीं ने वाजपेयी जी को पानी पी पी के कोसा और जवानो की मौतो का जिम्मेदार तक बताया...अब देखा जाऐ तो १९४७ मे आजादी मिलने के बाद आज तक सैन्य अभियानो मे हमने लगभग १२००० से ऊपर सैनिको की कुर्बानी दी है (कश्मीर के छद्म युद्ध के आँकडे शामिल नही है) जबकि इससे ज्यादा पाकिस्तानी सैनिक तो केवल १९७१ मे ही पाकिस्तान ने गँवाये थे...अपनी आजादी को अक्षुण्य रखने के लिए ये कीमत कोई ज्यादा भी नही है...!
१५० करोड लोगो का देश है हम, शायद इसीलिए आजादी और स्वाधीनता की कीमत जान ही नही पाये हम लोग क्योकि इसके लिए हमने कभी कोई बडी कीमत चुकाई ही नही... शायद इसीलिए हम स्वशासन और राष्ट्रहित की कीमत अभी तक नही जानते क्योकि हमने कभी कोई बडा मूल्य चुकाया ही नही... आगरा शिखर वार्ता मे हमारे तथाकथित बुद्धि जीवी मुशर्रफ की चरण वंदना मे मशगूल दिखे मानो वो कोई ईश्वरीय दूत हो... अब ऐसे देश के लोगो से क्या अपेक्षा भी की जा सकती है कि वो राष्ट्रवाद की बात करे...?
दो जवानो की शहादत पर पूरा देश पाकिस्तानी सरकार के बजाय उनकी सेना से संवाद करने को लेकर गाल बजाने लगता है ये है हमारा यौद्धाओ के रूप मे प्रदर्शन कभी उनके दस लोग मुंबई को तीन दिनो तक दहलाये रखते है तो कभी चार लोग पाँच दिनो तक पठानकोट जैसी घटनाओ को अंजाम देते है और हम बजाय प्रतिक्रियात्मक रूख अपनाये अपनी सरकारो को कोसने लगते है मानो हमारी सरकार ने ही निमंत्रण भेजकर बुलाया हो... दोस्तो राष्ट्रवाद बहुत बडी चीज है और दुर्भाग्य से हमारी संकुचित मूढ मति से बहुत परे की चीज दूध, घी, प्याज, टमाटर, पेट्रोल की कीमतो और आरक्षण के नाम पर विलाप करने वाले देश के नागरिक शायद कौमी सम्मान और अपनी पहचान के लिए मिट जाने का हुनर नही जानते... सीख भी नही सकते ये केवल टुच्ची राजनीति और स्वार्थ के गुलाम है... एक कमजोर कायर और बेगैरत कौम की तरह जो आसानी से विदेशी प्रभुत्व के समक्ष केवल अपने स्वार्थ के निमित्त नतमस्तक होने की कला ९८६ मे पारंगत होकर अपनी बुजदिली को अहिंसा के झूठे लाबादे मे लपेटे हुए है... वियतनाम इजराइल जैसे देशो से शायद हमे राष्ट्रवाद राष्ट्रभक्ति और कौमी सम्मान के लिए सब कुछ न्योछावर कर देने के जज्बे सहित बहुत कुछ सीखना बाकी है... १९ साल विश्व की महाशक्ति के सामने टिके रहने वाले छोटे छोटे देशो मे यदि आलू, प्याज, टमाटर पैट्रोल की कीमतो वाले लोग होते तो शायद उन देशो को भी भारत की तरह विदेशी दासता का जुआ हजारो सालो तक ढोना पडता... पिछले छह सालो से एक सच्चा राष्ट्र भक्त दिन रात जिंदा मुर्दो में जान फूंकने की अथक कोशिश कर रहा है... लेकिन मौका मिले तो यही हराम की मलाई चाटने वाली मुफ्त खोर स्वार्थी जनता बिना भुने बिना तेल मिर्च लगाए कच्चा चबा जाए... अपनी हर कमी का दूसरे पर ठीकरा फोड़ने वाले करणधीरो से "मा खोद देंगे नया मकान बनाकर उसको भी पोत देंगे" जैसे कितने ही नारे लगवा लो सिर्फ एक पव्वा एक बोटी के लिए... याद रखना हमेशा... बिना बलिदान के कोई भी बदलाव सम्भव हो ही नही सकता...
अभी भी वक्त है...जागो और जगाओ...आक्रमण ही सबसे बड़ा मन्त्र है...किसी भी रणभूमि में...जितने का...!!!
जय सनातन, जय हिन्दू राष्ट्र...