Ashok Sanatani's Album: Wall Photos

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#पिछले_७०_दिन में इस #देश में जो हुआ वह एक बड़ा #मजाक बन कर रह गया...देश को #lockdown का फैसला जब #केंद्र_ने_महामारी और मौत की आहट के चलते लिया होगा...तब शायद #केंद्र_सरकार को अंदाजा न होगा कि #संघीय_ढांचे के अंतर्गत राज्य अपने #मूल_कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करेंगे और अपने #नागरिकों को जो #फ्री_का_राशन_केंद्र दे रही थी वो भी नहीं खिलाएंगे...!
माना कि #lockdown_अकस्मात था, फिर भी राज्य सरकारें अगर चाहती तो देश की सुरक्षा के लिए "जो जहां है वहीं रहे" का पालन करती...इसमें थोड़ी कठिनाई होती या हो सकता है चंद बहुमूल्य जान भी चली जाती,पर बंद का असर दिखता और पूरा देश अब तक इस विपदा से लगभग निपट चुका होता...पर यह एक "आदर्श चित्रण" जो होना था,पर हुआ नही...उल्टा राज्य सरकारों ने भय का माहौल बना मजदूरों का जो धक्के देकर ऐतिहासिक पलायन कराया वह अभूतपूर्व था...राज्य सरकारों के लिए यह राजनैतिक दृष्टि से सुविधाजनक था क्योंकि हर मजदूर की कहानी के माध्यम से केंद्र को दोषी ठहराना सरल था...लेकिन मेरा कहना है हर नागरिक और हर राहगीर के भोजन-पानी की व्यवस्था केंद्र को हीं करनी थी तो राज्य सरकारों का अस्तित्व किस लिए है...?
एक Anti national गठबंधन जो देश में पिछले कई दशकों से सक्रिय था,उसके लिए २०१४ का चुनाव एक धक्का था...फिर २०१९ में तो जनता की समझदारी ने उसको चारों खाने धूल चटा दी,पर वह मरा नहीं..‌.वह अपने भांड मीडिया के नर भक्षी गिद्धों और घाघ राजनीतिज्ञों के माध्यम से लगातार प्रयास करता रहा कि भारत की विकास यात्रा में कैसे लगाम लगे...कैसे पहिया रुके...कैसे गाड़ी बेपटरी हो...?
जब इस महामारी में भी केंद्र ने सही समय पर सटीक कदम उठा लिया तो इस Cartel ने बहुत गजब खेल खेला...मजदूरों का पलायन और उनके पाँव के छाले देख एक-एक भारतीय द्रवित हो उठा,उसके संस्कार भाव-विह्लल हो उठे और वह भी केंद्र को धीरे धीरे कोसने लगा...वह यह भूल गया कि lockdown कोई हॉलिडे पैकेज नहीं है...बल्कि उसका मूल उद्देश्य ही यहीं था कि "जो जहां है वही रहे"...वह यह भी भूल गया कि कोरोना वायरस भी उनके साथ यात्रा कर रहा है...एक-एक गांव और शहर से गुजरता वह मजदूर अनजाने में अपने साथ वो जलजला भी साथ ले आया है जो आने वाले दिन में अपना विकराल रूप दिखायेगा...अब देश विरोधी गठबंधन उन लाशों के फ़ोटो २४ घंटे दिखायेगा जो इस वायरस की वजह से और गांवों में इलाज की सुविधा न होने की वजह से होगी...ये एक अटूट सत्य है कि ७० दिन अपने अपने घर में कुर्बान करने के बाद भी हम हार की दहलीज पर खड़े है... इसलिए देश के प्रति जो भी नेक इरादे हैं,वह इस बार मात खा चुके हैं...देश के प्रति प्रधानमंत्री के संबोधनों में भी धीरे-धीरे उनकी हताशा झलक रही है...वे भी शायद अंदर-अंदर समझ चुके है कि नर भक्षी भेडियो द्वारा क्या खेल खेला गया है और आने वाले दिन में उसके क्या परिणाम होने वाले है... इतिहास गवाह है अच्छी नियत और नेक इरादे हमेशा सफल नहीं होते...लगता है कि अंत में देश में वही होगा जो कुछ विघटनकारी ताकतें चाहती है... लेकिन समस्या सबसे बड़ी वही है कि देश की अशिक्षित और अल्पशिक्षित जनता इस विपक्ष के झाँसे में कब तक आती रहेगी...आखिर एक आदमी कब तक लोहा लेगा...सुन कर तेरी पुकार...संग चलने को तेरे...कोई हो न हो तैयार
हिम्मत न हार...चल चला चल...

जय सनातन, जय हिन्दू राष्ट्र