Brijendra Mishra's Album: Wall Photos

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गायत्री उपासना का विधि- विधान
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ब्रह्मसन्ध्या- जो शरीर व मन को पवित्र बनाने के लिए की जाती है। इसके अन्तर्गत निम्नांकित कृत्य करने पड़ते हैं।

पवित्रीकरण
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बाएं हाथ में जल लेकर उसे दाहिने हाथ से ढक लें एवं मन्त्रोच्चारण के साथ जल को सिर तथा शरीर पर छिड़क लें। पवित्रता की भावनाकरें।

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपिवा ।।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्यभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।

आचमन
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तीन बार वाणी, मन व अंतः करण की शुद्धि के लिए चम्मच से जलका आचमन करें। हर मंत्र के साथ एक आचमन किया जाय ।।

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ॥ १॥
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ॥ २॥
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा ॥ ३॥

शिखा स्पर्श एवं वंदन
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शिखा के स्थान को स्पर्श करते हुए भावना करें कि गायत्री केइस प्रतीक के माध्यम से सदा सद्विचार ही यहाँ स्थापित रहेंगे।निम्न मंत्र का उच्चारण करें

ॐ चिद्रूपिणी महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरूष्व मे ॥

प्राणायामः
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श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालनाप्राणायाम कृत्य में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें किप्राण शक्ति और श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है ! छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण दुष्प्रवृत्तियाँ,बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं। प्राणायाम निम्नमंत्र के उच्चारण के बाद किया जाय।

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ।। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ! ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्मभूर्भुवः स्वःॐ ।।
न्यास
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इसका प्रयोजन है शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों में पवित्रताका समावेश तथा अंतः की चेतना को जगाना ताकि देवपूजन जैसाश्रेष्ठ कृत्य किया जा सके। बायें हाथ की हथेली में जल लेकरदाहिने हाथ की पाँचों उँगलियों को उनमें भिगोकर बताए गए स्थानको मंत्रोच्चार के साथ स्पर्श करें ।।

ॐ वाङ्मे आस्येऽस्तु ।। (मुख को)
ॐ नसोर्मेप्राणोऽस्तु ।। नासिका के दोनों छिद्रों को
ॐ अक्ष्णोर्मेचक्षुरस्तु ।। (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु ।। (दोनों कानों को)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु ।। (दोनों बाहों को)
ॐ ऊर्वोर्मेओजोऽस्तु ।। (दोनों जंघाओं को)
ॐ अरिष्टानिमेऽअङ्गानि तनूस्तान्वा में सह सन्तु
- (समस्त शरीर को)
पृथ्वी पूजनम्
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धरती माता का पंचोपचार विधि से मंत्रोच्चार के साथ पूजन करें ।।

ॐ पृथ्वीतया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृताः ।।
त्वं च धारण मां देवि पवित्रं कुरू चासनम् ॥

आत्मशोधन की ब्रह्मसंध्या के उपर्युक्त षट् कर्मों का भाव यहहै कि साधक में पवित्रता एवं प्रखरता की अभिवृद्धि हो तथामलिनता, अवांछनीयता की निवृत्ति हो। पवित्र- प्रखर व्यक्ति ही भगवानके दरबार में प्रवेश के अधिकारी होते हैं।

देव पूजन
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गायत्री उपासना का आधार केन्द्र महाप्रज्ञा- ऋतम्भरा गायत्री है।उनका प्रतीक चित्र सुसज्जित पूजा की वेदी पर स्थापित कर उनकानिम्न मंत्र के माध्यम से आह्वान करें। भावना करें कि साधक कीभावना के अनुरूप माँ गायत्री की शक्ति वहाँ अवतरित हो स्थापितहो रही है।

आयातु वरदे देवि अक्षरे ब्रह्मवादिनी ।।
गायत्रिच्छन्दसां माता ब्रह्मयोनिर्नमोऽस्तुते ॥३॥
ॐ श्रीगायत्र्यै नमः ।। आवाहयामि, स्थापयामि
ध्यायामि ।। ततो नमस्कारं करोमि ।।

जिन्हें जैसी सुविधा हो उपयुक्त मंत्र से अथवा गायत्री मंत्र से आवाहन कर लें ।।
आवाहन की हुई गायत्री माता का पूजन करना चाहिए। पूजन में साधारणतया (१) जल (२) धूपबत्ती (३) दीपक (४) अक्षत (५) चन्दन (६) पुष्प (७) नैवेद्य ।।
इन सात वस्तुओं से काम चल सकता है। एक छोटी तश्तरी चित्र के सामने रखकर उसमें यह वस्तुएँ
गायत्री मंत्र बोलते हुए समर्पित की जानी चाहिए। तत्पश्चात् उन्हें प्रणाम करना चाहिए। यह सामान्य पूजन हुआ। इसके बाद गुरु आवाहन और पुजन करें ! माँ गायत्री का ध्यान करते हुए मंत्र जप शुरु करें !