अगले दिनों संसार में एक भी व्यक्ति अमीर न रह सकेगा। पैसा बँट जायेगा, पूँजी पर समाज का नियंत्रण होगा और हम सभी केवल निर्वाह मात्र के अर्थ साधन उपलब्ध कर सकेंगे।
बुद्ध के अनुयायियों ने उत्सर्ग की हवा बहायी, तो युवक-युवती, यौवन और वैभव का सुख छोड़कर परमार्थ प्रयोजन के लिए भिक्षुक-भिक्षुणी का कष्ट साध्य जीवन जीने के लिए तत्पर हो गये। गाँधी की आँधी चली तो आवश्यक कामों और रंगीन सपनों को पैरों तले कुचलते हुए लाखों मनस्वी जेल यातनाएँ और फाँसी, गोली खाने के लिए चल पड़े। उस समय लोगों ने उन्हें भले ही नासमझ कहा हो; किन्तु इतिहास साक्षी है कि वह निर्णय उनके लिए सौभाग्य एवं सुयश का द्वार खोल गया, वे धन्य हो गये।
इन दिनों भी महाकाल प्रतिभाओं को युग-नेतृत्व के लिए पुकार रहा है। सुयोग एवं सौभाग्य का अनुपम अवसर सामने है। वासना, तृष्णा एवं अहंता के कुचक्र को तोड़कर जो योद्धा-सृजन सैनिक आगे बढ़ेंगे, वे दिव्य अनुदानों के भागीदार बनेंगे। जो उनसे चिपके रहने का प्रयास करेंगे, वे दुहरी हानि उठायेंगे। महाकाल उन कुचक्रों को अपने भीषण प्रहार से तोड़ेगा, तब उससे चिपके रहने वालों पर क्या बीतेगी, सम्भवत: इसका अनुमान भी कोई लगा न पाये।
अच्छा हो लोग विवेक की बात स्वीकार करें, भीषण पश्चाताप और पीड़ा से बचें, अनुपम सौभाग्य, सुयश के भागीदार बनें।
—पं०श्रीराम शर्मा आचार्य ‘‘युग की पुकार अनसुनी न करें - युग की पुकार जिसे सुना ही जाय’’ पुस्तक से