युग निर्माण योजना—एक दृष्टि में
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परम पूज्य गुरुदेव जून सन् १९६० से ६१ तक हिमालय अज्ञातवास में रहे। वहाँ से लौटकर उन्होंने नवसृजन के लिए ‘युग निर्माण योजना’ का उद्घोष किया। कोई भी व्यक्ति या संगठन इन कार्यक्रमों को यथावत या सामयिक परिस्थितियों के अनुसार संशोधित रूप में नि:संकोच अपनाकर इनका लाभ उठा सकते हैं।
गायत्री परिवार/प्रज्ञा परिवार/युग निर्माण परिवार:
— युग निर्माण योजना को सफल एवं विश्वव्यापी बनाने के लिए पारिवारिक अनुशासन में गठित सृजनशील संगठन, जिसे गायत्री उपासना के आधार पर गायत्री परिवार, व्यक्तित्व परिष्कार के लिए आवश्यक दूरदर्शी विवेकशीलता के आधार पर प्रज्ञा परिवार एवं मानव मात्र के समग्र नव निर्माण के लिए प्रतिबद्धता के आधार पर युग निर्माण परिवार कहा जाता है।
लक्ष्य एवं उद्देश्य:
— मनुष्य में देवत्व का उदय, धरती पर स्वर्ग का अवतरण।
— व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण।
— स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन, सभ्य समाज।
— आत्मवत् सर्वभूतेषु, वसुधैव कुटुंबकम्।
— एक राष्ट्र, एक भाषा, एक धर्म, एक शासन।
— लिंगभेद, जातिभेद, वर्गभेद से ऊपर उठकर सबको विकास का अवसर।
योजना के उद्घोषक-विस्तारक:
— युगऋषि वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं वन्दनीया माता भगवती देवी शर्मा
—प्रखर प्रज्ञा - सजल श्रद्धा।
तीन समर्थ आयाम :
—योजना-शक्ति-ईश्वर की —अनुशासन-संरक्षण-ऋषियों का — पुरुषार्थ-सहकार-सत्पुरुषों का।
आत्मनिर्माण के दो सूत्र:
—उत्कृष्ट चिन्तन, आदर्श कर्तृत्व
—सादा जीवन --उच्च विचार।
हमारे आधारभूत कार्यक्रम:
—नैतिक क्रांति, बौद्धिक क्रांति, सामाजिक क्रांति
— धर्मतंत्र-आधारित विविध माध्यमों से लोकशिक्षण
— गायत्री-सामूहिक विवेकशीलता एवं यज्ञ-सहकारितायुक्त सत्कर्म।
हमारा उद्घोष:
—हम बदलेंगे-युग बदलेगा, हम सुधरेंगे-युग सुधरेगा
—इक्कीसवीं सदी --उज्ज्वल भविष्य
—सबकी सेवा - सबसे प्रेम।
हमारा प्रतीक: लाल मशाल-समग्र क्रान्ति के लिए सामूहिक सशक्त प्रयास-युग शक्ति का विकास।
हमारा संविधान: युग निर्माण सत्संकल्प के 18 सूत्र।
हमारी ध्रुव मान्यताएँ :
—मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
—जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
—नर-नारी परस्पर प्रतिद्वन्द्वी नहीं, पूरक हैं।
इक्कीसवीं सदी का मार्गदर्शक साहित्य: क्रान्तिधर्मी साहित्य।
जीवन निर्माण के चार सूत्र:साधना, स्वाध्याय, संयम, सेवा।
आध्यात्मिक जीवन के तीन आधार: उपासना, साधना, आराधना।
प्रगतिशील जीवन के चार चरण: समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, बहादुरी।
समर्थ जीवन के चार स्तंभ: इंद्रिय संयम, अर्थ संयम, समय संयम, विचार संयम।
आत्मिक प्रगति के चार चरण: आत्मसमीक्षा, आत्मसुधार, आत्मनिर्माण, आत्मविकास।
परिवार निर्माण के पंचशील: श्रमशीलता, शालीनता (शिष्टता), मितव्ययिता, सुव्यवस्था, सहकारिता।
तीन को परिष्कृत करें: स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर।
तीन की साधना करें: ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग।
तीन का सन्तुलित समन्वय करें: भावना, विचारणा, क्रिया-प्रक्रिया।
तीन का विकास करें: श्रद्धा, प्रज्ञा, निष्ठा।
तीन को सुधारें: गुण, कर्म, स्वभाव।
तीन को सँवारें: चिंतन, चरित्र, व्यवहार।
तीन को त्यागें:
— लोभ, मोह, अहंकार।
— वासना, तृष्णा, अहंता
— पुत्रैषणा, वित्तैषणा, लोकैषणा।
तीन को धारण करें: ओजस्, तेजस्, वर्चस्।
तीन का सम्मान करें : संत, सुधारक, शहीद।
सात आन्दोलन: साधना, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन, नारी जागरण, पर्यावरण, व्यसन मुक्ति एवं कुरीति उन्मूलन।
तीन अभियान: प्रचारात्मक, रचनात्मक, संघर्षात्मक।
प्रचारात्मक अभियान: जन-जन तक युगनिर्माण का संदेश।
रचनात्मक अभियान: नव सृजन में प्रतिभाओं का रचनात्मक सहयोग।
संघर्षात्मक अभियान: सृजन के मार्ग में आने वाली बाधाओं का निवारण।
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