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बुरें विचारों से कैसे लडें ?
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विचारों से विचारों को काटते हैं, जहर को जहर से मारते हैं, काँटे को काँटे से निकालते हैं। कुविचार जो आपके मन में हर बार तंग करते रहते हैं, उसके सामने ऐसी सेना खड़ी कर लीजिए, जो आपके बुरे विचारों के सामने लड़ सकने में समर्थ हो। अच्छे विचारों की भी एक सेना होती है।

बुरे विचार आते हैं, लोभ के विचार आते हैं, लालच और बेईमानी के विचार आते हैं, आप ईमानदारों के समर्थन के लिये उनके इतिहास और वर्ण और स्वास्थ्य और आप्त-पुरुषों के वचन उन सबको मिलाकर के रखिए। हम ईमानदारी की कमाई खायेंगे, बेईमानी की कमाई हम नहीं खायेंगे। काम-वासना के विचार आते हैं, व्यभिचार के विचार आते हैं। आप ऐसा किया कीजिए, कि उसके मुकाबले की एक और सेना खड़ी कर लिया कीजिए। अच्छे विचारों वाली सेना। जिसमें आपको यह विचार करना पड़े, हनुमान् कितने सामर्थ्यवान हो गये ब्रह्मचर्य की वजह से। भीष्म पितामह कितने समर्थ हो गये, ब्रह्मचर्य के कारण। आप शंकराचार्य से लेकर के और अनेक व्यक्तियों, संतों की बात याद कर सकते हैं। महापुरुषों की जिन्होंने अपने कुविचारों से लोहा लिया है।

कुविचारों से लोहा नहीं लिया होता तो विचारे संकल्पों की क्या बिसात थी, चलते ही नहीं, टूट जाते। कुविचार हावी हो जाते और जो विचार किया गया था, वो कोने पे रखा रह जाता। ऐसे समय में विचारों की एक सेना तैयार खड़ी कर लीजिये तो आपके लिये स्वर्ग होगा। जब बेईमानी के विचार आयें, काम-वासना के विचार आयें, ईर्ष्या के विचार आयें, अधःपतन के विचार आयें तो आप उनकी रोकथाम के लिये अपनी सेना को तैयार कर दें और उनके सामने फिर लड़ा दें। लड़े बिना काम कैसे चलेगा, बताइये न? रावण से लड़े बिना कहीं काम चला? दुर्योधन से लड़े बिना काम चला? कंस से लड़े बिना काम चला? लड़ाई मोहब्बत की है अथवा कैसी है, हिंसा की है, अहिंसा की है, ये मैं इस वक्त बात नहीं कह रहा हूँ। मैं तो यह कह रहा हूँ कि आपको अपनी बुराइयों, कमजोरियों से मुकाबला करने के लिये और समाज में फैले अनाचार से लोहा लेने के लिए भी, हर हालत में आपको ऐसे ऊँचे विचारों की सेना बनानी चाहिए जो आपको भी हिम्मत देने में समर्थ हो सके और आपके समीपवर्ती इस वातावरण में भी नया माहौल पैदा करने में समर्थ हो सके। ये संकल्प भरे विचार होते हैं।