खबरों का दम घुट जाता है अखबारों के इश्तेहार में
जैसे कोई शीशा बेचे अंधों के बाजार में जो हकीकत दिखाते सबकी उनको दर्पण दिखला दूं
और चंद सिक्कों के के आगे आत्मसमर्पण दिखला दूं
खबरें भी बिक जाती हैं अब टीवी की अखबारों की
कोई विश्वासता बची नहीं खबरों के समाचारों की
चौथा स्तंभ जिसको माना था अपने हिंदुस्तान का
चिन्ह्न जो होना चाहिए था आजादी के अभिमान का।
देश वतन की खातिर तो वो सरकारों से लड़ जाते थे,
प्रश्न चिन्ह बनकर जो सिंहासन के आगे अड़ जाते थे।
सब पर कीचड़ डाल रहे खुद कीचड़ में सने हुए हैं
और चंद पैसों की खातिर दरबारी गण बने हुए हैं हमको डर भी नहीं लगता अब धर्म के ठेकेदारों से
हमको तो बस डर लगता है खबरों से समाचारों से
खबरों में सच्चाई नहीं है मिर्च मसाला ज्यादा है
हिंदू मुस्लिम की जान तो इनके हाथ का प्यादा है
राजनीति के चूहे बिल्ली सब तो इन के यार हैं
झूठ फैलाना दंगे करना यह उनके हथियार हैं
झूठी सच्ची खबरों की हम रोज लगा देंते है मंडी
डाकू को साधु बतला दे और पंडित को पाखंडी
कत्ल होता है इंसानों का नाम धर्म की सकते हैं
खुद ही दंगे करवाते हैं फिर नाम राम का जपते हैं