आरंभ है प्रचंड देख मस्तकों का झुंड,
आज काल विकराल हो रहा।
क्या होगा अंत अब मत मन तु संत,
उठ मानव कब से है तु सो रहा।
है आँधीयों को झेलना,तुफानो से है सामना,
देख धरातल पर आस्माँ भी रो रहा।
न सोना है न खोना है हम सबको एक होना है क्यों के?
आरंभ है प्रचंड............
✍️ #संतोष केवल सनातनी