शिव पाण्डेय 's Album: Wall Photos

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हम सबके मन में यह जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से बार-बार उठती है कि क्या मनुष्य के जीवन की डोर उसके हाथ में है? यदि उसके हाथ में डोर नहीं तो किसके हाथ में है? क्या सारा जीवन वह ऊपर वाले के इशारों पर ही नाचता रहेगा?
इन प्रश्नों के उत्तर में यही कहा जा सकता है कि मनुष्य इस रंगमंच रूपी संसार में अपने चरित्र या पात्र का अभिनय करने आया है। जो रोल उसे डायरेक्टर ईश्वर ने दिया है उसे दक्षता से निभाना उसका दायित्व है। यदि अपना किरदार वह बखूबी निभाता है तो लोगो की सराहना रूपी तालियाँ उसे मिलती रहती हैं। चारों ओर उसका यश फैलता है। लोग उस मंझे हुए अभिनेता को अपने सिर-आँखों पर बिठाते हैं। उसका मूल्य इस संसार रूपी रंगमंच पर बढ़ जाता है। सभी लोग उसे अपने पक्ष में करने के लिए मिन्नतें करते हैं अथवा जुगाड़ करते रहते हैं।
इसके विपरीत यदि अपना किरदार निभाने में उससे चूक हो जाती है तब उस पर सड़े-गले टमाटर व अंडे फैंके जाते हैं यानि जीवन में उसे अपमान के घूँट कदम-कदम पर पीने पड़ते हैं। जीवन की बाजी हारे हुए ऐसे अभिनेता का मूल्य लोगों की नजर में कम हो जाता है। उसे इस रंगमंच पर अभिनय करने के लिए अच्छा रोल नहीं मिलता। यूँ कहें तो वह नाकारा घोषित कर दिया जाता है। ऐसे अभिनेता को फिर कोई अच्छा रोल नहीं मिल पाता।
वास्तविकता यही है कि यह संसार एक रंगमंच है। हम सभी जीव यहाँ अपना एक विशेष किरदार निभाने के लिए भेजे जाते हैं। कोई राजा तो कोई रंक, कोई अमीर तो कोई गरीब, कोई पुलिस तो कोई चोर, कोई जज तो कोई अपराधी, कोई साधु और कोई फरेबी, कोई नेता तो कोई अभिनेता। इस तरह अच्छे और बुरे सभी तरह के चरित्र इस रंगमंच पर वह मालिक भेजता है। पूर्व जन्मों में किए गए कर्मों के अनुसार ही वह हमारा रोल इस जन्म मे निर्धारित करता है।
हमें साथी कलाकार यानि नाते-रिश्तेदार व भाई-बन्धु वही मिलते हैं जिनके साथ कभी हमारा पूर्व जन्मों के सुकर्मों अथवा दुष्कर्मों का बकाया शेष होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जिनके साथ हमारा लेन-देन का संबध होता है।
यदि हम उसकी अपेक्षाओं पर खरे उतरते हैं तो अगले जन्म के लिए मालिक हम सबको और अधिक अच्छा रोल देकर पुनः भेजता है। जिसमें हमें सुख-समृद्धि मिलती है। यश मिलता है, चारों ओर से वाहवाही मिलती है।
परन्तु यदि हम उस प्रभु की अपेक्षाओं पर किसी भी कारणवश खरे सिद्ध नहीं होते, नाकारा सिद्ध हो जाते हैं तो वह आने वाले जन्म में अच्छा पात्र बनाकर नहीं भेजता। तब वह ऐसे रोल देता है जो सारा समय दुखों और परेशानियों में जीने वाले होते हैं।
मनुष्य का जन्म या मरण कब होगा, उसे सुख अथवा समृद्धि मिलेगी या नहीं, उसके जीवन में कब सुख अथवा दुख आएँगे ये सब वही निर्धारित करता है। वह चाहे तो मनुष्य घर से बाहर कदम निकाल सकता है अथवा हाथ में पकड़ा हुआ रोटी का निवाला मुँह तक ले जाकर खा सकता है। मनुष्य चाहे भी तो कहीं छुपकर नहीं बैठ सकता क्योंकि वह हर क्षण, हर पल उस मालिक की नजर में रहता है।
मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र होता है। यदि वह इस स्वतन्त्रता का सदुपयोग करता है तो आगामी जन्म पुण्य कर्मों से भरा होता है। यदि मनुष्य उसका दुरुपयोग करते है तो सजा के रूप में निम्न योनियों में भेजता है।
जैसे हम अपने बच्चों को अच्छा काम करने पर शाबाशी और पुरस्कार देते हैं और गलत काम करने पर सजा। हम अपने बच्चों को कोई भी काम करने से पहले सदा चेतावनी देते रहते हैं इसी प्रकार वह भी हमें अन्तरात्मा के द्वारा चेतावनी देता रहता है। यदि हम मान जाते हैं तब गलत काम नहीं करते और अगर सुनकर अनसुना करते हैं तो कष्ट पाते हैं।
यह निश्चत है कि मनुष्य कर्म करने में स्वतन्त्र है उसका फल भोगने में नहीं। जहाँ तक हो सके जीवन में नियमानुसार जीने का प्रयास करें जिससे इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर सके