रामजन्मभूमि के विध्वंस की नींव ही म्लेक्षों ने धोखाधड़ी और विश्वासघात के द्वारा रखी थी और अब पुनः जब 500साल के बाद रामजन्मभूमि मन्दिर की नींव रखी जाने वाली है तो एक और म्लेक्ष आन पहुँचा – ऐसी दरियादिली दिखाने को हिन्दू क्यूँ तत्पर हो जाता है – हम अपनी पूर्व में की गयी गलतियों से सबक लेने को तैय्यार क्यूँ नहीं होते –
जब बाबर दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुआ उस समय जन्मभूमि सिद्ध महात्मा श्यामनन्द जी महाराज के अधिकार क्षेत्र में थी।
महात्मा श्यामनन्द की ख्याति सुनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा आशिकान अयोध्या आये। महात्मा जी के शिष्य बनकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा योग और सिद्धियाँ प्राप्त करने लगा और उनका नाम भी महात्मा श्यामनन्द के ख्यातिप्राप्त शिष्यों में लिया जाने लगा।
ये सुनकर जलालशाह नाम का एक फकीर भी महात्मा श्यामनन्द के पास आया और उनका शिष्य बनकर सिद्धियाँ प्राप्त करने लगा।
जलालशाह एक कट्टर मुसलमान था और उसको एक ही सनक थी, हर जगह इस्लाम का आधिपत्य साबित करना।
अत: जलालशाह ने अपने काफिर गुरू की पीठ में छुरा घोंपकर ख्वाजा कजल अब्बास मूसा के साथ मिलकर ये विचार किया कि यदि इस मदिर को तोड़ कर मस्जिद बनवा दी जाये तो इस्लाम का परचम हिन्दुस्थान में स्थायी हो जायेगा।
धीरे धीरे जलालशाह और ख्वाजा कजल अब्बास मूसा इस साजिश को अंजाम देने की तैयारियों में जुट गए।
सर्वप्रथम जलालशाह और ख्वाजा बाबर के विश्वासपात्र बने और दोनों ने अयोध्या को खुर्द मक्का बनाने के लिए जन्मभूमि के आसपास की जमीनों में बलपूर्वक मृत मुसलमानों को दफन करना शुरू किया और मीरबाँकी खां के माध्यम से बाबर को उकसाकर मंदिर के विध्वंस का कार्यक्रम बनाया।
बाबा श्यामनन्द जी अपने मुस्लिम शिष्यों की करतूत देख के बहुत दुखी हुए और अपने निर्णय पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ।
दुखी मन से बाबा श्यामनन्द जी ने रामलला की मूर्तियाँ सरयू में प्रवाहित किया और खुद हिमालय की ओर तपस्या करने चले गए।
मंदिर के पुजारियों ने मंदिर के अन्य सामान आदि हटा लिए और वे स्वयं मंदिर के द्वार पर रामलला की रक्षा के लिए खड़े हो गए।
जलालशाह की आज्ञा के अनुसार उन चारो पुजारियों के सर काट लिए गए।... ... ...
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Janardan Pandey Prachand जी की पोस्ट:
फैज, कौशल्या मंदिर से मिट्टी लाकर राम जन्मभूमि की नींव में डालेगा।...
इतना पढ़कर ही तमाम हिन्दू साझी धरोहर की कसमें खाकर सामाजिक एकता की बलैयां ले रहा है।
मानो दो मुट्ठी मिट्टी तेरह सौ वर्षों के रक्तरंजित इतिहास पर भारी पड़ने जा रही हो।
मानो कल से लव-जिहाद, भूमि-जिहाद, जनसंख्या-जिहाद से लेकर गजवा- ऐ-हिन्द के सारे षड्यंत्र समाप्त होने जा रहे हों।
जिन अरबी भेड़ों ने पाँच सौ वर्षों से मंदिर निर्माण रोक रखा था उनके द्वारा मिट्टी लाने या किसी भी प्रकार का योगदान देने का अब कोई औचित्य नहीं बचा है। जो मुसलमान आज बहुत बड़े वाले राम भक्त दिखलाए जा रहे हैं वह कोर्ट में कभी पैरवी करने गए थे क्या?
उन्होंने कभी अपने समाज के लोगों को समझाने का कोई प्रयास किया था क्या?
यदि यह लोग इतने ही बड़े राम भक्त हैं तो उन्हीं श्री राम के आराध्य भगवान महादेव के काशी विश्वनाथ मंदिर पर बनी ज्ञानवापी मस्जिद पर यह लोग मौन क्यों हो जाते हैं?
मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि पर दो शब्द बोलने में इनकी जिह्वा को लकवा क्यों मार जाता है? यह मिट्टी मंदिर की नीव में नहीं हिन्दुओं की अक्ल पर डाली जा रही है।
यदि फैज इतना ही बड़ा गौभक्त है तो शुद्धि करवा कर फूल सिंह क्यों नहीं बन जाता?
हिन्दुओं को सेकुलर चरस पिलाने के लिए नया हुक्का गढ़ा जा रहा है और मूर्ख हिन्दू उस हुक्का निर्माण की खबर को सुन- सुनकर लहालोट हुआ जा रहा है।
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