परिवारवाद (nepotism) या भाई भतीजावाद के बारे मे काफी बातें आज कल की जा रही है मुख्य रूप से बॉलीवुड को लेकर
हालाकि बॉलीवुड मेरे लिए नैतिकता के पैमाने मे कहीं नहीं ठहरता. सबको पता है, नैतिकता, चरित्र, धर्म बॉलीवुड मे रसातल मे चली जाती है, फिर क्यों लोग बॉलीवुड के लोगों से इतनी उम्मीद लगाते है.
तो उनकी बात कर के समय बर्बाद करना है.
इसी बीच एक TIMES OF INDIA मे एक लेख देखने को मिला लेखिका अधिवक्ता है, लेखिका ने बहुत ही सावधानी से लेख लिखा ऐसा मैं क्यों कह रहा हू आप को लिंक दे रहा हू पढ़ लीजियेगा. https://tinyurl.com/y8xk8e86
परिवारवाद कहा नहीं है,
न्यायपालिका मे देख लीजिए, एक समुह जो दूसरों को इस समुह मे आने नहीं देता,अपने प्रदेश और देश के न्यायाधीशों के परिवार की पृष्ठभूमि देख लीजिए.
राजनीति भी एक उदाहरण है, हालाकि राजनीत मे गलती राजनेताओ से कहीं ज़्यादा उस जनता की है जो जनता से ज़्यादा प्रजा बनकर खुश रहती है.
थोड़ा बहुत परिवारवाद हम सभी मे होता है एक व्यापारी अपना व्यापार अपने परिवार को देता है, एक डाक्टर कोशिश करता है कि अपने मरीज अपने लड़के को हस्तांतरित करे अगर वो डॉक्टर है, एक अधिवक्ता भी यही करता है.
कई जगह पर आम जनमानस को ये अधिकार होता है उत्तराधिकारी को स्वीकारे या नहीं, इसको मैं परिवारवाद नहीं मानता इसको मैं विरासत मानता हू या पुस्तैनी.
जैसे राहुल गांधी पार्टी के मुखिया होंगे ये आप निर्धारित नहीं कर सकते ना ही विरोध कर सकते है, हाँ राहुल गांधी सांसद होंगे या नहीं ये जनता निर्धारित करेंगी.
कहा परिवारवाद है कहा नहीं है ये आप को सोचना है जनता बनकर रहना है या प्रजा बनकर ये भी आप को निर्णय लेना है.