महा  गुरु 's Album: Wall Photos

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#6जून
#देश_का_सबसे_बड़ा_ट्रेन_हादसा

06 जून, 1981 का वह दिन आज भी इतिहास के पन्नों पर दर्ज है जिसको याद करने के बाद रूह कांप जाती है...! 'जी हां' यह देश का सबसे बड़ा रेल हादसा था, जिसमें करीब 800 से भी ज्यादा लोग काल के गाल में समा गए थे...! 6 जून 1981 यह तारीख़ और यह दिन भारतीय रेल के इतिहास में भी सदा-सदा के लिए दर्ज हो गया है।
6 जून 1981 की शाम ही मानसी-सहरसा रेल खंड पर बदला घाट-धमारा घाट स्टेशन के बीच बागमती नदी पर बने पुल संख्या-51 पर मानसी से सहरसा को जा रही पैसेंजर ट्रेन दुर्घटना ग्रस्त हो गई थी। ट्रेन उफनती बागमती में जा गिरी थी और तीन 800 लोग काल के गाल में समा गए थे।

बारिश का महीना था और ट्रेन अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी। बाहर तेज बारिश हो रही थी। लोग अपने-अपने कामों में बिजी थे। कोई बातें कर रहा था। कोई मूंगफली खा रहा था। कोई अपने रोते बच्चों को शांत करा रहा था। इसी वक्त ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगाया। ट्रेन फिसली, पुल तोड़कर, लबालब भरी नदी में पैसेंजर ट्रेन की सात बोगी पुल से बागमती नदी में जा गिरी। ट्रेन बागमती नदी पर बनाए गए पुल संख्या 51 को पार कर रही थी। कई लोगों का शव कई दिनों तक ट्रेन की बोगियों में फंसा रहा। इस हादसे में मरने वालों की सरकारी आंकड़े के अनुसार संख्या 300 थी। लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार हादसे में 800 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। इस हादसे को देश के सबके बड़े रेल हादसे के रूप में याद किया जाता है।

हालांकि ड्राइवर ने ब्रेक क्यों लगाई थी, इसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है। कुछ लोग कहते हैं कि जब ट्रेन बागमती नदी को पार कर रही थी तभी ट्रैक पर गाय व भैंस का झुंड सामने आ गई थी जिसे बचाने के चक्कर में ड्राइवर ने ब्रेक मारी थी। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि बारिश तेज थी, आंधी भी थी, जिसके कारण लोगों ने ट्रेन की सभी खिड़कियों को बंद कर दिया और तेज तूफान होने की वजह से पूरा दबाव ट्रेन पर पड़ा और बोगियां नदी में समा गई। लेकिन कारण जो भी आज भी कोसी-बागमती के कपाल पर यह रेल दुर्घटना एक स्याह अध्याय के रूप में अंकित है।

कहते हैं ड्राइवर ने ब्रेक इसलिए मारा था कि सामने भैंस आ गई थी। एक भैंस की जान बचाने में हजारों लोगों की जान चली गई। सुनकर लगता है कि यह फिल्मी कहानी है। पर यह सच है। यह था भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेन हादसा था ये ...!

1981 वो साल था जब भारत में ट्रेन में चढ़ते ही मौत लोगों का पीछा करने लगती थी। जनवरी से सितम्बर के बीच 8 महीनों में ही 526 ट्रेन एक्सीडेंट हो चुके थे। रेल मंत्री केदारनाथ पांडे की जान सांसत में फंसी हुई थी। खचाखच भरी 416 डाउन ट्रेन 6 जून को नदी में समा गई. भारत में तो वैसे भी ट्रेन जितने लोगों के लिए बनाई गई होती है, उससे तीन गुना ज्यादा लोग उसमें सफर करते हैं. बहुत सारे लोग बिना टिकट के भी सफर करते हैं. इसलिए कहा नहीं जा सकता कि ट्रेन में कितने लोग रहे होंगे।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 300 लोग ही ट्रेन में थे। लेकिन बाद में रेलवे के दो अधिकारियों ने पीटीआई से बात के दौरान कहा था कि मरने वालों की संख्या 1000 से 3000 के बीच हो सकती है। यानी एक्सीडेंट के वक्त ट्रेन में हजारों लोग थे।

हर गोताखोर को एक लाश निकालने पर कुछ पैसे देने को कहा गया था। पर गोतोखोरों ने लाश निकालने के बदले में पैसे लेने से मना कर दिया। भारतीय नौसेना ने तो पानी के अंदर विस्फोटकों का इस्तेमाल करके 500 लाशें निकालने की योजना बनाई थी पर ऐसा हुआ नहीं...!

गोताखोरों ने लाशें ढूंढने के लिए हफ्तों गोते लगाए। 286 लाशें निकाल पाए। 300 से ज्यादा लोगों का आज तक कोई पता नहीं चला। आंकड़ों के हिसाब से इस रेल दुर्घटना में करीब 800 लोगों की मौत हुई। सैकड़ों लोग नदी में बह गए। ये भारत का अब तक का सबसे बड़ा ट्रेन एक्सीडेंट है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा...!

दुनिया का सबसे बड़ा रेल एक्सीडेंट श्रीलंका में हुआ था। जब 2004 की सुनामी में ओसियन क्वीन एक्सप्रेस को लहरें बहा ले गई थीं। इस एक्सीडेंट में 1,700 लोगों की मौत हो गई थी।

उस दिन तो मानो बागमती भी जार बेजार होकर रो रही थीं...