महा  गुरु 's Album: Wall Photos

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#मिडिल_क्लास

समय निकल जाता है, पर बातें रह जाती हैं। वे बातें मानव पुरखों के पुराने अनुभव जीवन के नए-नए मोड़ों पर अक्‍सर बड़े काम की होती हैं।
आज हम सभी कोरोना वायरस के द्वारा फैली महामारी अर्थात कोरोना काल से गुजर रहे हैं। यह एक प्रकार का मृत्युकाल भी है। मृत्यु सुनने में बिल्कुल सरल शब्द लगता है, सप्ताह में कई बार मौत के बारे में चर्चा हो ही जाती है।
कुछ लोग तो बड़े गुरुर से कहते हैं कि एक न एक दिन तो सबको जाना है। पर, जब अपनी बारी आती है तो,यह गुरुर डर में बदल जाता है और फिर यही डर मृत्यु में।
आज इस मृत्युकाल को हम मृत्युंजय में बदलना चाहते हैं और उसके लिए सरकार के साथ हम भी हर संभव प्रयास कर रहे हैं। कोई किसी बात की कमी नहीं छोड़ रहा है लेकिन मृत्यु तो आखिर मृत्यु है।
यदि हम उसका एक रास्ता बंद करते है तो वो दूसरा खोल लेती है लेकिन मृत्यु का दूसरा रास्ता आखिरकार है क्या ?
आज मृत्यु का दूसरा रास्ता भुखमरी है..!
भुखमरी शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में गरीबों का चित्रण छा जाता है लेकिन क्या यह भुखमरी केवल गरीब तबके को ही अपना शिकार बना रही है ?
यदि हाँ... तो आप गलत है। शायद आपको यह अतिशयोक्ति लगे कि गरीबों के अलावा भी समाज का एक वर्ग है , जो आज की परिस्थिति में भुखमरी की ओर अग्रसर हो रहा है। मैं बात उस वर्ग की कर रही हूँ जो केवल किश्तों में जीता है और किश्तें चुकाने में ही मर जाता है। किश्त ही जिसकी जिंदगी है और किश्त से ही वह सपने खरीदता है, अपने सुखी जीवन का ताना-बाना बुनता है, आज मेरा लेख पढ़ने वालों में से भी अधिकांश उसी वर्ग के ही है, लेकिन आज वह इन किश्तों से जिंदगी खरीदने में असमर्थ हैं। उसके सामर्थ्य पर सबको नाज है लेकिन आज वह चुपचाप अपने भविष्य के लिए बचाये हुए हर 100 को खर्च हो जाने पर उसे बड़ी गंभीरता से देख रहा है, क्योंकि आज केवल 100 का नोट नहीं जा रहा है उसके साथ उसके भविष्य के अरमान जा रहे हैं।
वो न तो गरीब है, न वो असहाय है।
उसके पास एक घर है,बाइक है या यूं कहे कि एक सुखी जीवन के समस्त संसाधन है पर क्या उसके पास बचत है...? यदि है भी तो क्या इस कोरोनकाल में अब वह बचत पर्याप्त है..??
मैं बात उसी मध्यम वर्ग की कर रही हूँ, जो इस देश की सफलता में भरपूर योगदान करता है, पर कभी भी योजनाओं का भोग नहीं करता।
उसकी आय के समस्त साधन आज समाप्त हो चुके हैं, पर वो फिर भी धैर्य रखकर खड़ा है। परन्तु धैर्य की परीक्षा कितनी कठिन हो सकती है, उसका मूल्य उसे अब धीरे-धीरे ज्ञात हो रहा है क्योंकि इस वर्तमान कोरोनकाल में वह अपने पुत्र की लालसा में सदी के आम लेने के लिए भी असमर्थ है। वो न तो किसी राशन की दुकान पर जाकर राशन ले सकता है ? न वो सरकार से भोजन पैकेट मांगने में समर्थ है। यदि वो यह कार्य करता है तो यह उसके लिए महापाप है और अत्यंत ही घृणित कार्य है। उस पर यह आरोप लगाया जाएगा कि वह गरीबों के अधिकारों का हनन कर रहा है, उनका हक मार रहा है ।
देश हितार्थ वह चुप्पी साधकर लोगों के यह ताने सुन रहा है कि इनके पास तो सब कुछ है। सबकुछ होकर भी कुछ नहीं होने का दर्द भी वह सहर्ष स्वीकार करता है। वह इसके लिए बाध्य नहीं है फिर भी वह अपने कारण अपने देश का नुकसान नहीं होने देना चाहता।

उसकी दशा का वर्णन करने के लिए आगे कोई नहीं आता क्योंकि वो अपना दर्द कभी साझा नहीं करता। उसका ह्रदय तो इतना कठोर है कि परिवार के सामने भी यही कहता है कि अभी थोड़ा और चल जाएगा लेकिन कैसे ?
यह सोचने में उसकी कई रातें काली हो चुकी है। उसका सम्बल खत्म हो चुका है,आशाएँ समाप्त होती जा रही है।
बचपन का सिखाया हुआ पाठ वो हर मुश्किल घड़ी में याद करता है कि ''अपने से नीचे के लोगो को देखो" ।
वो उन असहाय को देखकर अपने पास जो है उसमें फिर खुश हो जाता है और फिर एक नई ऊर्जा के साथ जीवन शुरू कर देता है परन्तु आज वह ऊर्जा भी समाप्त होती जा रही है क्योंकि आज उसका धीरज दाव पर लग चुका है। आज वो उस दहलीज पर आकर खड़ा हो गया है, जहाँ से बाहर निकलने पर केवल अंधकार है और अंदर तो केवल नैराश्य ही है। इतना सब कुछ होने के बाद भी देश की एक आवाज पर वह देश की सहायता में चलने वाले फण्ड में सहर्ष दान भी करता है। अपने कंधों पर हर बोझ उठाने को तैयार है, भले आज उसके कंधे झुक क्यों न गए हो..?
लेकिन वह कभी भी अपने लिए आवाज नहीं उठाता, कभी विरोध नहीं करता क्योंकि वह मध्यम वर्ग है।
यही उसका सबसे बड़ा गुण भी है और सबसे दोष भी है।
वो अपना दर्द सुनाए भी कहाँ और किसे, क्योंकि देश का आधा से अधिक भार तो मध्यम वर्ग ही उठाए चलता है। सरकार पैकेज से लेकर राशन तक का फायदा नहीं उठा पाता। लेकिन फिर भी कभी अपने लिए हाय तौबा नहीं बचाता है....!