देस मेरा रंगरेज ये बाबू
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परंपराओं को ढोती,
बिन मतलब कथाएँ बाँचती,
मन ही मन मंतर बुदबुदाती,
सिंदूर,चावल, फल चढ़ाती,
कुनबे की खुशहाली माँगती,
अफवाहों के बाजार की मारी,
ये सभी औरतें एकदम भोली होती हैं. जिस समस्या का कोई हल ही न हो तब उसे अपनी समझ और पहुंच के दायरे में रहकर किसी पुराने तरीके से हल करने के प्रयास में ये औरतें अक्सर सभी के उपहास का पात्र ही बनती रही हैं लेकिन इनकी नीयत में कोई खोट हरगिज़ नज़र नहीं आता .
पूजा करते वक्त इनके चेहरे पर जो संतोष नजर आ रहा है वह कोरोना खत्म करे न करे , मन ही मन इनका हौसला जरूर मजबूत कर रहा है कि अब हमारा परिवार सुरक्षित है.
अब क्या पता कोरोना सच में कोई देवी ही हो जो वैक्सीन बनने से पहले इनके पूजा पाठ से काबू में आ जाए .
वैसे भी ,
देस मेरा रंगरेज ये बाबू,
घाट-घाट यहां गंडा-जादू,
राई-पहाड़ है कंकड़-शंकर
बात है छोटी बड़ा बतंगड़,
इंडिया सर ये चीज धुरंधर !
और फिर वैसे भी हमारे इंडिया में तो आधी बलाएं माँ के नजर उतारने से ही उतर जाती हैं !
अब विश्वास और अँधविश्वास के बीच खड़ी कुछ औरतें कोरोना की वैक्सीन बनने के इंतजार में अपने स्तर पर कुछ न कुछ ट्राई कर रही तो करने दो, किसी का क्या जाता है ?
और वैसे भी बड़े बड़े अस्त्र शस्त्र भी तो पूजा पाठ के बाद ही किसी काम आ पाते हैं !