वो बचपन की दुनिया वो बचपन की अठखेलियां
मुझे बहुत याद आती है
वो अमरूद के पेड़ वो शरारतें वो इमली सी ख्ट्टी वो आम शी मीठी यादें मुझे बहुत तड़पती है
वो ख्वाब की दुनिया वो हसीन नजारे वो घोड़े पे बैठा राजकुमार यू लगता था जैसे बस मेरे लिए हो
वो दोस्तो संग मस्ती ना परवाह किसी की ना डर आजाद पंछी बनके ख्वाबों के आसमान में स्वाचनद उड़ना मुझे बहुत याद आता है
पापा की छड़ी मा का आंचल में छुपाना हमारी गलतियों को अपने सर मढ़ना बहुत याद अता है मुझे
थोड़ा सा बुखार होने पे मा का रातभर जागना पापा की डांट शैतान भाई की उस वक़्त का pyr बहुत याद आता है मुझे
बच्चे थे तब चाहते थे जल्दी बड़े हो जाए तब पापा का चस्मा मा की साड़ी पहन के खुश हो लेते थे
आज जब चस्मा आंखो पे बदन पे साडी है तो दिल करता है व्ही चोटी सी फ्रोक पहन के अठ खेलिया व्ही मस्ती करू मगर बचपन में चस्मा साडी पहन के खुद को बड़ा समझ सकते थे मगर आज
वो छोटी फ्रॉक वो चेहरे की मासूमियत कोई बताएगा कही मिल सकती है क्या....